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सामयिकी भारत से


भारत में स्वास्थ्य पर्यटन और
ओबामा की चिंता
डॉ. मनोज मिश्र


यह मात्र संयोग नहीं है कि भारत के विरुद्ध सुपर बग तथा अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की अमरीकियों के सस्ते इलाज के लिए भारत या मैक्सिको जाने की चिन्ता हो, दोनो ही मामलों में भारत के विरुद्ध कुप्रचार की गन्ध तो मिलती ही है और साथ ही भारत की धीरे-धीरे बढ़ती ताकत का एहसास भी पूरी दुनिया महसूस कर रही है। ज्ञान के युग में जिस सर्वाधिक संसाधन की आवश्यकता होती है वह है मानव संसाधन, जिसकी पूँजी भारत की झोली में नैसर्गिक तौर पर है। उदारीकरण के बाद आई टी की धूम ने भारतीय मेधा की पहचान अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पहली बार कराई। आई टी के साथ-साथ दवा उद्योग, वाहन उद्योग सहित कई उद्योगों ने अन्तर्राष्ट्रीय पहचान इन बीते २० वर्षों में देश की मेधा ने बनाई। इन सारे उद्योगों या इनके इतर अन्य मामलों में भारत की वैश्विक बढ़त का मुख्य कारण भारतीय मेधा ही थी।

अमेरिका सहित सारे विकसित देश इस उभरती भारतीय क्षमता को हतोत्साहित करने का प्रयास नए-नए तरीकों से करते रहते है। अमेरिका द्वारा आउट सोर्सिंग पर प्रतिबन्ध या आउट सोर्स कराने वाली कम्पनियों पर कर वृद्धि का मामला, एच१बी बीजा को आठ गुना महँगा करने का विषय, सुपर बग का कुप्रचार या अमेरिकी नागरिकों का भारत में इलाज के लिए आने का मसला हो, हर तरह से अपनी श्रेष्ठता से पीड़ित अमेरिका और अमेरिकी राष्ट्रपति भारत को घेरने की हर संभव कोशिश करते दिखते है और भारत को बदनाम कर उसकी व्यवसायिक क्षमता की धार को कुन्द करने का प्रयास करते है।

अभी आल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने बर्जीनिया के एक कार्यक्रम में कहा कि मेरी प्राथमिकता होगी कि अमेरिकी जनता सस्ते इलाज के लिए मैक्सिको या भारत न जाए। भारतीय स्वास्थ्य जगत में जबर्दस्त प्रतिक्रिया स्वाभाविक तौर पर हुई जिसकी अपेक्षा इस खुली और तथाकथित बराबर के मौकों वाली वैश्विक अर्थव्यवस्था में होनी चाहिए थी। प्रतिस्पर्धा के लिए समतल मैदान की बातें तथा मुक्त अर्थव्यस्था का पैरोकार अमेरिका लगातार अपने देश की कृषि तथा उद्योगों को अतिरिक्त संरक्षण दे रहा है तथा दूसरे अन्य संभावना वाले देशों की राह में रुकावट पैदा कर रहा है। यह सच है कि अमेरिका की स्वास्थ्य सेवाएँ भारत की स्वास्थ्य सेवाओं के मुकाबले कई गुना महँगी है। अमेरिकी राष्ट्रपति अपने यहाँ 'हेल्थ केयर रिफार्म पैकेज` से काफी उम्मीदें लगाए बैठे है जिसके अनुसार अमेरिका में इलाज आम आदमी की पहुँच के अन्दर आ जाएगा। अमेरिका के स्वास्थ्य सेवाएँ निजी हाथों में है तथा महँगी होने के कारण आम जनता की पहुँच से काफी बाहर है। अमेरिका में भारत की तुलना में इलाज १० से १५ गुना तक महँगा है। अमेरिकन मेडिकल एशोसिएशन के एक अनुमान के अनुसार अमेरिका में भारत के मुकाबले हार्ट बाईपास १३ गुना, हार्ट वाल्व बदलना १६ गुना, एन्जियोप्लास्टी ५ गुना, कूल्हा प्रत्यारोपण ५ गुना, घुटना प्रत्यारोपण ५ गुना तथा स्पाइनल फ्यूजन लगभग ११ गुना महँगा है। अमेरिका में स्वास्थ्य बीमा महँगा होने के कारण लगभग ४ करेाड़ लोग बिना बीमा के जीवन यापन कर रहे है। पूरे देश में महँगी स्वास्थ सेवाओं के कारण अमेरिकी राष्ट्रपति सवालो के घेरे में है।

