मेरे मित्र
लियो निकोलायेविच तोल्स्तोय
'लियो
तोल्स्तोय का अंतरंग संसार' से एक संस्मरण मूल लेखक हैं- अनातोली फ्योदोरोविच कोनी
अनुवाद : रूपसिंह चन्देल
का है।
६ जून, १८८७ की एक सुन्दर
गुनगुनी सुबह। मैंने मास्को-कुर्स्क रेलवे के यसेन्की स्टेशन
पर स्प्रिंगवाली गाड़ी में सीट ग्रहण की जो मेरे लिए भेजी गई
थी, और यास्नाया पोल्याना के लिए प्रस्थान किया।
१० बजे मैं तोल्स्तोय
परिवार के सदस्यों के साथ बाहर लॉन में फैले लाइम वृक्षों के
नीचे नाश्ता ले रहा था। सामान्य बातचीत के दौरान अचानक किसी
ने चीखकर कहा, "लेव निकोलायेविच आ गए।" मैं तेज़ी से घूमा।
दो कदम दूर 'वार एण्ड पीस' (युद्ध और शान्ति) के लेखक, 'होमर
ऑफ दि रशियन इलियाड' खड़े थे।
वह साधारण कपड़े का कुरता पहने हुए थे, जिस पर चौड़ी बेल्ट
बँधी हुई थी। उन्होंनें एक हाथ बेल्ट में डाल रखा था और
दूसरे से कांसे का टी पॉट पकड़े हुए थे। दो चीज़ों ने मुझे
तुरंत प्रभावित किया : उनकी भेदक, लगभग विदीर्ण कर देने वाली
कठोर अनुभवी आँखों का दृष्टिपात जो कुलीन सौम्यता की अपेक्षा
सच्चाई की खोज की अभिव्यक्ति से चमक रही थीं... एक विवेचक और
विचारक की दृष्टि और सिर पर भूरी टोपी से लेकर घर के बने
जूते, जिन्हें उन्होंने सफेद मोजों पर पहन रखा था। उनके
कपड़ों में सुरुचिपूर्णता और स्वच्छता थी। तोल्स्तोय ने बहुत
ही सरलतापूर्वक मेरा स्वागत किया। उन्होंने अपना टी पॉट
समोवार से भरा था। वह सातवें दशक के एक मुकदमे के विषय में
बात करने लगे जो मेरी अध्यक्षता में हुआ था, जिस पर उन दिनों
बहुत अधिक चर्चा और वाद-विवाद हुआ था। उनके व्यवहार में किसी
प्रकार का बनावटीपन का चिन्ह नहीं था। उनकी टिप्पणियाँ
महत्वपूर्ण और उनके शब्दों में
निश्छलता थी, जिसने आत्मचेतना के व्यवधान और
चिन्तामुक्ति के अभाव, जो किसीसे भी पहली मुलाक़ात में बाधक
होते हैं, को अविलंब दूर कर दिया था। मैंने अनुभव किया कि
मैं उन्हें वर्षों से जानता था और लंबे अंतराल के बाद पुनः
मिल रहा था।
पहली शाम साथ बिताने के बाद
मैंने उनसे वह जगह दिखाने के लिए कहा जिसमें कुझ्मिन्स्की
परिवार रहता था, लेकिन लेव निकोलायेविच ने कहा कि मुझे नीचली
मंज़िल में उनकी स्टडी में रात बितानी है। उन्होंने मुझे उसे
दिखा दिया...। जब मैं कपड़े बदल रहा था वह बाहर चले गए और फिर
मुझे शुभ-रात्रि कहने के लिए लौटकर आए । उसके बाद ठेठ रूसी
बातें... विशेषरूप से या तो प्रवेश-कक्ष में या बिस्तर के
किनारे बैठकर होने लगीं थीं... उस समय से यास्नाया पोल्याना
में मेरे सभी दिन इसी प्रकार व्यतीत हुए थे...।
मुझे एक विशेष बातचीत याद
है। "नेक्रोसोव के विषय में तुम्हारी क्या राय है?"
