कलम गही नहिं हाथ
चक्कर नौ सौ निन्यानबे का
रेल चली भई रेल
यों तो निन्यानबे का चक्कर मुहावरों में
बहुत पहले से चला आ रहा है पर इस बार के चक्कर में सौ और जुड़ गए तो
धक्का ज़ोर का लगा। धक्के में और ज़ोर लगाया चीनी भाषा ने जिसमें नौ को
जियु कहते हैं और इसका अर्थ होता है दीर्घकालीन। इसके चलते हज़ारों लोगों
ने शुभकार्यों के लिए ९ सितंबर ०९ के दिन का चयन किया। भारतीय
ज्योतिषियों की माने तो बुधवार रात ९ बजकर ९ मिनट और ९ सैकेंड पर शनि के
राशि परिवर्तन से एक दुर्लभ संयोग के साथ अभिजीत मुहूर्त था जो कार्यों
की सफलता के लिए महत्त्वपूर्ण माना गया है।
पता नहीं चीनी के जियु से प्रभावित होकर या
भारतीय ज्योतिष से दुबई में नौ सितंबर वर्ष दो हज़ार नौ में रात नौ बजकर
नौ मिनट और नौ सेकेंड पर मेट्रो का उद्घाटन हुआ। यह इमारात के लिए एक
बड़ा धमाका था। राजे महाराजे स्टेशन पर उपस्थित थे, टीवी पर लाइव
कमेंट्री जारी थी और इसके निर्माण में भाग लेने वाले देशी विदेशी लोगों
के चेहरों की चमक देखते ही बनती थी। चमक के प्रतिबिम्ब से उद्घोषकों और
आम लोग भी अछूते नहीं बचे थे। हर व्यक्ति या तो उद्घाटन-स्थल पर था या
फिर टीवी की लाइव कमेंट्री पर। इतना हंगामा इसलिए भी था कि इमारात की हवा
ने आज तक कभी रेलगाड़ी देखी ही नहीं है। यह केवल मेट्रो ही नहीं इस देश
की पहली रेलगाड़ी भी है। ७० किलोमीटर लंबे मैगनेटिक ट्रैक पर बिना
ड्राइवर के चलने वाली यह मेट्रो दुनिया का सबसे बड़ा स्वचालित रेल तंत्र
(ओटोमेटेड रेल सिस्टम) है। इस रेल में प्रति घंटे लगभग २७,००० लोग यात्रा
करेंगे। हर ट्रेन में ५ डिब्बे रखे गए हैं जिसमें ६४३ लोगों के यात्रा
करने की सुविधा है। रेल में मोबाइल और लैपटॉप का प्रयोग किया जा सकेगा,
लेकिन इसमें खाना-पीना और पालतू जानवर ले जाना मना है। रेल सुबह छह बजे
से रात के बारह बजे तक ९० किलो मीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से दौड़ेगी।
इसके एक स्टेशन से दूसरे स्टेशन की दूरी डेढ़ किलोमीटर रखी गई है और
फिलहाल इसकी एक लाइन ही चालू हुई है। अनुमान है कि दुबई के ३० प्रतिशत
लोग इस रेल को अपने जीवन का अंग बनाएँगे। रेल के साथ-साथ हर स्टेशन पर
रेल-यात्रियों को समीपस्थ स्थानों तक पहुँचाने के लिए सहयोग करती ७७८ नई
चमचमाती बसें भी सड़क पर उतर आई हैं। रेल और बसें तो जगमग हैं ही, मेट्रो
के स्टेशनों को भी सजाने में कोई कसर नहीं रखी गई है। प्रमाण के लिए
देखें यह बर्जुमान स्टेशन जो स्टेशन कम और थियेटर ज्यादा मालूम होता है।
यहाँ की रंगीन रौशनियों के झरने और छत से लटकते फानूसों को
देखते
किसी की रेल छूट जाए तो कोई अचरज की बात नहीं है।
इमारात को कार कल्चर वाला देश कहा जाता है।
5 साल पहले यहाँ न रेल थी न बस और न साइकिलें या और कोई वाहन। रेल और
बसों के इस धमाकेदार अवतरण के बाद निश्चित तौर पर दुबई के रूप रंग के साथ
सड़क संस्कृति पूरी तरह बदल जानेवाली है। कहा जाता है कि अगर आप पाँच साल
से दुबई नहीं आए हैं तो रास्तों को पहचानना आपके बस की बात नहीं। इस रेल
और बस क्रांति के बाद सिर्फ रास्ते ही नहीं दुबई की पूरी तस्वीर ही बदल
जाने वाली है।
पूर्णिमा वर्मन
१४ सितंबर २००९
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