शिशु का अठारहवाँ सप्ताह
—
इला
गौतम
बैठने की
तैयारी
पाँचवें महीने में शीशु का शारीरिक विकास बहुत तेज़ी से
होता है। उसका शरीर बैठने के लिये तैयार हो रहा है। जब माँ
बच्चे को उठाने जाती है तो शिशु पीठ के बल लेटे हुए अपना
सिर और कंधे उठा देता है। शीशु को यदि पेट के बल लिटा दिया
जाए तो वह अपनी पीठ को अर्धवृत्त में मोड़ लेगा। यह गरदन
की मासपेशियों के लिए अच्छी कसरत है। इससे शिशु के सिर का
नियंत्रण भी विकसित होगा जो उसे आगे जाकर बैठने में मदद
करेगा।
कुछ हफ़्ते पहले जब आपने शिशु को बैठने की अवस्था में खीचा
था तब उसका सिर उसकी बाँह और कँधों से पीछे रह जाता रह
जाता था। अब शिशु पहले से सोच सकता है कि आप उसे किस दिशा
में खीचने वाले हैं और उसका सर बाकि के शरीर के एकदम
साथ-साथ आगे आएगा। और तो और शिशु की रीढ़ की हड्डी सीधी हो
रही है जिससे वह बिना सहारे के सीधे बैठ सकता है। इससे
उसके हाथ खाली हो गए हैं किसी भी चीज़ की छानबीन करने के
लिए और वह अपनी मनपसंद वस्तु की तरफ़ हाथ बढ़ा सकता है।
एक बार शिशु की पीठ और गरदन की मासपेशियाँ इतनी मज़बूत हो
जाएँ कि उसको सीधा रख सकें, और शिशु यह पता लगा ले कि उसे
पैर कैसे रखने हैं ताकि वह लुढ़के नही, तो फिर बस कुछ ही
समय की बात है कि शिशु घुटने के बल चलने लगेगा, खड़ा होगा
और अपने पैरों पर चल रहा होगा। जब तक शिशु बैठने की अवस्था
में अपने आप नही आ जाता आप उसे सोफ़े के कोने में या अपने
पैरों पर टेक लगाकर बिठा सकते हैं।
बातचीत का
आरंभ
शिशु अपनी भाषा की सूची में
रोज़ नई-नई आवाज़ें जोड़ रहा है और हो सकता है कि वह एक टूटे
हुए रिकोर्ड की तरह सुनाई दे। शिशु इस उम्र में अपने नए
पाए कौशल से इतना रोमान्चित हो जाते हैं कि वह काफ़ी समय
तक उस पर अटक जाते हैं। यह सामान्य है - बच्चे एक कौशल में
माहिर होना पसंद करते हैं अगले पर जाने से पहले। बार-बार
एक ही बात सुनना अच्छा नही लगता लेकिन धैर्य का यही अभ्यास
माँ को आगे जाकर काम आएगा जब बच्चे
से
लगातार "नही" और "क्यों" बहुत जल्द सुनना पड़ेगा।
शिशु आपका मुँह
आश्चर्य से देखेगा और आप जैसे मूँह मोड़ कर बात करते हैं
वैसे वह भी मूँह बनाकर कुछ आवाज़ें निकालेगा जैसे "म" और
"ब"। यहीं से माँ के लिये म और पिता के लिये बाबा शब्द का
प्रारंभ हो जाता है। एक लंबे अंतराल के बाद पूरे और साफ
शब्द सुनने का अवसर आएगा।
खेल खेल खेल-
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इस
समय तक शिशु चित्रों और कार्यों की ओर आकर्षित होने
लगता है। एक प्लास्टिक के पन्नों वाला फोटो एलबम लें।
उसमें चित्र लगा दें। चित्रों में रंग चटक हों।
पारिवारिक चित्रों को लगाया जा सकता है। शिशुओं के
चित्र भी लगाए जा सकते हैं।
शिशु को गोद में बैठाकर उसके सामने एलबम का एक एक
पृष्ठ खोलें और बताएँ- यह लाल रंग की कमीज है। ये भैया
है ये दीदी है यह बड़ा सा पेड़ है आदि। शिशु सब कुछ
वैसा तो नहीं समझता जैसा बताया जा रहा है लेकिन एलबम
पर झपट कर वह वह अपना आकर्षण प्रकट कर सकता है। वह
छूकर उसे देखना चाहता है। हाथ पैर मारकर वह उसके प्रति
अपनी जिज्ञासा प्रकट करता है।
अनजाने में ही उसका बुद्धि और संवेदना भी इस खेल से
विकसित होते हैं।
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शिशु
को किसी बगीचे में ले जाएँ जहाँ वह तरह तरह के खेल
खेलते हुए बच्चों को देख सके और अपनी प्रतिक्रिया भी
प्रदर्शित कर सके। जो खेल उसे पसंद आएँगे वह चेहरा
घुमाकर बार बार उसी ओर देखेगा। कुछ बच्चे भी उसे पसंद
आएँगे और वह उनके प्रति मुस्कुराकर अपनी रुचि
प्रदर्शित करेगा। जब बच्चे उसके साथ बातचीत करेंगे तो
वह खुश होकर किलकारियाँ भी मार सकता है।
इस खेल से उसके देखने और सामाज में घुलने मिलने की
प्रक्रिया का विकास होगा।
याद रखें, हर बच्चा अलग होता है
सभी
बच्चे अलग होते हैं और अपनी गति से बढते हैं। विकास के
दिशा निर्देश केवल यह बताते हैं कि शिशु में क्या सिद्ध
करने की संभावना है - यदि अभी नही तो बहुत जल्द। ध्यान
रखें कि समय से पहले पैदा हुए बच्चे सभी र्कियाएँ करने में
ज़्यादा वक्त लेते हैं। यदि माँ को बच्चे के स्वास्थ
सम्बन्धित कोई भी प्रश्न हो तो उसे अपने स्वास्थ्य केंद्र
की सहायता लेनी चाहिए।
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