तोल्स्तोय ने दूसरे कमरे से मुझसे पूछा जहाँ उनके द्वारा
किसी वस्तु को फ़र्श पर खिसकाने की आवाज़ मैंने सुनी थी।
मैंने उत्तर दिया कि मैं उनके
प्रगीतात्मक काव्य का बहुत प्रशंसक हूँ... जहाँ तक
उनकी निजी बातों का प्रश्न है, उनपर किए गए विद्वेषपूर्ण
हमलों और किसी भी प्रकार इस तथ्य को स्वीकार कर लेना कि वह
जुआरी था, एक मनुष्य के नाते, उसकी निन्दा करने और उसे
दुश्चरित्र कहने में मेरी बिल्कुल दिलचस्पी नहीं है। उसे जुआ
खेलने की सनक है जो व्यसन की सीमा तक जा पहुँचा है, "मैंने
कहा, "लेकिन व्यसन में जकड़ा हर व्यक्ति दुश्चरित्र नहीं
होता।" यह सुनकर लेव निकोलायेविच चेहरे पर प्रसन्नता लिए
मेरे कमरे में आए और बिस्तर के एक किनारे बैठकर, आनंदित स्वर
में बोले, "यह विभेदीकरण बहुत महत्वपूर्ण है।" और हम अन्य
विषयों पर लंबी चर्चा करते रहे थे।
तोल्स्तोय का उनके किसानों
के प्रति व्यवहार जानने में निःसंदेह मेरी दिलचस्पी थी,
जिसके विषय में तरह-तरह की और अनर्गल अफवाहें थीं...काउण्ट
और उनके पड़ोसियों के बीच संबन्ध सहज और स्वाभाविक थे।
यास्नाया पोल्याना के विशाल भवन में रहने वाले लोग वृद्ध और
किसानों के गहरे मित्र थे। वे किसी भी समय बीमारी, दुर्घटना, अथवा आवश्यकता होने पर दवाओं और उपचार द्वारा उनकी सहायता
के लिए तत्पर रहते थे। वे उन्हें सलाहें देते,
उच्चाधिकारियों से उनके लिए अपील करते और विपत्ति में उनके
प्रति सहानुभूति प्रकट करते थे। यह सब वे अपना कर्तव्य समझकर
बिना किसी प्रदर्शन, सहायता के लिए बिना किसी ठकुरसुहाती,
बिना उदासीनता के, धर्मपराणयता के आत्मभाव से भाईचारा के
नाते करते थे। किसान भी लेव निकोलायेविच के प्रति वैसी ही
सरलता प्रदर्शित करते थे... वे न केवल उनकी विशाल हृदयता
बल्कि उनके ज्ञान के कारण उनके प्रशंसक थे। मुझे बताया गया
था कि वे उनके बारे में कहते: "उन्हें बुद्धि मिली है
बावजूद इसके कि वह अभिजातवर्ग से हैं।"
एक बार टहलते हुए तोल्स्तोय
ने तीर्थयात्रियों के साथ रूस के एक मंदिर (संभवतः कीव अथवा
आप्तिना आश्रम ) की अपनी यात्रा के विषय में बताया, जिसके
दौरान उनके साथ यात्रा करने वालों ने उन्हें अपने में से ही
एक समझा था और उन्होंने कहा था कि उनकी उपस्थिति से वह बहुत
प्रसन्न थे। विनम्रभाव से उन्होंने सड़क और सरायों और
मदिरालयों में कुलीन समाज के प्रति अभिव्यक्त उनके
तिरस्कारपूर्ण विचारों के विषय में बताया था... कभी-कभी
किसान अपने अंतरतम के विचारो के भेद उन्हें बताया करते थे।
यह सब वर्षों बाद मास्को
में 'विवाह पारिवारिक जीवन का मूलाधार है' विषय पर एक
गर्मागर्म बहस के दौरान (जिसमें तोल्स्तोय ने भी भाग लिया
