''नर्स अभी और कितनी गोली
खिलाओगी? मैं तो तंग आ गया हूँ गोली खाते खाते।'' ''अंकल, गोली
डाक्टर ने दी है, जल्दी अच्छा होने के लिये। गोली बराबर लोगे,
तो जल्द ठीक हो जाओगे।'' ''अब मुँह खोलो।''
केरल की नर्स ने अपने साँवले
चेहरे पर दूध जैसे चमकते दाँतों के साथ किशनलाल को मीठी डाँट
लगाई और पूरी सात गोलियाँ एक के बाद एक लेने पर विवश कर दिया।
किशनलाल मजबूर था। वो सामने वाले पलंग पर बैठी अपनी पत्नी -
सुंदरी को निहारने लगा - मानो वो मदद के लिए पुकार रहा हो।
सुंदरी चुपचाप देखती रही। वो कर भी क्या सकती थी।
मुम्बई के बांद्रा उपनगर में
लीलावती अस्पताल में दाखिल हुए किशनलाल को आज पूरे नौ दिन हो
गए हैं। बाई पास सर्जरी कराये, उसे एक सप्ताह बीत चुका है। तीन
दिन तो आपरेशन के पश्चात इन्टेन्सिव केयर यूनिट में था। कल से
अस्पताल की सातवीं मंज़िल पर एक कोने वाले कमरे में हैं।
अस्पताल के इस कमरे से बांद्रा क्षेत्र में फैले समंदर को
साफ़-साफ़ देखा जा सकता था।
किशनलाल को जल्दी थकावट होने,
पसीना आने और छाती में दर्द की शिकायतें तो चार-पाँच साल से हो
रही थीं।
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