मसूरी
के बुजुर्गों द्वारा यातायात नियंत्रण में सहयोग के विषय
में इंद्रेश कोहली का आलेख-
यातायात
नियंत्रण- नागरिकों की पहल
विश्व
प्रसिद्ध पहाड़ों की रानी मसूरी के बुजुर्गों ने
प्रबुद्ध और कर्मठ नागरिकता का जो उदाहरण प्रस्तुत किया
है, वह शहर लिए सुखद और संपूर्ण भारत के लिए अनुकरणीय
है। इन वरिष्ठ नागरिकों ने बढ़ते यातायात और जाम की
समस्या से निपटने के लिए स्वयं यातायात पुलिस की मदद
करने की पहल की है। सबसे अधिक भीड़ वाले स्थान मालरोड पर
बुजुर्ग यातायात को नियंत्रित करने में सहयोग कर रहे
हैं। तपती दोपहरी हो या ठंडक, बुजुर्गों का उत्साह कम
नहीं हो रहा है। वे मालरोड पर वाहन ले जाने वालों को
रोककर उन्हें समझा रहे हैं कि मालरोड पर पैदल ही जाना
है।
मसूरी के वरिष्ठ नागरिकों ने अपने अभियान की शुरुआत के
पहले ही दिन लोकसभा के पूर्व स्पीकर सोमनाथ चटर्जी को भी
मालरोड पर चलने के नियमों की जानकारी दी, तो सोमनाथ दा
भी बुजुर्गों का सम्मान करते हुए गाडिय़ों का काफिला
छोड़कर अपने परिवार के साथ पैदल ही मालरोड पर निकले।
उन्होंने बड़प्पन दिखाते हुए स्वयं अपने वाहन का चालान
भी कटवाया। इससे वरिष्ठ नागरिकों का उत्साह बढ़ गया है,
जबकि छोटे-छोटे राजनीतिक दलों के नेता चालान कटते ही
पुलिस से उलझ जाते हैं। और तो और, नगरपालिका तक ने
बुजुर्गों द्वारा कमान संभालने के दूसरे दिन ही यह कह
दिया था कि लाल, नीली बत्ती की गाडियाँ जा सकती हैं।
सवाल यह है कि जब लाल, नीली बत्ती वाली गाडिय़ों में
बैठने वालों को आम जनता चुनती है, तो जो नियम आम जनता के
लिए है, वही उनके लिए क्यों नहीं लागू होना चाहिए।
प्रदेश में यात्रा का मौसम शुरू हो गया है। इस दौरान
लाखों श्रद्धालुओं और पर्यटकों का यहाँ आगमन होता है।
भारी संख्या में लोग मसूरी भी पहूँचते हैं। ऐसे में,
वाहनों के जमावड़े के कारण हर साल जाम की समस्या उत्पन्न
हो जाती है। इससे मुक्ति दिलाने के लिए वरिष्ठ नागरिकों
ने जो कदम उठाया है, उसे हर ओर से सराहा जा रहा है।
बुजुर्ग यह जिम्मेदारी निभा रहे हैं कि जो भी पर्यटक
मालरोड पर वाहन लेकर आ रहे हैं, वे उन्हें समझाते हैं कि
इससे जाम की समस्या उत्पन्न हो सकती है। बुजुर्गों की इस
पहल को सकारात्मक दृष्टि से देखा जाना चाहिए।
एक ऐसे दौर में, जब बुजुर्ग अपने घरों में उपेक्षित जीवन
जी रहे हैं या फिर ओल्ड ऐज होम में जीवन व्यतीत करने को
बाध्य हैं, क्योंकि उनके परिजनों को न तो उनकी जरूरत है
या फिर वे उन्हें बोझ के रूप में देखते हैं, तब मसूरी के
बुजुर्गों ने जिंदगी का नया फलसफा गढ़ा है। दूसरे शब्दों
में कहें, तो देश भर के मायूस वरिष्ठ नागरिकों को आत्मिक
खुशी का रास्ता दिखाया है। जो काम युवाओं को करना चाहिए
था, वह काम ये वरिष्ठ नागरिक कर रहे हैं। इन बुजुर्गों
का तो यह भी संकल्प है कि किसी भी समस्या को सुलझाने में
वे प्रशासन के साथ पूरी तरह से सहयोग करने को तैयार हैं,
अगर प्रशासन इसकी जरूरत समझे।
इन दिलेर बुजुर्गों से प्रेरणा लेते हुए युवा और कामकाजी
लोग, राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता भी हफ्ते में छुट्टी
वाले दिन एक या दो घंटे के लिए नई पहल कर सकते हैं। समाज
के किसी विद्रूप के खिलाफ मोरचा ले सकते हैं। यकीनन इससे
देश का भला ही होगा। बहरहाल, बुजुर्गों की इस पहल से कोई
राजनीतिक दल, कोई सामाजिक संगठन या अकेला कोई व्यक्ति भी
अपने जीवन में परिवर्तन लाता है, तो इनका यह अनोखा
प्रयास सार्थक हो जाएगा। |