था) मुझे सुस्पष्टता से उद्घाटित हुआ था। उन्होंने त्योरियाँ
चढ़ाए हुए अपने एक साथी को बोलते हुए सुना था जिसने अपनी एक
परिचित लड़की के उस जोखिम की चर्चा की थी, जो उसने एक
'साधनहीन और बिना हैसियत' वाले व्यक्ति से विवाह करके उठाया
था।
"उसने जो किया क्या वह अपने पारिवारिक जीवन के सुख के लिए
किया?" तोल्स्तोय ने पूछा था।
"उसने इसीलिए किया।" अपनी बात पर अड़े रहकर उस व्यक्ति ने
कहा, "आप इसे भले ही मूर्खता समझें, लेव निकोलायेविच, लेकिन
यह अनुभवसिद्ध बात है कि ऐसा होता नहीं है।"
तोल्स्तोय ने अपने कंधे उचकाए, और मेरी ओर मुड़कर बोले :
"पारिवारिक खुशी के विषय में मेरा दृष्टिकोण भिन्न है, और
प्रायः मुझे वर्षों पहले यास्नाया पोल्याना के एक किसान
गोर्दई देयेव के साथ हुई बातचीत याद आती है।
"तुम इतने उदास क्यों दिख रहे हो गोर्दई?" मैंने उससे पूछा
था, "क्या कुछ ख़ास घटित हुआ है?"
"एक बड़ी विपत्ति टूट पड़ी है, लेव निकोलायेविच..." वह बोला,
"मेरी पत्नी मर गई।"
"क्या वह जवान थी?"
"ओह, नहीं। वह मुझसे एक साल छोटी थी। मैंने पसंद से उससे
शादी नहीं की थी। मैंने गलत विवाह किया था।"
"समझा। फिर वह अवश्य अच्छी मज़दूर रही होगी।"
"अच्छी मज़दूर? वह बिल्कुल मज़दूरी नहीं करती थी। पूरे समय
बीमार रहती थी। वह पिछले दस वर्षों से बिस्तर पर पड़ी थी। काम
करने का प्रयास नहीं कर सकती थी।"
"फिर तुम इतने उदास क्यों हो? चीज़ें अब तुम्हारे लिए सहज हो
जाएँगीं।"
"आह, आप क्या कह रहे हैं लेव निकोलायेविच। सहज? मैं जब शाम
काम से घर वापस लौटता, वह बिस्तर पर से ऊपर से नीचे तक मुझे
घूरती और कहती, "तुम्हारे खाने के लिए आज कुछ है, गोर्दई? अब
यह सब मुझसे कौन पूछेगा?"
"यही वह भावना है।" तोल्स्तोय ने बात समाप्त करते हुए कहा,
"साधन और हैसियत की अपेक्षा, यह पारिवारिक जीवन में
प्रसन्नता और अर्थवत्ता प्रदान करता है।"
१८८७ में तोल्स्तोय ने मुझ
पर जो प्रभाव छोड़ा था उसका पुनरावलोकन करते हुए, मैं अपनी
डायरी में संक्षेप में लिखे गए नोट्स देखकर अपनी यादों को
ताज़ा करता हूँ... मैं तोल्स्तोय के कुछ विचारों का पुर्नलेख
उसी रूप में करना चाहूँगा जैसा मैंने उनके होठों से सुना था।
"साहित्य के प्रत्येक कार्य में," उन्होंने कहा था, "हमें
तीन तत्वों को अवश्य देखना चाहिए। सबसे महत्वपूर्ण यह कि
लेखक ने क्या कहना चाहा है, अगला यह कि अपने कार्य के प्रति
लेखक ने कितना प्रेम प्रकट किया है और अंत में उसका शिल्प।
लेखक ने क्या कहना चाहा और किस प्रेम के साथ कहा, के मध्य
केवल पूर्ण सामंजस्य ही सच्ची कला का सृजन करता है। और यदि
ये दो तत्व विद्यमान हैं, तीसरा तत्व, शिल्प, स्वतः उपस्थित
