इस सप्ताह-
कथा महोत्सव में पुरस्कृत-
अजय कुमार गुप्ता की कहानी
रेलगाड़ी
यह
जीवन तो एक रेलगाड़ी के सदृश्य है, जो एक स्टेशन से चलकर
गंतव्य तक जाती है। न जाने कितने स्टेशनों से होकर गुज़रती
है। मार्ग में अगणित पथिक आपके साथ हो लेंगे और अगणित
सहयात्री आप से अलग हो जाएँगे। कुछ सहयात्री लंबी अवधि के
लिए आपके साथ होंगे, जिन्हें अज्ञानवश हम मित्र-रिश्तेदार
समझते हैं, परंतु शीघ्र ही वे भी अलग हो जाएँगे। लंबी अवधि
की यात्रा भी सदैव मित्रतापूर्वक नहीं बीत सकती, तो
कभी कोई छोटी-सी यात्रा आपके जीवन में परिवर्तन ला सकती है,
संपूर्ण यात्रा को अविस्मरणीय बना सकती है।' विजय
चेन्नई रेलवे स्टेशन पर
बैठकर एक आध्यात्मिक पुस्तक के पन्ने पलटते हुए यह गद्यांश
देखा। चारों ओर जनसमूह, परंतु नीरव और सूना। वह अकेले ही अकेला
नहीं था। उसने चारो ओर नज़र दौडाई, सभी लोग भीड़ में, परंतु
अकेले। किसी को किसी और की सुध नहीं। इधर-उधर देखा, चाय की
दुकान, फल की दुकान, मैग्ज़ीन कार्नर और यहाँ तक पानी पीने
का नल, हर जगह विशाल जन समूह।
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* प्रमोद
ताम्बट का व्यंग्य
ये मीठे मीठे लोग
*
डॉ. ओमप्रकाश पांडेय का आलेख
भारतीय संस्कृति में डूबा
एक फ़्रांसीसी परिवार
*
डाकटिकटों के स्तंभ में प्रशांत पंड्या के साथ
करें
शौक डाक-टिकटों
के संग्रह का
*
स्वाद और स्वास्थ्य में
स्वास्थ्यवर्धक संतरे
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पिछले
सप्ताह
रमाशंकर श्रीवास्तव का व्यंग्य
तारीफ़ भी एक बला है
*
महानगर की कहानियों में सुधा अरोड़ा की लघुकथा
सुरक्षा का पाठ
*
रूपसिंह चन्देल द्वारा अनूदित कोनी का
संस्मरण
मेरे मित्र
लियो तोल्स्तोय
*
दिविक रमेश का निबंध
मिथक: अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम
* समकालीन
कहानियों में भारत से
दीपक शर्मा की कहानी
माँ का दमा
पापा
के घर लौटते ही ताई उन्हें आ घेरती हैं, ''इधर कपड़े वाले
कारखाने में एक ज़नाना नौकरी निकली है। सुबह की शिफ़्ट में।
सात से दोपहर तीन बजे तक। पगार, तीन हज़ार रुपया। कार्तिकी
मज़े से इसे पकड़ सकती है...''
''वह घोंघी?'' पापा हैरानी जतलाते हैं।
माँ को पापा 'घोंघी' कहते हैं, ''घोंघी चौबीसों घंटे अपनी
घूँ घूँ चलाए रखती है दम पर दम।'' पापा का कहना सही भी है।
एक तो माँ दमे की मरीज़ हैं, तिस पर मुहल्ले भर के कपड़ों की
सिलाई का काम पकड़ी हैं। परिणाम, उनकी सिलाई का मशीन की
घरघराहट और उनकी साँस की हाँफ दिन भर चला करती है। बल्कि
हाँफ तो रात में भी उन पर सवार हो लेती है और कई बार तो वह
इतनी उग्र हो जाती है कि मुझे खटका होता है, अटकी हुई उनकी
साँस अब लौटने वाली नहीं।
''और कौन?'' ताई हँस पड़ती हैं, ''मुझे फ़ुर्सत है?''
पूरा घर, ताई के ज़िम्मे है। सत्रह वर्ष से।
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अनुभूति
में-
अनिरुद्ध नीरव, शरद तैलंग, कमला निखुर्पा और सनातन कुमार
बाजपेयी की नई
रचनाएँ। |
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कलम गही नहिं
हाथ- इमारात में आजकल पेरिस हिल्टन का हंगामा है।
अभिनेता अभिनेत्रियों के हंगामे न हों तो फिर जीवन व्यर्थ
... आगे पढ़े |
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रसोई
सुझाव-
नारियल की छिलका आराम से निकालने के लिए छिलका निकालने से पहले
उसे आधे घंटे तक पानी में डालकर रखें। |
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पुनर्पाठ
में - ९ जनवरी २००१ को साहित्य संगम में प्रकाशित गुलज़ार की
उर्दू कहानी का हिंदी लिप्यंतरण
धुआँ। |
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शुक्रवार चौपाल-
हम तुम और गैंडा फूल का प्रदर्शन संतोषजनक रहा। दर्शकों की उपस्थिति
भी अच्छी रही पर संतोष और अच्छाई की ... आगे
पढ़ें |
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सप्ताह का विचार- सही स्थान पर बोया गया सुकर्म का बीज ही समय आने पर महान फल देता है।
- कथा सरित्सागर
दी |
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हास
परिहास |
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1
सप्ताह का
कार्टून
कीर्तीश की कूची से |
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पाठशाला
में इस माह की
कार्यशाला-३ का विषय है सुख-दुख इस जीवन में, सभी भाग ले सकते
हैं। |
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अभिव्यक्ति का १३ जुलाई का अंक
कदंब विशेषांक होगा। इस अवसर पर
कदंब के पेड़ या फूल से संबंधित कहानी और व्यंग्य का
स्वागत है। |
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