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                      सिद्धेश्वरी ने खाना बनाने के बाद चूल्हे को बुझा दिया और 
                      दोनों घुटनों के बीच सिर रखकर शायद पैर की उँगलियाँ या जमीन 
                      पर चलते चीटें-चीटियों को देखने लगी।  अचानक उसे 
                      मालूम हुआ कि बहुत देर से उसे प्यास नहीं लगी हैं। वह मतवाले 
                      की तरह उठी ओर गगरे से लोटा-भर पानी लेकर गट-गट चढ़ा गई। 
                      खाली पानी उसके कलेजे में लग गया और वह 'हाय राम' कहकर वहीं 
                      जमीन पर लेट गई। आधे घंटे 
                      तक वहीं उसी तरह पड़ी रहने के बाद उसके जी में जी आया। वह 
                      बैठ गई, आँखों को मल-मलकर इधर-उधर देखा और फिर उसकी दृष्टि 
                      ओसारे में अध-टूटे खटोले पर सोए अपने छह वर्षीय लड़के प्रमोद 
                      पर जम गई।  लड़का 
                      नंग-धड़ंग पड़ा था। उसके गले तथा छाती की हडि्डयाँ साफ दिखाई 
                      देती थीं। उसके हाथ-पैर बासी ककड़ियों की तरह सूखे तथा बेजान 
                      पड़े थे और उसका पेट हंडिया की तरह फूला हुआ था। उसका मुख 
                      खुला हुआ था और उस पर अनगिनत मक्खियाँ उड़ रही थीं। |