हो जाता है। तुर्गनेव थोड़ा कहते हैं, लेकिन विषय के प्रति
उनमें अगाध प्रेम और आश्चर्यजनक शिल्प है। दूसरी ओर
दॉस्तोएव्स्की के पास कहने के लिए आश्चर्यजनक चीज़े हैं, और
कहने की तकनीक भी है, लेकिन अपने विषय के प्रति उनमें प्रेम
का अभाव है।"
"अपने समकालीन आलोचकों से एक लेखक कुछ नहीं सीख सकता। (आठवें
दशक के अंत में)। क्यों कि उनकी दिलचस्पी इसमें नहीं कि लेखक
ने क्या लिखा है बल्कि उसके शिल्प में होती है जबकि एक आलोचक
का काम कला के काम के उन बिन्दुओं को खोजना होता है जिनके
बिना वह कुछ नहीं होती और उनपर प्रकाश डालना होता है। हमें
आमलोगों के लिए लिखना चाहिए।''
"आमलोगों द्वारा पढ़ने के बाद किया गया मूल्यांकन और उनका
प्रेम लेखक के लिए सबसे बड़ा पुरस्कार होता है, और आमजन की
पसंद ही वास्तविक पसंद होती है। बावजूद इसके कि कुछ पुस्तकों
की आलोचकों ने भर्त्सना की लेकिन आमलोगों ने उन्हें पसंद
किया।"
"प्रकृति लोगों से बेहतर है। प्रकृति में व्यक्तित्व का
विखंडन नहीं है। वह सदैव समानरूप रहती है। उसे प्यार करना
चाहिए, क्यों कि वह सदैव सुन्दर और सदैव संघर्षरत रहती है।
तुर्गनेव ने शिकार यात्राओं के दौरान कार्यरत प्रकृति को
सुनते हुए बिना सोये रातें बिताने का चित्रण किया है।
उन्होंने उसका सप्रयास सांस खींचना सुना, यहाँ तक कि उसके
रचनात्मक प्रयत्न से उत्पन्न समय-समय पर 'उम्प...उम्प...
घुरघुराना भी सुना। धधकते सूरज के नीचे घास का मैदान विरस
होता है और देखने वालों की दिलचस्पी उसमें कम होती है, लेकिन
रात में वह कितना प्यारा होता है, जब पृथ्वी लंबी साँसे
खींचती शीतल वायु पान कर रही होती है और असीम आकाश उस पर
चंदोवे की भाँति तना हुआ होता है, और पृथ्वी से दूर अंतरिक्ष
की ओर से उठती टोड की धीमी आवाज़...।"
"लोगों को उदार हृदय कहने
में हम बहुत उदार हैं और जैसे ही भयानक सामाजिक बुराइयों का
अस्तित्व समाप्त हो जाता है उनपर जुबान बंद कर लेना हमें
प्रिय है, मानों भिन्न रूप में उनके प्रकट होने से कोई खतरा
नहीं है। यही हमने कृषिदासत्व और उसके संत्रास के विषय में
किया था जैसे ही किसानों को स्वाधीन किया गया था। लोगों और
बुराइयों को भुला दिया गया । मैं एक उप गवर्नर को जानता हूँ
जो प्रायः अपनी दयालु हृदयी प्रतिष्ठा को पसंद करता है और
उससे आनंदित होता है, बावजूद इसके कि एक समय उसने अनेकों
किसानों को कोड़े मरवाकर मौत के घाट उतरवा दिया था। आभिप्राय
यह कि क्रूरता बहुधा अपना स्वरुप बदलती रहती है और जहाँ उसकी
आशा नहीं होती वहीं प्रकट हो जाती है। सातवें दशक के अंत में
एक उच्च अधिकारी, जो कभी बहुत उदार विचारों के लिए जाना जाता
