कथा महोत्सव में पुरस्कृत-
भारत से
'पावन' की
कहानी
४६
डस्की लेन
मकान
की दीवार पर बंगला भाषा में नाम और मकान नम्बर लिखा था। उसे
सिर्फ़ ४६ ही समझ आया। शायद वह सही पते पर था। मकान बहुत
पुराना था, शायद अंग्रेज़ों के ज़माने से भी पुराना। जैसा
जर्जर और उजड़ा वह बाहर से देखने पर लग रहा था निश्चय ही
भीतर से भी वैसा ही होगा, उसने सोचा। इस मकान के बाद गली
बन्द थी, यानि गली का आखिरी मकान। गली सूनी पड़ी थी और वह
वहाँ अकेला खड़ा था। दरवाज़े पर घंटी का स्विच नहीं था। उसने
कुंडी से दरवाज़ा खटखटाया। रुक-रुककर बूँदाबाँदी हो रही थी
जो किसी भी समय रौद्र रूप धारण कर सकती थी।
कालका मेल से जब वह हावड़ा स्टेशन पर उतरा था तो बारिश हो
रही थी। गाड़ी तीन घंटे लेट थी। सुबह के साढ़े दस बजे थे
मगर लग रहा था जैसे शाम हो गई हो। सामान के नाम पर उसके पास
एक छोटा-सा बैग था जिसमें एक तौलिया, टूथब्रश और एक जोड़ी
कपड़े थे और न बताए जाने वाले सामान में एक बटनदार चाकू था
जो उसके मुताबिक वरुण मंडल के खून का प्यासा था।
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अनूप शुक्ला का व्यंग्य
चिंता करो सुख से जियो
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धारावाहिक में प्रभा
खेतान के उपन्यास
आओ पेपे घर चलें का
आठवाँ भाग
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दिविक रमेश का निबंध
कला माध्यम संवाद या विवाद
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रचना प्रसंग में द्विजेंद्र द्विज का आलेख
हिमाचल की समकालीन गज़ल |
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पिछले
सप्ताह
पराशर गौड़ का व्यंग्य
हाय रे पुरस्कार
आज सिरहाने
जम्मू जो कभी शहर था
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धारावाहिक में प्रभा
खेतान के उपन्यास
आओ पेपे घर चलें का
सातवाँ भाग
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साहित्य समाचार में
देश-विदेश से अनेक
साहित्यिक-सांस्कृतिक सूचनाएँ
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कथा महोत्सव में पुरस्कृत-
कैनेडा से सुमन कुमार घई की
कहानी
उसने सच कहा था
ड्यूमारिए
लाईट देना”, - स्वर में अपरिपक्वता का आभास होते ही मैंने सर
उठाया तो सामने मेकअप की पर्तों की असफलता के पीछे से झाँकता
बचपन दिखाई दिया। कोई पंद्रह-सोलह बरस की लड़की अपनी उम्र से
बड़ी लगने का भरपूर प्रयास कर रही थी।
“तुम्हारे पास कोई प्रूफ़ ऑफ़ एज है?”
“क्या मतलब?” उसकी अनभिज्ञता भी उसके प्रयास की तरह ही झूठी
थी। मैं जानता था कि वह यही प्रश्न न जाने कितनी बार सुन
चुकी होगी।
“मतलब क्या? ड्राईवर लाईसेंस, बर्थ सर्टीफिकेट... कुछ भी...
तुम जानती तो होगी”, मैंने उसके चेहरे को टटोला।
उसने कन्धे से लटके बड़े पर्स में ढूँढने का बहाना किया और
फिर से मेरे चेहरे पर नज़रें टिका कर भोलेपन से बोली, “मिल
नहीं रहा, मेरा विश्वास करो... कोई समस्या नहीं होगी, सब ठीक
है”, उसने मुझे झूठा आश्वासन दिया।
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अनुभूति
में- आनंद शर्मा, गुलज़ार, तेजेंद्र शर्मा, नवल किशोर
बहुगुणा, महेन्द्र प्रताप पाण्डेय 'नन्द' और हरिवंश राय बच्चन की नई
रचनाएँ |
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कलम गही नहिं
हाथ- अयोध्या सिंह उपाध्याय एक
रचना में कहते हैं-
लोग यों ही हैं झिझकते, सोचते, जबकि उनको छोड़ना पड़ता है घर .. आगे पढ़े |
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रसोई
सुझाव-
दही खट्टा हो तो उसमें दो प्याले ठंडा पानी डालें, आधे घंटे बाद
धीरे धीरे पानी गिरा दें खटास निकल जाएगी। |
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पुनर्पाठ
में - १५ फरवरी २००१ को प्रकाशित डॉ.लक्ष्मीनंदन बोरा की
असमिया कहानी का हिंदी रूपांतर
नौकरी की
आवश्यकता। |
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क्या आप जानते हैं?
मंगलकारक स्वस्तिक शब्द सु+अस+क से बना है। 'सु' का अर्थ है
अच्छा, 'अस' का 'सत्ता' या 'अस्तित्व' और 'क' का करने वाला। |
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शुक्रवार चौपाल-
दस्तक और बड़े भाई साहब की तैयारी पूरी हो चुकी है। पोस्टर और
निमंत्रण पत्र छप कर आ गए हैं। ...
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सप्ताह का विचार- बुद्धिमान मनुष्य अपनी हानि पर कभी नहीं
रोते बल्कि साहस के साथ उसकी क्षतिपूर्ति में लग जाते हैं। --
विष्णु शर्मा |
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हास
परिहास |
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1
सप्ताह का
कार्टून
कीर्तीश की कूची से |
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