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कलम गही नहिं हाथ  

छात्रों के साथ कुछ पल

प्रयास- ऐल्ते विश्वविद्यालय की
साहित्यिक पहल

विदेशों में भारतीय संस्कृति और हिंदी भाषा से जुड़ने का जो अनुशासन दिखाई देता है वह इससे जुडी प्राचीन विद्याओं के प्रति उनके आध्यात्मिक लगाव और समझ को व्यक्त करता है। पिछले सप्ताह बुदापैश्त के ऐल्ते विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में इसका अनुभव एक बार और हुआ।

यह विभाग 'प्रयास' नाम से हिंदी में एक त्रैमासिक भित्ति पत्रिका का प्रकाशन करता है। इसमें ऐल्ते और पेच विश्वविद्यालयों के वर्तमान छात्र, भूतपूर्व छात्र व दूतावास द्वारा चलाई जानेवाली कक्षा के छात्रों व अध्यापकों का सहयोग लिया जाता है। पत्रिका के संस्थापक व वर्तमान संपादक ऐल्ते विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के अतिथि प्रोफेसर डॉ. प्रमोद कुमार शर्मा हैं। विभागाध्यक्ष मारिया नेज्यैशी का सहयोग और सौजन्य स्वाभाविक रूप से इस पत्रिका को प्राप्त है। उनकी कुछ हिंदी रचनाएँ भी इसमें प्रकाशित हुई हैं। पत्रिका में मौलिक रचनाओं के अतिरिक्त हंगेरियन से हिंदी अनुवाद, साक्षात्कार, यात्राविवरण आदि भी प्रकाशित किए गए हैं। रोचक बात यह है कि अनेक मूल रचनाओं में संपादन नहीं किया गया है। इससे सामान्य हिंदी पाठकों को यह जानने का अवसर मिलता है कि एक हंगेरियन छात्र को हिंदी भाषा की किस बात को समझने में कठिनाई होती है और वह कहाँ कहाँ गलतियाँ कर सकता है।

पिछले माह इसके वेब संस्करण का भी लोकार्पण किया गया। इस अवसर पर वहाँ उपस्थित छात्रों से बात करने, उन्हें अभिव्यक्ति-अनुभूति के बारे में बताने और हंगरी व हिंदी में काम करने वाले लोगों से मिलने का सौभाग्य मिला। यह देखकर प्रसन्नता हुई कि किसी विदेशी विश्वविद्यालय ने वेब तक अपने हाथ फैलाकर हिंदी का परचम भित्ति पत्रिका 'प्रयास'लहराया है। विश्व में किसी भी विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग की यह पहली पत्रिका है जो वेब पर आ खड़ी हुई है। आशा है शीघ्र ही अनेक विश्वविद्यालयों के हिंदी विभागों की पत्रिकाएँ भी वेब पर आएँगी और हिंदी वेब के सार्थक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएँगी।

इस लेख को पढ़नेवाले कोई पाठक अगर किसी विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर या छात्र हैं और विभाग की पत्रिका से जुड़े हैं तो अभिव्यक्ति को नीचे दिए गए पते पर ईमेल लिखकर सहयोग का अनुरोध कर सकते हैं। अगर ऐसी दस पत्रिकाएँ भी जुड़ सकीं तो अभिव्यक्ति की ओर से सबसे अच्छी पत्रिका का चुनाव कर एक वार्षिक पुरस्कार भी दिया जा सकेगा।

पूर्णिमा वर्मन
१० मई २०१०

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