कलम गही नहिं हाथ
कबिरा तेरे रूप अनेक
अनेक बार ई मेल आते हैं- प्रश्न
पूछते हुए कि इस
स्तंभ का नाम 'कलम गही नहिं हाथ'
क्यों है। कई बार सोचा कि इस विषय में कुछ लिखूँ फिर लगा कि यह एक
बहुप्रचलित पंक्ति है और अधिकतर लोग जानते हैं कि इसे कबीर के
दोहे 'मसि कागद तो
छुऔं नहीं,'
से लिया गया है, जिसका अर्थ है मैंने स्याही और कागज नहीं छुए न
ही कलम हाथ में पकड़ी। अपने स्तंभ के लिए मुझे यह पंक्ति इस लिए
पसंद आई थी क्यों कि मैं यह स्तंभ कलम से कागज पर लिखकर संपादन
करने के बाद टाइप नहीं होता बल्कि नया पन्ना खोलकर मैं सीधा यहीं पर टाइप करती हूँ।
इस बार भारत यात्रा के समय
'आधी साखी कबीर की'
के लेखक तथा कबीर
साहित्य के विशेषज्ञ कमलापति पांडेय से मिलने का सौभाग्य हुआ तो
तो चर्चा इस दोहे पर आकर टिकी। उन्होंने बताया कि यह पंक्ति दो
तीन रूपों में अनेक स्थानों पर पाई जाती है- कहीं इसे
'कलम गही नहिं हाथ'
लिखा गया है, कहीं 'कलम गह्यो नहिं
हाथ' तो कहीं 'कलम
गहूँ नहीं हाथ', लेकिन कबीरपंथियों के
पास सहेजी गई प्राचीन प्रतिलिपियों में कलम गही नहिं हाथ को ही
सही मानना उचित है। उन्हीं से इस दोहे की दूसरी पंक्ति और इसके
विशिष्ट अर्थ का भी पता चला जो ढूँढने पर पहले कहीं नहीं मिले थे।
दोहा इस प्रकार है-
मसि कागद छूऔं नहीं, कलम गहौं नहि हाथ
चारों जुग कै महातम कबिरा मुखहिं जनाई बात
श्री पांडेय के अनुसार इस पंक्ति को
लेकर कबीर के पढ़े-लिखे न होने का जो विचार प्रचलित किया गया वह
ठीक नहीं है। दोनों पंक्तियों को मिलाकर देखें तो इसका अर्थ होगा
कि न तो मैं स्याही और कलम छूता हूँ, न हाथ में कलम पकड़ता हूँ,
चारों युगों के महात्म्य की बातें मैं मौखिक ही बतला देता हूँ।
इस स्तंभ के लिए शीर्षक का चुनाव करते समय पंक्ति के किस रूप को
अपनाया
जाय इस विषय में विशेषज्ञों से बात नहीं की थी। जो रूप वेब पर
अधिक प्रचलित था उसे अपना लिया था।
कुल मिलाकर यह कि बहुमत सदा सही
नहीं होता। वेब पर प्रकाशित पंक्तियाँ, जानकारियाँ, वर्तनियाँ और
तथ्य गलत हो सकते हैं इसलिए उन्हें प्रयोग में लाने से पहले
विशेषज्ञ की राय ले लेना आवश्यक है। हाँ इस सब जानकारी के बावजूद
स्तंभ के नाम में परिवर्तन नहीं कर रहे हैं क्यों कि न तो यहाँ चारों जुग का महातम
है और न हीं अपने को कुछ विशेष कहने को जो कलम से लिखना असंभव
हो। बस सुविधा की बात है कि यहाँ
पर जो कुछ है वह बिना कलम हाथ में पकड़े लिखा गया है
इसीलिए शीर्षक 'कलम गही नहिं' हाथ
मन को सार्थक लगता है। आपको कैसा लगता है अवश्य
बताइएगा।
पूर्णिमा वर्मन
१९ अक्तूबर २००९
|