सप्ताह
का
विचार-
सारा हिन्दुस्तान गुलामी में घिरा हुआ नहीं है। जिन्होंने
पश्चिमी शिक्षा पाई है और जो उसके पाश में फँस गए हैं, वे ही
गुलामी में घिरे हुए हैं। -महात्मा गाँधी |
|
अनुभूति
में-
त्रिमोहन तरल, राजन स्वामी, दिविक रमेश, किशोर कुमार कौशल और
राजेन्द्र चौधरी की रचनाएँ। |
|
|
इस सप्ताह
समकालीन कहानियों में
भारत से
दीपक शर्मा की कहानी
छतगीरी
"वनमाला के
दाह-कर्म पर हमारा बहुत पैसा लग गया, मैडम।" अगले दिन जगपाल
फिर मेरे दफ्तर आया, "उसकी तनख्वाह का बकाया आज दिलवा दीजिए।" वनमाला मेरे पति वाले सरकारी
कालेज में लैब असिस्टेंट रही थी तथा कालेज में अपनी ड्यूटी
शुरू करने से पहले मेरे स्कूल में प्रातःकालीन लगे ड्राइंग के
अपने चार पीरियड नियमित रूप से लेती थी। सरकारी नौकरी की
सेवा-शर्तें कड़ी होने के कारण वनमाला की तनख्वाह हम स्कूल के
बैंक अकाउंट में प्रस्तुत न करते थे, लेखापाल के रजिस्टर में
स्कूल के विविध व्यय के अन्तर्गत जारी करते थे।
"वेदकांत
जी इस समय कहाँ होंगे?" लेखापाल होने के साथ-साथ वेदकांत
स्कूल के वरिष्ठ अध्यापक भी हैं।
"वेदकांत जी?" पास बैठी आशा रानी को स्कूल के सभी अध्यापकों व
अध्यापिकाओं की समय सारिणी कंठस्थ है।" ..
पूरी कहानी पढ़ें।
*
मयंक सक्सेना का व्यंग्य
मूर्ख बने रहने का सुख
*
डॉ. डी.के.
शर्मा का इतिहासवृत्त
१० मई-
क्रांति का शंखनाद
*
स्वाद और
स्वास्थ्य में जानकारी
भली फली सहजन
*
जगदीश गुप्त को श्रद्धांजलि
कवि वही जो अकथनीय कहे |
|
|
पिछले सप्ताह
मनोहर पुरी का व्यंग्य
सदन में चिल्लाने का अधिकार
*
अनिल पुसदकर
का दृष्टिकोण
नज़र नही आते लोग अब कटोरियों मे प्यार बाँटते
*
रंगमंच में
भारतेंदु मिश्र से जानें
भरत की सौदर्य दृष्टि
*
पूर्णिमा वर्मन का आलेख
ग्रीष्म के शीतल मनोरंजन
*
समकालीन कहानियों में
भारत से
राजनारायण बोहरे की कहानी
हल्ला
साँझ ढल रही थी कि फिर कोलाहल हुआ। उनका दिल फिर से काँप उठा।
अपनी तरफ से तो उन्होंने कुछ किया ही नहीं, सब कुछ ऊपर से तय
हो कर आया था।
दरअसल, प्रदेश में किसानों पर अरबों-खरबों का
लगान बकाया है। कहने को तो यह प्रदेश का सबसे छोटा जिला है, लेकिन
यहाँ भी करोड़ों का बकाया, वह भी पिछले कितने अरसे से वसूली के
लिए रुका पड़ा है। किसी साल चुनाव तो किसी साल जनगणना और किसी
बरस अकाल किसी बरस बाढ़। mjसर रकार का ध्यान इस तरफ
गया तो उसने राजस्व वसूली के लिए सख्ती से अभियान चलाने का
आदेश दिया था। और उसी के मुताबिक ही तो उन्होंने गाँव-गाँव
जाकर इश्तहार बँटवाए, तकावी वसूली कराने वाले गाँव के आखिरी
कारिंदे पटेल की मार्फत घर-घर जाकर खबर पहुँचाई कि...
पूरी कहानी पढ़ें।
|