था, लेकिन अब उसे उस वास्तविकता का पश्चाताप था, यास्नाया
पोल्याना आया और शारीरिक दण्ड पुनः प्रारम्भ करने की
आवश्यकता सिद्ध करने का प्रयास यह कहते हुए किया कि कारावास
की व्यवस्था से राज्य पर भारी आर्थिक दबाव पड़ रहा था। उसने
आगे कहा कि चूँकि कुछ कैदी भाग निकलने की युक्ति खोजने में
बहुत प्रवीणता दिखाते हैं, इसलिए गंभीर अपराधियों को शारीरिक
दण्ड देकर इस प्रकार के अवसर समाप्त कर देने चाहिए। मैंने
उससे निवेदन किया कि वह वहाँ कभी नहीं आए और दोबारा मुझसे
नहीं मिले।" बात समाप्त करते हुए तोल्स्तोय ने कहा था।
बातचीत के समय मैं प्रायः
उन मामलों का उल्लेख किया करता था जिनसे अपनी कानूनी
प्रैक्टिस के दौरान मैं भली-भाँति परिचित हो गया था। उनमें
से एक तोल्स्तोय के एक उपन्यास में विषयवस्तु के रूप में
प्रयुक्त हुआ था।
जब मैं सेण्ट पीटर्सबर्ग के
प्रादेशिक कचहरी के अटार्नी पर मुकदमा चला रहा था, एक सज्जन
मुझसे मिलने आए... उनके कपड़े और आचरण इस बात का संकेत दे रहे
थे कि वह आभिजात्य वर्ग के बीच रहने के आदी थे। वह बहुत
व्यथित प्रतीत हो रहे थे और उन्होंने शिकायत की कि सहायक
प्रोसीक्यूटिंग अटार्नी ने रोसालिया नाम की कैदी को उनका
पत्र बिना पहले पढ़े सौंपने से इंकार कर दिया था। मैंने
स्पष्ट किया कि यह कारागार का एक नियम है। "फिर आप पढ़ लें",
उत्तेजित स्वर में उन्होंने कहा, "और उसे रोसालिया को देने
का आदेश दें।"
पाया गया कि रोसालिया एक
फिनिश लड़की, एक वैश्या थी, जिसे एक ग्राहक के सौ रुबल चुराने
और उन्हें 'मादाम' (एक फौजी मेजर की विधवा जो सेन्नाया
स्क्वायर के निकट एक संकरी गली में निम्नस्तर का वैश्यालय
चलाती थी) को देने के लिए सज़ा मिली हुई थी। मुकदमे के
दौरान, जैसा दिखाई दिया, वह तब भी जवान थी और उसमें सौन्दर्य
के क्षीण चिन्ह मौजूद थे। पीने के कारण उसकी आवाज़ फटी हुई
थी और उसके व्यवसाय की दूसरी दुष्टताएँ और कटुता उसे बिना एक
भी बाल घुमाए अश्लीलता व्यक्त करने की अनुमति देती थीं। बचाव
पक्ष के वकील ने घिसी-पिटी अपील दायर की थी, लेकिन जूरी के
सदस्यों ने उसे नहीं के बराबर सुना था और उसे चार महीने जेल
में कैद की सजा सुना दी थी।"
"बहुत अच्छा।" मैंने उस नौजवान से कहा, "मैं तुम्हारा पत्र
नहीं पढूँगा। इसमें क्या लिखा है तुम मुझे बता दो।"
"मैं उससे कह रहा हूँ कि वह
मुझसे शादी कर ले और मुझे उम्मीद है कि वह मेरे प्रस्ताव को
स्वीकार कर लेगी और जितना शीघ्र संभव हो हम शादी कर सकते
हैं।"
"यह शीघ्र संभव नहीं है, क्यों कि उसे अपनी पूरी सजा काटनी
है।" मैंने कहा, "तुम आभिजात वर्ग से हो, क्या तुम नहीं हो?"
