इस सप्ताह- |
अनुभूति
में-
1
जानकीवल्लभ
शास्त्री,
मनोज श्रीवास्तव, निर्मल गुप्त, सुभाष नीरव और
श्वेता गोस्वामी की रचनाएँ। |
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साहित्य और संस्कृति में- |
1
समकालीन कहानियों में
यू.के. से शैल अग्रवाल की कहानी-
एक बार फिर
दिन धीरे धीरे बीतते चले जा रहे हैं, सपनों का पानी बिलकुल ही
खतम हो चुका है, जीवन की पुरानी मदमस्त चाल अब बेढंगी हो चली
है। वह आवाज कहीं दूर जा कर लुप्त हो गई है, जिसकी प्रतिध्वनि
पर मुझे ताउम्र चलना था।
पढ़ते-पढ़ते अचानक जब मन तेज रफ्तार से
भागने लगा तो आँखों में आँसू की लम्बी धारा बह निकली। चश्मा
उतारकर मैंने मेज पर रख दिया और अपनी पीठ कुर्सी पर टिका दी।
मन बिना थके लगातार भागता ही चला जा रहा था, गुजरी हुई उन
गलियों की दिशा में जहाँ की हरी- भरी गलियों में चारों ओर सब
कुछ हरा भरा था। पर वह हरियाली स्थिर नहीं रही वह थोड़े ही समय
के बाद पीली होती चली गई।
एक गहरी कालिमा ने अरुण को मुझसे बहुत दूर कर दिया। मैं अरुण
के पदचिह्न तलाशते-तलाशते बहुत दूर तक चलती चली गई, पर अरुण तो
न जाने किन अनजानी परछाइयों का पीछा करते-करते गुमशुदगी की
सीढियाँ उतर कर कहीं चला गया है।
पूरी कहानी पढ़ें...
*
यशवंत कोठारी का व्यंग्य
क्रिकेट ऋतुसंहार
*
डॉ. रामकुमार सिंह का निबंध
सूर के राम
*
देवेन्द्र चौबे का लेख
मुक्तछंद के प्रथम
कवि- महेश नारायण
*
भारतेंदु मिश्र की भावभीनी श्रद्धांजलि
छंदप्रसंग के आदर्श:
आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री |
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पिछले
सप्ताह- |
आकुल की लघुकथा
चवन्नी नहीं चली
*
प्रभात रंजन की कलम से
फैंटम हुआ पचहत्तर
का
*
गिरीश पंकज का लेख
अज्ञेय की कविता- नई
दृष्टि, नए बिंब, नए इंद्रधनुष
*
डा. सच्चिदानंद झा की चेतावनी
सावधान मौसम बदल रहे हैं
*
समकालीन कहानियों में भारत
से
विपिन चौधरी की कहानी
धुँधली सी
आस
दिन धीरे धीरे बीतते चले जा रहे हैं, सपनों का पानी बिलकुल ही
खतम हो चुका है, जीवन की पुरानी मदमस्त चाल अब बेढंगी हो चली
है। वह आवाज कहीं दूर जा कर लुप्त हो गई है, जिसकी प्रतिध्वनि
पर मुझे ताउम्र चलना था।
पढ़ते-पढ़ते अचानक जब मन तेज रफ्तार से भागने लगा तो आँखों में
आँसू की लम्बी धारा बह निकली। चश्मा उतारकर मैंने मेज पर रख
दिया और अपनी पीठ कुर्सी पर टिका दी। मन बिना थके लगातार भागता
ही चला जा रहा था, गुजरी हुई उन गलियों की दिशा में जहाँ की
हरी- भरी गलियों में चारों ओर सब कुछ हरा भरा था। पर वह
हरियाली स्थिर नहीं रही वह थोड़े ही समय के बाद पीली होती चली
गई। एक गहरी कालिमा ने अरुण को मुझसे बहुत दूर कर दिया। मैं
अरुण के पदचिह्न तलाशते-तलाशते बहुत दूर तक चलती चली गई, पर...
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