सप्ताह
का
विचार-
सौंदर्य और विलास के आवरण में महत्त्वाकांक्षा उसी प्रकार पोषित
होती है जैसे म्यान में तलवार।- रामकुमार वर्मा |
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अनुभूति
में-
रामेश्वर कांबोज हिमांशु, मदन मोहन अरविन्द, कुमार विश्वबंधु,
संजीव सलिल और राजेश कुमार सिंह की रचनाएँ। |
कलम गहौं नहिं हाथ-
यों तो इमारात में
गर्मी का मौसम अभी शुरू नहीं हुआ है पर दोपहर में इतनी गरमी
ज़रूर हो जाती है कि... आगे पढ़ें |
सामयिकी में-
मसूरी के बुजुर्गों द्वारा यातायात
नियंत्रण में सहयोग के विषय में इंद्रेश कोहली का आलेख-
यातायात नियंत्रण-
नागरिकों की पहल |
रसोईघर से सौंदर्य सुझाव - तुलसी के पत्तों का रस निकाल कर
उसमें बराबर मात्रा मे नीबू का रस मिला कर चेहरे पर लगाने से
झाईं दूर होती है । |
पुनर्पाठ में- विशिष्ट कहानियों के
स्तंभ गौरव गाथा के अंतर्गत १ जून २००२ को प्रकाशित कृष्ण बलदेव
वैद्य की कहानी-
उड़ान। |
क्या आप जानते
हैं? कि हमारे देश में जिस तरह आबादी की गणना होती है उसी तरह जल
संसाधनों की क्षमता की भी गणना होती है |
शुक्रवार चौपाल- चौपाल में जहाँ एक ओर मल्हार के रूहे इश्क
कार्यक्रम का पूर्वाभ्यास जारी है वहीं दूसरी ओर तीसरी वर्षगाँठ के
उत्सव की तैयारियाँ...
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नवगीत की पाठशाला में-
कार्यशाला-८ के विषय आतंक का साया पर प्रतिदिन रचनाएँ प्रकशित होने का
क्रम जल्दी ही पूरा हो जाएगा। |
हास
परिहास
1 |
1
सप्ताह का
कार्टून
कीर्तीश की कूची से |
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इस सप्ताह
समकालीन कहानियों में
संयुक्त अरब इमारात से
मिलिंद तिखे की कहानी-
एक प्यार का पल हो
बारिश थमने का नाम नहीं ले रही थी। मेरी गाड़ी बिगड़ चुकी थी।
मैं फुजैराह से दुबई लौट रहा था। रात के या यों कहिए सुबह के
दो बज रहे थे। बीस सालों से संयुक्त अरब इमारात में इतनी घनघोर
वर्षा न तो मैंने देखी थी न ही सुनी थी।
असंभव! मैंने अपने आपसे कहा।
फुजैराह अपने सफेद-काले पर्वतों के लिए मशहूर है। इस वक्त
बिजली कौंधने से ये सफेद काले पर्वत साफ-सुथरे और चमकीले दिखाई
देते थे। चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ था। दूर-दूर तक कोई गाड़ी
या इन्सान नजर नहीं आ रहे थे। मैं, मेरी बिगड़ी हुई गाड़ी और
गाड़ी का चालक- जोसेफ। सिर्फ हम तीनों इस तूफानी रात- बरसात का
सामना कर रहे थे।
गाड़ी में बैठकर संगीत सुनने की कोशिश करने लगा था मैं। सारे
रेडियो स्टेशन छान मारे मगर मन-पसंद गीत किसी भी स्टेशन पर
नहीं थे। अचानक बंगलोर की याद आ गई - याद आ गया मेरा बचपन, फिर
मेरी जवानी... पूरी कहानी पढ़ें।
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मनोज लिमये का व्यंग्य
मेरे शहर की मॉल संस्कृति
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योगेश पांडे
का नगरनामा
साईं का साधना स्थल शिरडी
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डॉ. शोभाकांत
झा का ललित निबंध
निर्वासन
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डा. सत्यव्रत वर्मा
का आलेख
केरल का हिन्दी कवि : स्वाति
तिरुनाल |
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पिछले सप्ताह
अविनाश वाचस्पति का व्यंग्य
आतंकवादी की नाक खतरे
में
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अशोक
श्रीवास्तव अंजान का आलेख
सुपारियों में खिला हस्तशिल्प
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पंकज त्रिवेदी
का प्रेरक प्रसंग
विश्वास
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डॉ. विद्या निवास मिश्र का निबंध
हिंदी मानसिकता का निर्माण नई
पीढ़ी से
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समकालीन कहानियों में
भारत से
भारतेन्दु मिश्र की कहानी
बीजगणित
घाट घाट का
पानी पीकर श्रीमान 'क'
दिल्ली पधारे। यहाँ किसी साहित्य पीठ के
अधीश्वर ने उन्हे नौकरी के लिए बुलाया था। कुछ वैसे ही जैसे
फिल्म शोले में गब्बर ने साँभा को काम दिया होगा। फिर साँभा ने
कालिया-को। सब तरह योग्य होने पर भी पचास साल की उम्र तक उन्हे
नौकरी नही मिली पर अपनी कुंठित मानसिकता से बाप को गरियाते,
गुरुजनों को धिक्कारते, सगे संबन्धियों को पुलिस से पिटवाते,
भाई की खड़ी फसल में आग लगवाते, परिचितों की कुंडली
बाँचते-दोस्तों को धोखा देते -हुए वे प्रगतिशीलता के इस मकाम
तक पहुँच आए थे। असल में वो किसी के हो नही पाये अपनी बीबी के
भी नही। जो किसी लायक नही बन पाता वह आजकल अपने आप को
फ्रीलांसर कहने लगता है। कमरे में कभी नामवर सिंह, कभी बाल
ठाकरे, कभी...
पूरी कहानी पढ़ें। |