"हाँ," वह बोला, और उसने अपना पुराना और आभिजातवर्गीय नाम
बताया। उसने स्पष्ट किया कि वह हमारे एक अति विशिष्ट कॉलेज
से ग्रेजुएट था और उस समय एक मंत्रालय में महत्वपूर्ण पद पर
कार्यरत था। उसने मुझे पत्र सौंप दिया और वह लगभग जाने ही
वाला था कि जब मैंने उससे निम्न-लिखित बातचीत प्रारंभ कर दी।
"इस लड़की से तुम कहाँ मिले थे?"
"एक मुकदमे के दौरान।"
"उसमें ऐसा क्या था जिससे तुम उस पर मुग्ध हो उठे? उसका
रूपरंग?"
"मैं नज़दीकबीन हूँ और मैंने उसके नाक-नक्श को नहीं के बराबर
देखा है।"
"फिर तुम उससे शादी क्यों करना चाहते हो? तुम उसका इतिहास
जानते हो? क्या मुझे उसके केस के आँकड़ें दिखाने होगें?"
"नहीं, मैं सब कुछ जानता हूँ। मैं जूरी के सदस्यों में से एक
था।"
"तुम, नेक्रासोव के शब्दों में, 'पाप के पंक में खोयी इस
आत्मा के उद्धार करने वाले', उसे सुधारो और अतीत भूलने में
उसकी सहायता करो।"
"नहीं, मैं बहुत व्यस्त हूँगा और संभवतः मुझे घर आकर केवल
डिनर करने और सोने का ही समय मिल पाएगा।"
"क्या यह संभव है कि उसका परिचय तुम्हारे रिश्तेदारों से करा
दिया जाए और उसे तुम्हारे समाज में आने-जाने दिया जाए।"
मेरे वार्ताकार ने अपना सिर हिलाया।
"फिर उसे पूरी तरह बेकार छोड़ दिया जाएगा। क्या तुम्हे इस बात
की आशंका नहीं कि इस स्थिति में वह अपने अतीत के आकर्षण से
प्रतिरोध करने में असमर्थ होगी? तुम्हारा पारिवारिक जीवन
नर्क हो जाएगा।"
वह उठ खड़ा हुआ और मेरे
कार्यालय की फर्श पर उत्तेजित-सा टहलने लगा।
"आपने जो कहा वह सच है," अंत में उसने कहा, "फिर भी मैं उससे
शादी करना चाहता हूँ।"
अगले दिन मुझे उसका पत्र
मिला जिसमें उसने उससे बात करने के लिए मुझे धन्यवाद दिया था
और शादी करने के अपने निश्चय की पुष्टि की थी। उसने मुझे
अपने प्रभाव का इस्तेमाल करने के लिए कहा था जिससे जेल
अधिकारी उसकी शादी में अड़चने डालकर बाधा उत्पन्न न करें। मैं
उसे उत्तर दे पाता इससे पहले ही रोसालिया ने उसकी पत्नी बनने
की सहमति का पत्र उसे भेज दिया था। दो दिन बाद मुझे उस
नौजवान का "उसके निजी योजनाओं में हस्तक्षेप करने का आरोप"
लगाता तीखा और क्रोधपूर्ण पत्र प्राप्त हुआ। लेकिन तब तक
चालीसा (ईस्टर से पहले के चालीस दिन) प्रारंभ हो गया था और
तुरंत शादी की कोई बात नहीं हो सकती थी। नौजवान निरंतर
रोसालिया से मिलने आ रहा था। अपनी पहली मुलाकात में उसने उसे
बताया था कि उसे एकांत कैद से बुलाया गया था, जहाँ अश्लीलता
प्रकट करने के लिए वह सजा भोग रही थी। दूल्हन के साज-सामान
की हर वस्तु : यथा - लिंगेरी, आभूषण, सिल्क और साटन के कपड़े
वह ले आया था। चालीसा के अंतिम दिनों में रोसालिया टाइफस से
बीमार हो गई और मर गई। यह समाचार उसके प्रेमी के लिए एक
भयानक आघात था। उसके बाद मैंने उसे नहीं देखा था।
दो या तीन महीने बाद जेल की
रोसालिया के विभाग की महिला वार्डर इंचार्ज ने मुझे बताया कि
रोसालिया, एक अच्छी और स्नेही लड़की थी, उससे प्रेम करने लगी
थी और उस व्यक्ति ने उससे शादी का प्रस्ताव क्यों किया था!
