हास्य व्यंग्य | |
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क्रिकेट
ऋतुसंहार |
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॥ १ ॥
आह, सखि! यह कैसी मनोरम बेला है, हर तरफ गेंदबाल,
विकेट, लेग बिफोर, रनों और तालियों का शोर है। देख सखि ! पूरे शहर की आबादी दो
भागों में बंट गयी है। एक भाग क्रिकेट कमेंट्री सुन रहा है, दूसरा भाग अपनी छत पर
टी.वी. का एंटीना लगा कर बाजार में पान की दुकान पर खड़ा-खड़ा बहस कर रहा है। ॥ २ ॥ देख सखि! अब आमों की डालियों पर कोयलिया के कूकने के दिन लद गये हैं। ‘पी कहाँ-पी कहाँ' बोलने वाले चुप हैं। यहाँ तक कि कागा तक चुप रह गये हैं। सखि, बस हर तरफ एक ही शोर है। तीन पर चालीस भारत का क्या होगा? पाकिस्तान का क्या होगा, हम विश्वविजयी है। हमारे अश्वमेघ यज्ञ का क्या होगा? सखि ! देख कमेंटरी क्या कह रही है। हर सड़क स्टेडियम की ओर जा रही है। यह देख मोटी तोंद की सेठानी अपनी तीस वर्षीया बेबी के साथ कार में कैसी भागी जा रही है। सखि ! अवश्य ही क्रिकेट ऋतु ने पूरे शहर का संहार शुरू कर दिया है, ऐसा मुझे लगता है। मैं अभी-अभी खिड़की से झाँक आयी हूँ। बाहर एक भी बच्चा गिल्ली-डंडा नहीं खेल रहा है। अवश्य ही शहर में क्रिकेट के सुपरस्टार्स आये हुए है। कॉलेजों, स्कूलों, युनिवर्सिटियों में छुट्टियाँ हैं। सरकारी कार्यालयों में अघोषित अवकाश है। सखि! ऐसा तो तभी होता है जब बाल और बैट में झगड़ा शुरू होता है और टीमें मैदान में हों। दर्शक दीर्घा में हों और कान रेडियो पर तथा आँखें टी.वी. पर हों। सखि ! वास्तव में क्रिकेट रस विहार को जी चाहता है आज। तू भी सुमुखि! इस सुन्दर समय का लाभ उठा। ऐसा सुअवसर बार-बार नहीं आता। ॥ ३ ॥ देख सुमध्यमे ! तू स्वयं देख। पूरा नगर कैसा शोभायमान हो रहा है। दीपमलिका की तरह सजा हुआ है। शहर, में मुख्यमन्त्री जी खिलाडि़यों को साफा बांध रहे हैं, उन्हें गले से लगा रहे हैं। नगरवधुएं, ग्राम वधुएं खिड़की, गोखड़ों और चौराहों पर खड़ी हो कर अपलक निहार रही हैं। कॉलेज छात्राएं अपने-अपने मिनी स्कर्टों को संभालती हुई भागी जा रही हैं कपिल-यशपाल की ओर ऐसा बावेला तो तभी मचता है, जब शहर में क्रिकेट ऋतु आयी हो। ॥ ४ ॥ चल सखि! उठ। घड़ी बाँध लें। टोकरी
में लंच, टी, बाइनॉक्यूलर और ट्रांजिस्टर रख ले। अपन भी इस मौके का फायदा उठायें
और क्रिकेट ऋतु संहार करें। अब मदन संहार, ऋतु संहार और रिपु संहार के दिन लद गये
हैं। चारों ओर क्रिकेट संहार चल रहा है। इस देश में से क्रिकेट के विकेटों को उखाड़
फेंकने तक ऐसा ही चलेगा। ॥ ५ ॥ ये देख, स्टेडियम के बाहर भीड़
का समुन्दर, हर तरफ केबल सिर-मुंड ही मुड, नरों के नारों के, बस मुंड। कोई कैप
लगाये खड़ी है तो कोई बाइनॉक्यूलर ले कर, देख, वो व्योमबाला कैसी मुरझाई सी पड़ी
है। बड़ी तेज धूप है। बेचारी क्या करे? उधर देख, वी.आई.पी. लांउज में कौन-कौन हैं।
शीर्षस्थ नेता, अभिनेता, सरकारी अधिकारी और उनकी पत्नियाँ, धर्मपत्नियाँ तथा
प्रेमिकाएं। कैसा मनोरम अवसर है। अभी-अभी आकाश से पुष्प वर्षा होनी वाली है। ॥ ६ ॥ जो खिलाड़ी रिटायर हो गये हैं,
सखि! वे चयनकर्ता हैं, पत्रकार हैं, फिल्मों में है और जिनका कहीं बस नहीं चलता
उन्होंने होटल खोल लिये हैं। सखि ! वास्तव में क्रिकेट ने उन्हें इतना पैसा दिया
कि बस........वे पैसे से पैसा और गेंद से रन पैदा कर रहे हैं। |
११ अप्रैल २०११ |