भारत में स्वास्थ्य सेवाएँ निजी क्षेत्र में आधुनिक और उच्च स्तरीय होती जा रही है तथा भारत की छवि 'मेडिकल टूरिज्म` के क्षेत्र में उत्तरोत्तर सुधरती जा रही है। पिछले वर्ष लगभग ६ लाख विदेशी अपने इलाज के लिए भारत आए थे तथा इस वर्ष इस आकड़े में और वृद्धि की संभावना है। अपने देश में एक तरफ इलाज स्तरहीन तथा अनुपलब्ध है। वहीं दूसरी ओर निजी क्षेत्र के अस्तपताल 'मेडिकल टूरिज्म` की संभावना केा ध्यान में रखकर अपना स्तर तथा उपलब्धता बढ़ाते ही जा रहे हैं। पिछले वर्ष अपोलो अस्तपताल में अकेले ६०,००० के आसपास विदेशी मरीज अपने इलाज के लिए आए थे जिनमें अमेरिका और यूरोप के मरीज लगभग २० प्रतिशत थे। मैक्स अस्पताल तथा फोर्टिंस अस्पताल में भी क्रमश: २०,००० तथा ६,००० विदेशी मरीज अपने-अपने इलाज के लिए यहाँ आए थे जिसमें लगभग २० प्रतिशत मरीज अमेरिका और यूरोप से आए थे। देश में विदेशी मरीजों के कारण लगभग ४,५०० करोड़ रुपए की आय हुई थी। देश के सभी निजी अस्पताल इन विदेशी मरीजो की संभावनाओं के कारण अपना वैश्विक विस्तार कर रहे है, उच्च स्तरीय सुविधाएँ उपलब्ध करा रहे है, दूसरे देशों के प्रमुख अस्तपतालों के सहयोग का अनुबन्ध कर रहे है, सूचना/सुविधा केन्द्र खोल रहे है तथा इन्टरनेट का भरपूर इस्तेमाल कर रहें हैं।

इस तरह भारत में किफायती और अच्छा इलाज उपलब्ध होने की संभावनाए वैश्विक स्तर पर धीरे-धीरे बढ़ती जा रही है। अत: स्वाभविक ही है कि अच्छा और किफायती इलाज दुनिया में जहाँ भी उपलब्ध होगा 'ग्लोबल विलेज` का नागरिक उस ओर ही रुख करेगा। 'मेडिकल टूरिज्म` की बढने के साथ ही देश के लोगों की नौकरियाँ और व्यवसाय की संभावनाए भी बढ़ती जाएगी। इस समय सूचना केन्द्र/सुविधा केन्द्र का व्यवसाय, टेलिमेडिसन का व्यवसाय, विदेश मरीजों के लिए गेस्ट हाउस, दुभाषियों के सुनहरे मौके, अस्पताओं का विस्तार और दवा उद्योग का विस्तार, दवा के दुकानदारों की वृद्धि, हर देश के नागरिक की रुचि के अनुसार भोजन का व्यवसाय तथा मेडिकल इन्श्योरेन्स के व्यवसाय की वृद्धि स्वाभाविक है। भारत का निजी क्षेत्र इस संभावना का दोहन वैश्विक स्तर पर कर लेना चाहता है। इस समय मेडिकल टूरिज्म के मालमे में अकेले भारत ही नहीं बल्कि थाईलैण्ड, मलेशिया, ब्राजील और सिंगापुर भी बड़ी संख्या में अपने यहाँ विदेशी मरीजों को आकर्षित कर रहे है, अत: इस क्षेत्र में भी जबर्दस्त प्रतिस्पर्धा चल रही है।

अमेरिका सहित लगभग सभी विकसित देश महँगी स्वास्थ्य सेवाओं को आसानी से सस्ता नहीं कर पाएगें। अत: अमेरिकी राष्ट्रपति की चिन्ता उनके लिए समस्या है लेकिन भारत में भी एक चिन्ता सिर उठाने लगी है कि जिस प्रकार बीमा आधारित स्वास्थ्य सेवाओं का स्वरूप अमेरिका में असफल होता जा रहा है उसी प्रकार थोड़े दिनों में भारत में भी यह असफल हो जाएगा क्योंकि यहाँ की आबादी अमेरिका की आबादी का लगभग ४ गुना है। अत: स्वास्थ और शिक्षा के क्षेत्र में किसी विदेशी देश के आदर्शों को अपनाने की बजाय अपने देश के हिसाब से योजना बनाकर हर वर्ग को समाहित करने का प्रयास करना चाहिए।

२ मई २०११

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