रोसालिया, संभवतः एक विधुर की बेटी थी जिसने फिनिश
गुबेर्निया में सेण्ट पीटर्सबर्ग में रहने वाली एक धनी महिला
की ज़मीन किराये पर ली हुई थी। अपने को बीमार अनुभव कर वह
विधुर सेण्ट पीटर्सबर्ग गया था, जहाँ डाक्टरों से उसे ज्ञात
हुआ था कि उसे पेट का कैंसर था और उसके अधिक जीवित रहने की
आशा न थी। इस समाचार के बाद वह ज़मीन की मालकिन के पास गया
था और उससे कहा था कि उसकी मृत्यु के बाद वह उसकी बेटी को
भूलेंगी नहीं। बेटी की देखभाल का आश्वासन उसे मिला था, और
उसकी मृत्यु के पश्चात बच्ची को ज़मीन की मालकिन के घर ले
आया गया था। पहले रोसालिया को खूब सजा-धजा कर रखा गया, लेकिन
जब मालकिन की उसमें दिलचस्पी कम हो गई उसे नौकरों के रहने
वाली जगह में भेज दिया गया। वह वहाँ रही और जब वह सोलह की थी
एक नौजवान की उस पर दृष्टि पड़ी थी, जो उस परिवार का
रिश्तेदार था और जिसने अभी-अभी एक फैशनेबुल कॉलेज की पढ़ाई
समाप्त की थी। यह वही व्यक्ति था जो जेल में उस लड़की से शादी
करना चाहता था। एक बार गर्मी के दिनों में, जब वह अपने
रिश्तेदार के गाँव के घर में अतिथि था, उसने उस अभागी लड़की
को पथभ्रष्ट कर दिया था और जब उनके संबन्धों का परिणाम
स्पष्ट दिखाई देने लगा क्रुद्ध महिला ने रोसालिया को घर से
बाहर निकाल दिया था बजाय उस नौजवान को निकालने के, जो कि
अधिक न्यायपूर्ण होता। नौजवान ने भी उसका परित्याग कर दिया।
रोसालिया ने एक बच्चे को जन्म दिया, जिसे उसने एक घर में
रखा, और उसके बाद इस संसार में उसका क्रमिक अधोपतन प्रारंभ
हो गया था... कदम-दर-कदम। अंततः उसने अपने को सेन्नाया
स्क्वायर के निकट एक वैश्यालय में पाया था। इस बीच, वह
नौजवान कुछ समय भिन्न प्रेदेशों में बिताने के बाद, सेण्ट
पीटर्सबर्ग में बस गया था, जहाँ उसने कई प्रकार के व्यवसाय
किए और बौद्धिक जीवन जीने लगा था।
एक सुहावने दिन भाग्य का
निर्णय हुआ कि उसे प्रादेशिक कोर्ट की जूरी का सदस्य बनाया
गया, और वहीं उसने अपनी युवावस्था की कामवासना और
स्वार्थपरता का शिकार उस हतभागी वैश्या को पहचान लिया था।
तोल्स्तोय ने तल्लीन होकर ध्यानपूर्वक रोसालिया की कहानी
सुनी थी, और अगली सुबह उन्होंने मुझसे कहा था कि सारी रात वह
उस विषय में ही सोचते रहे थे और मुझे सुझाव दिया था कि मुझे
तैथिक क्रमानुसार इस कहानी को लिखना चाहिए और प्रोश्रेदनिक
पब्लिशर्स को उसे भेजना चाहिए। यास्नाया पोल्याना छोड़ने के
दो महीने बाद मुझे उनका पत्रा मिला जिसमें उन्होंने पूछा था
