अनुभूति
में- रामदरश मिश्र, चंद्रभान भारद्वाज, विपिन चौधरी, संगीता
स्वरूप की नई रचनाएँ साथ में संकलन- मातृभाषा के प्रति। |
कलम गही नहिं हाथ-
यों तो निन्यानबे का चक्कर
मुहावरों में बहुत पहले से चला आ रहा है पर इस बार के चक्कर में
सौ और जुड़ गए तो... आगे पढ़ें |
रसोई
सुझाव-
संतरे का सूखा छिलका सुखाकर डिब्बे में बंद करके रखें। सुगंधित
चाय बनाने के लिए चाय का पानी उबालते समय थोड़ा सा डाल दें। |
पुनर्पाठ में - ९ अक्तूबर
२००१ को
प्रकाशित नॉर्वे से सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक की कहानी-
मदरसों के
पीछे। |
क्या
आप जानते हैं?
कि कथाकार प्रेमचंद ने एक फिल्म की कहानी भी लिखी थी। यह फिल्म
१९३४ में मजदूर नाम से बनी थी। |
शुक्रवार चौपाल- इस बार चौपाल का विशेष कार्यक्रम आगामी नाटक का
रिहर्सल रहा। यह नाटक हिंदी दिवस के अवसर पर एक कार्यक्रम में ... आगे
पढ़ें |
नवगीत की पाठशाला में-
१1सितंबर से प्रतिदिन प्रकाशित
होना जारी हैं- एक नये गीत का। गीतों में समान-वाक्यांश है- बिखरा पड़ा
है। |
हास
परिहास |
1
सप्ताह का
कार्टून
कीर्तीश की कूची से |
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इस सप्ताह हिंदी दिवस
विशेषांक में
कथा महोत्सव में पुरस्कृत-
भारत से मदन मोहन
उपेन्द्र की कहानी
रम्मो बुआ
बड़का गाँव
से आया है, बता रहा था कि रम्मो बुआ गुज़र गईं। सारे गाँव ने
रंज किया, तीन दिन तक गाँव के चूल्हे नहीं जले, बच्चे चने
चबा-चबा कर पेट भर रहे थे। फिर रम्मो बुआ का कारज हुआ। इतना
पैसा इकट्ठा हुआ कि किसी सामान का घाटा नहीं पड़ा। बड़का गाँव की लच्छेदार भाषा में
रम्मो बुआ की कीर्ति बखान करता रहा और मेरे भीतर बुआ की बीती
स्मृतियाँ ताज़ी होती रहीं। रम्मो बुआ की अपनी कहानी रही थी,
उन्होंने अपने जीवन को संघर्षों के बीच बड़े साहस से जिया था
और हार नहीं मानी थी। मेरा बचपन रम्मो बुआ की मीठी लोरियों और
दुलार भरी थपकियों का बहुत दिनों तक गवाह रहा था। मुझे
धुँधला-सा याद है, जब हरी फूफा बंबई में धंधा करते थे और बुआ
अकेली गाँव में रहती थी। जब हरी फूफा होली-दिवाली आते थे तो
रम्मो बुआ के घर रंगीनी छा जाती थी, रोज़ मिठाई और पकवान का
ढेर लगा रहता था।
पूरी कहानी पढ़ें...
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डॉ. नरेन्द्र
कोहली का व्यंग्य
शताब्दी एक्सप्रेस का टिकट
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डॉ. काजल बाजपेयी का आलेख
अनुवाद के क्षेत्र में सूचना प्रौद्योगिकी का योगदान
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चपले सईनाथ
विट्ठल से जानकारी
हिंदी के
प्रारंभिक उपन्यास'
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बदरीनारायण
तिवारी की कलम से
हिंदी के विषय में विदेशियों
के विचार |
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पिछले
सप्ताह
डॉ. टी महादेव
राव का व्यंग्य
बिन सेलफोन सब सून
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संस्कृति में अनंत राम गौड का
आलेख
खानपान नवाबों
के
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सहित्यिक निबंध
में राधेश्याम बंधु से जानें
गीत का आधुनिक स्वरूप नवगीत
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विज्ञानवार्ता में
डॉ. गुरुदयाल प्रदीप की चेतावनी
सावधान! खतरों की भी है
संभावना
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समकालीन कहानियों के अंतर्गत डेन्मार्क से
चाँद शुक्ला हदियाबादी की कहानी
अंतिम पड़ाव
पिछले दो हफ्तों से कोहरे की चादर
ने डेनमार्क के शहर नोरेब्रो को अपनी जकड़ में ले रखा था, लेकिन यह कोई अनोखी या नई
बात नहीं थी। बर्फ़ीली सर्द हवायें डेन्मार्क के लम्बे ठन्डे मौसम की शान होती हैं,
लेकिन जब किसी दिन कोहरे की घनी चादर को चीरकर सूरज अपनी चमक को धरती पर बिखेरता है
तो इन्सान ही नहीं, वनस्पतियाँ भी उसकी रोशनी के स्वागत में पलक-पाँवड़े बिछा देती
हैं। यहाँ तक कि, चिकनी साफ़ सड़कें भी बेकार और बेमकसद आवा-जाही की चहल पहल से भर
जाती हैं। ऐसी ही सर्दी की एक सुबह सूरज अपनी प्रकृति
के विपरीत लाल दायरे के साथ निश्चित दिशा के आसमान में आँखें मूँदे आगे बढ़
रहा था। 'जैन्सन आपार्टमेंन्ट' की तीसरी मंज़िल के एक फ्लैट
में जब यश मखीजा ने खिड़की के परदे की डोरी को खींचा, पूरी कहानी पढ़ें...
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