सप्ताह
विचार-
भातृभाव
का अस्तित्व केवल आत्मा में और आत्मा के द्वारा ही होता है, यह और किसी के
सहारे टिक ही नहीं सकता। --श्री अरविंद |
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अनुभूति
में-
सुधांशु उपाध्याय, नीरज गोस्वामी, डॉ. कुमार
हेमंत और हरे राम समीप के साथ मनोज शर्मा की
रचनाएँ। |
कलम गहौं नहिं हाथ-
अनेक बार ई मेल आते हैं- प्रश्न
पूछते हुए कि इस
स्तंभ का नाम 'कलम गही नहिं हाथ'
क्यों है। कई बार सोचा कि... आगे पढ़ें |
रसोई
सुझाव--पराठे
के आटे में मोयन के लिए एक चम्मच तेल के स्थान पर दो बड़े चम्मच
दही डालने से पराठे अधिक नर्म व स्वादिष्ट बनते हैं। |
पुनर्पाठ में - ९ नवंबर २००७
को पर्व परिचय में प्रकाशित
संध्या का आलेख
यम द्वितीया की
कहानी। |
क्या आप जानते हैं?
कि बारह वर्ष के वनवास के बाद पांडव जिस दिन हस्तिनापुर लौटे वह
दिन भी कार्तिक की अमावस्या का था। |
शुक्रवार चौपाल- शुक्रवार चौपाल की इस सप्ताह कोई खबर नहीं, लगता
है दीपावली के उपलक्ष्य में यह स्थगित हो गई। ...
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नवगीत की पाठशाला में-
कार्यशाला-५ के लिए दीपावली पर आधारित गीतों का प्रकाशन आज
से प्रारंभ हो रहा है। |
हास
परिहास |
1
सप्ताह का
कार्टून
कीर्तीश की कूची से |
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इस सप्ताह
भाई दूज के अवसर पर
गौरव गाथा के
अंतर्गत सत्यवती मलिक की कहानी
भाई-बहन
''माँजी...!
हाय...! माँजी...! हाय!'' एक बार, दो बार, पर तीसरी बार 'हाय!
हाय!' की करुण पुकार सावित्री सहन न कर सकी। कार्बन पेपर और
डिज़ाइन की कॉपी वहीं कुरसी पर पटककर शीघ्र ही उसने बाथरूम के
दरवाज़े के बाहर खड़े कमल को गोद में उठा लिया और पुचकारते हुए
कहा, ''बच्चे, सवेरे-सवेरे नहीं रोते।''
''तो निर्मला मेरा गाना क्यों गाती है? और उसने मेरी सारी
कमीज़ छींटे डालकर क्यों गीली कर दी है?''
स्नानागार में अभी तक पतली-सी आवाज़ में निर्मला गुनगुना रही
थी, ''एक... लड़का था... वह रोता... रहता...।''
''बड़ी दुष्ट लड़की है। नहाकर बाहर निकले तो सही, ऐसा पीटूँ कि
वह भी जाने।'' माँ से यह आश्वासन पाकर कमल कपड़े बदलने चला
गया।
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गिरीश पंकज
का व्यंग्य
चार निलंबितों की वार्ता
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विज्ञान वार्ता में शंभु सुमन
से सुनें
एस्पिरिन
की कहानी
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रघूत्तम शुक्ल का आलेख
विश्वव्यापी भारतीय संस्कृति
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दीपिका जोशी से जानें
अन्नकूट और गोवर्धन-पूजा के विषय में |
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पिछले सप्ताह-
दीपावली विशेषांक में
योगेश अग्रवाल
का व्यंग्य
हंगामा देवलोक में
पर्यटन में डॉ. विभा सिंह के
साथ
राम का
शरण स्थल चित्रकूट धाम
11
कृष्णकुमार
यादव का आलेख
दीपावली
मान्यताओं के दर्पण में
महेशचंद्र
कटरपंच से जानें
दीपावली का दार्शनिक पक्ष
साहित्य संगम के
अंतर्गत प्रतिभा राय की ओड़िया कहानी का हिंदी रूपांतर-
पादुका
पूजन।
राम जैसा
पितृभक्त कौन है, लक्ष्मण-भरत जैसा भ्रातृभक्त और कौन जनमा है
अभी तक! पादुका पूजन में भरत से आगे निकल जाए- ऐसा आदमी नहीं
है इस दुनिया में। विधानबाबू के घर पादुका पूजन देख कोई ऐसा
सोचता है तो कोई हँसता है। कुछ सोचते हैं कि यह सब दिखावटी
भक्ति है। पादुका पूजन, वह भी पिता का नहीं, ना ही माँ का,
बल्कि पिता के छोटे भाई और विधानबाबू के चाचा का। माँ-बाप की
पादुका की बात छोड़ो, उनकी तो कोई तस्वीर तक नहीं है विधानबाबू
के घर पर, पर चाचा की पादुका की पूजा हो रही है। उन दिनों फोटो
नहीं खींची जाती थी, भला यह कैसे कहा जा सकता है? बात है ही
कितनी पुरानी? विधानबाबू का बचपन, अभी तीस-पैंतीस साल पहले
की
ही तो बात है।
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