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 ५. १०. २००

आज का विचार-  रामायण समस्त मनुष्य जाति को अनिर्वचनीय सुख और शांति पहुँचाने का साधन है। --मदनमोहन मालवीय

अनुभूति में- डॉ. योगेन्द्र दत्त शर्मा, विजयेन्द्र विज, रामनिवास मानव, आतिश की रचनाएँ और नवगीत की पाठशाला से गीत।

कलम गही नहिं हाथ- कदंब के तले यह कुटिया  है। कुटिया का नाम है वृंदा। आश्रम का वातावरण वृंदावन जैसा ही है। ज्यादा लोग... आगे पढ़ें

रसोई सुझाव--चावल बनाने से पहले उन्हें २० मिनट तक पानी में भिगोएँ और पानी फेंककर नये पानी में पकाएँ। चावल अधिक खिले और लंबे बनेंगे।

पुनर्पाठ में - १६ नवंबर २००१ को साहित्य संगम में अंतर्गत प्रकाशित बंसी खूबचंदानी की सिंधी कहानी प्रतिफल। रूपांतरकार हैं अशोक मनवानी।

क्या आप जानते हैं? कि १५५७ में दीपावली के दिन ही अमृतसर के स्वर्णमंदिर की नींव रखी गई थी और भूमि पूजन हुआ था।

शुक्रवार चौपाल- इस बार मैं भारत से दूर सहारनपुर के एक गाँव में हूँ। चौपालके विषय में प्रकाश का ईमेल मिला है। वे लिखते हैं कि... आगे पढ़ें

नवगीत की पाठशाला में- कार्यशाला- ५ की घोषणा हो गई है और इस बार जिस विषय पर नवगीत लिखे जाएँगे वह विषय है- दीपावली।


हास परिहास

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सप्ताह का कार्टून
कीर्तीश की कूची से

इस सप्ताह दीपावली के स्वागत में
 सूरज प्रकाश का प्रहसन- हम कितना रोए

कमरे का दृश्य। मेज़ पर एक नेम प्लेट रखी है - उमा दत्त दूबे अनजान, उपन्यासकार। एक लेखकनुमा आदमी कमरे में तेज़ से चहलकदमी कर रहा है। बार-बार घड़ी देखता है मानो किसी का इंतज़ार का रहा हो। कभी हवा से बातें करता है तो कभी सोच कर खुश हो जाता है मानो कोई बहुत बढ़िया आइडिया आ गया हो। वह जेब से पैन निकाल कर लिखना चाहता है लेकिन उसे कहीं भी कोई काग़ज़ नज़र नहीं आता है। अपने आपको कोसता है - कैसा लेखक हूँ मैं, कमरे में एक भी काग़ज़ नहीं। मजबूरन मेज़ की धूल पर ही उँगली से लिखता है। फिर हथेली पर लिखता है, दीवारों पर लिखता है और लगातार विचारों के चलते चले आने से परेशान है। बार-बार घड़ी और दरवाज़े की तरफ़ देखता है। तभी पसीना पोंछते हुए लपकती हुई एक सुंदर, बनी ठनी लड़की आती है। पूरा प्रहसन पढ़ें...
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गिरीश बिल्लोरे मुकुल की लघुकथा
शुभकामनाएँ - एक चिंतन

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आज सिरहाने- ज्ञानपीठ से सम्मानित
कुँवर नारायण का खंड काव्य वाजश्रवा के बहाने
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घर परिवार में अर्बुदा ओहरी के सुझाव
प्रकृति प्रेम के संग दीवाली
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दीपावली की तैयारी करें
कंदील, बंदनवार, उपहार और पकवानों के साथ

पिछले सप्ताह

सूर्यकांत नागर की लघुकथा
देवी पूजा
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पर्व परिचय में देव प्रकाश का आलेख
दुर्गापूजा का सांस्कृतिक विश्लेषण
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लाला जगदलपुरी के साथ देखें
बस्तर का दशहरा
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समाचारों में
देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक सूचनाएँ

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कथा महोत्सव में पुरस्कृत- भारत से
मनोज तिवारी की कहानी
जय माता दी

शहर की आबादी से करीब पचास किलोमीटर दूर सिद्धेश्वरी माता का मंदिर। आस-पास के गाँवों में इसकी बड़ी आस्था है और वे इसे दुर्गा का ही एक रूप मानते हैं। लोगों का मानना है कि देवी के दरबार में जो भी सच्चे मन से मुराद माँगता है देवी उसकी मनोकामना अवश्य पूर्ण करती हैं। यहाँ पर लोग पहली बार आकर मन्नत माँगते हैं और माता को याद कराते रहने की गरज से एक धागे में गाँठ लगाकर छोड़ जाते हैं। जब उनकी मनोकामना पूर्ण हो जाती तो वे अगली बार आकर उस गाँठ को खोल देते हैं। नवरात्रि के अवसर पर तो यहाँ श्रद्धालुओं का अपार जनसमूह इकट्ठा होता ही है लेकिन वर्ष के बाकी महीनों में भी कुछ न कुछ भीड़ बनी रहती है। पूरी कहानी पढ़ें...

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
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