कि मैं कहानी लिखने का इच्छुक हूँ या नहीं। मैंने विनयपूर्वक
उन्हें उत्तर दिया कि वह उसे अपने नये उपन्यास में प्रयोग कर
लें।
ग्यारह वर्षों बाद उनका
असाधारण उपन्यास 'रेसरेक्शन' (पुनरुत्थान) प्रकाशित हुआ था।
यास्नाया पोल्याना की मेरी पहली यात्रा की स्मृतियों में एक
स्मृति बहुत सजीव है जब मैंने तोल्स्तोय के साथ एक शाम
बितायी थी और हम तोल्स्तोय की पत्नी के एक रिश्तेदार के यहँ
गए थे, जो यास्नाया पोल्याना से सात वर्स्ट्स की दूरी पर
रहते थे और एक पारिवारिक वार्षिकोत्सव मना रहे थे। लेव
निकोलायेविच ने सलाह दी कि हमें पैदल चलना चाहिए और पूरी
यात्रा के दौरान वह उच्च भावना से परिपूर्ण और
प्रसन्नतापूर्वक बातचीत करते रहे थे। लेकिन जब हम उस शानदार
घर में पहुँचे, जहाँ मेज़ हर प्रकार की खाद्य वस्तुओं से लदी
हुई थी, उनका मूड बदल गया था। उनका चेहरा कठोर हो गया था और
आध घण्टा के अंदर ही वह मेरे बगल में आ बैठे थे और फुसफुसाते
हुए बोले थे, "हमें यहाँ से निकल चलना है।" हमने वही किया,
और हमें कोई देख पाता इससे पहले ही हम वहाँ से निकल आये थे।
जब हमने यास्नाया पोल्याना की ओर आधा वर्स्ट्स राजपथ पार कर
लिया, हमें जुगनुओं से भरी झाड़ियाँ मिलीं। बच्चों-सी
प्रसन्नता के साथ तोल्स्तोय ने उन्हें एकत्र करना प्रारंभ कर
दिया । उन्होंने उन्हें अपनी दयनीय-सी दिखनेवाली कैप में रखा
और उल्लसपूर्वक घर ले चले। उनका चेहरा जुगनुओं के हरिताभ
स्फुरदीप्त चमक से प्रकाशमान हो रहा था।
अगली बार हम १८९८ में मिले
थे। उन दिनों वह कला पर एक पुस्तक लिखने में व्यस्त थे। उसी
उद्देश्य से वह एक ऑपेरा की रिहर्शल में जाया करते थे।
१९०४ के ईस्टर सप्ताह के दौरान मैंने पुनः यास्नाया पोल्याना
की यात्रा की थी। वह विनाशकारी युद्ध के विरुद्ध थे, जिसे
यौद्धिक तैयारी के बिना स्वयं से आत्मतुष्ट हमारे दंभी राजनय
ने इतिहास से सबक न लेते हुए जापान जैसे एक ऎसे देश, जो लंबे
समय से अपने राष्ट्रीय अहंकार को पोषता आ रहा था, के साथ
प्रारंभ कर दिया था। युद्ध के संभावित निष्कर्ष से उनका रूसी
हृदय प्रकंपित हो उठता था। मेरे ठहरने के दौरान हमें समाचार
प्राप्त हुआ कि मकारोव मारे गए थे और इस समाचार से वह
(तोल्स्तोय) बहुत दुखी हुए थे। समाचारों के लिए वह सदैव
उत्कंठित रहते थे, और उसे जानने के लिए घोड़े पर सवार होकर वह
तुला जाते थे और अपनी बातचीत में घूमफिर कर वह उसी विषय पर
चर्चा करने लगते थे।
१५ जून २००९ |