बारिश थमने का नाम नहीं ले रही थी। मेरी गाड़ी बिगड़ चुकी थी।
मैं फुजैराह से दुबई लौट रहा था। रात के या यों कहिए सुबह के
दो बज रहे थे। बीस सालों से संयुक्त अरब इमारात में इतनी घनघोर
वर्षा न तो मैंने देखी थी न ही सुनी थी।
असंभव! मैंने अपने आपसे कहा।
फुजैराह अपने सफेद-काले पर्वतों के लिए मशहूर है। इस वक्त
बिजली कौंधने से ये सफेद काले पर्वत साफ-सुथरे और चमकीले दिखाई
देते थे। चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ था। दूर-दूर तक कोई गाड़ी
या इन्सान नजर नहीं आ रहे थे। मैं, मेरी बिगड़ी हुई गाड़ी और
गाड़ी का चालक- जोसेफ। सिर्फ हम तीनों इस तूफानी रात- बरसात का
सामना कर रहे थे।
गाड़ी में बैठकर संगीत सुनने की कोशिश करने लगा था मैं। सारे
रेडियो स्टेशन छान मारे मगर मन-पसंद गीत किसी भी स्टेशन पर
नहीं थे। अचानक बंगलोर की याद आ गई - याद आ गया मेरा बचपन, फिर
मेरी जवानी। वे सारे पल जो वहाँ की बारिशों से भीग चुके थे आकर
आँखों में चुभने लगे? इन भीगे पलों ने मुझे गाड़ी से नीचे
उतरने को मजबूर कर दिया।
''जोसेफ अगर तुमसे नहीं बन पा रहा, तो जाओ इसे गराज में दे आओ।
ठीक हो जाएगी तो मुझे मोबाइल पर फोन कर देना।'' मैंने अपने
ड्राइवर से कहा। |