हास्य व्यंग्य | |
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चिंता करो,
सुख से जियो
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हमने दोस्त के यहाँ फोन किया। उसके
बच्चे ने उठाया। हमारा मित्र रोज चिंता कर रहा है, माने कि दुखी है। उसके दुख में दुखी न हुए तो वो दुख हमारे पास पातक बनकर आएग। भारी वाला। विलोकेगा। लफ़ड़ा होगा। आफ़त है। हमने सोचा मित्र के दुख में दुखी हो आते हैं। अपना पातक बचा लेते हैं। सावधानी सटा के , दुर्घटना घटा लें। पाँच मिनट में हम दुख जाहिर करने के लिए दौड़े। पहुँचे दोस्त-द्वारे। सोचा पूछेंगे-क्या हाल हैं प्यारे। क्या हुआ अब हम इतने गैर हो गए कि बताते भी नहीं और अकेले-अकेले दुखी हो लेते हो। कम से कम हमारा तो सोचते क्या होगा! ये तो कहो हमने फोन कर लिया वर्ना हम तुम्हारे दुख में दुखी न हो पाते और हमें तो बड़ा दुख पकड़ लेता। तुम इतने खुदगर्ज निकलोगे, सोचा भी न था। तुमसे ऐसी आशा तो न थी। लेकिन हम कुछ पूछें इससे पहले ही
दोस्त ढीले नाड़े वाला पायजामा संभालते हुए बोला- आओ, आओ। बैठो। इतनी सुबह। सब
खैरियत तो है। बेटा मून्नू देखो अंकल आए हैं। चाय-पानी लाओ। मम्मी को बुलाओ। देखते
आओ सूरज किधर निकला है। कौन कहता है दुनिया में साधुवाद युग का श्राद्ध हो गया। ये
तो हमींअस्तो, हमीअस्तो वाला सीन है। हमने पूछना शुरू किया- आदमी नियमित चिंता करता रहे तो उसका
वजन घटता रहता है। चाहे जो खाए नियंत्रण में रहता है। हमारे यहाँ पहले बहुत से लोग
बता गए हैं चिंता से आदमी दुबला होता है। इसीलिए ये देखो हमने अपने घर की दीवारों
पर चिंता थेरेपी वाले पोस्टर लगा रखे हैं- चिंता करो, सुख से जियो। चिंता सरोवर में
डुबकी लगायें, अपना वजन मनचाहा घटायें। बढ़ते वजन से परेशान, नियमित चिंता से तुरंत
आराम। चिंतित होते ही वजन की चर्बी गायब। अब ये तो श्रद्धा-विश्वास की बात है।
जिसको श्रद्धा होगी उसकी फ़ायदा मिलेगा। जिसको नहीं होगी नहीं मिलेगा। और फिर चिंता
में भी ईमानदारी होनी चाहिए। श्रद्धा में खोट होगी तो चिंता का फ़ायदा नहीं मिलेगा।
चिंता शुद्ध होनी चाहिए, २४ कैरेट सोने की तरह तभी आपको लाभ मिलेगा।- दोस्त साँस
लेने के लिए रुका। अच्छा तुम ही बताओ भला अमेरिकन
राष्ट्रपति की स्लिमनेस का राज- हमने सवाल किया। आजकल भी देखिए ये जो जीवन अवधि बढ़ गयी है, लोग ज्यादा दिन तक जीने लगे हैं तो इसीलिए कि लोग तमाम तरह की चिंताएँ करने लगे हैं। दुनिया जटिल हो रही है। लोगों की चिंताएँ भी जटिल हो रही हैं। हर समय अंग्रेजीपूर्ण माहौल में रहने वाला हिंदी की स्थिति के लिए दुखी है। बात-बात पर गाली निकालने वाले को समाज में घटते भाईचारे की भावना चिंतित करती है। कुछ लोग अपनी चिंता का स्तर उठाकर देश तक ले जाते हैं। देश की चिंता के बाद भी जिनकी चिंता का स्टाक खतम नहीं होता वो अपनी चिंता का तंबू पूरे विश्व में तान देते हैं। दुनिया में आज जहाँ भी परिवर्तन हुए हैं वे सब के सब चिंतित लोगों के कारण हुए। अपने देश की आजादी की लड़ाई में जो भी महान नेता हुए वे देश की चिंता में दुबले रहते थे तब जाकर हमें आजादी मिल पायी। गांधीजी देश की चिंता के ही कारण वे इतने दुबले-पतले थे कि सरपट चलकर हर क्षेत्र में पहुँचकर चिंतित हो जाते थे। इसीलिए देश को आजाद कराने में उनका नाम आदर से लिया जाता है। अगर अभी तक आप चिंतित रहना नहीं सीख पाए तो समझ लीजिए आपकी जीवन शिक्षा अधूरी है। आप तुरंत उठिए और चिंता करना शुरू कर दीजिए। उद्बोधन इसके बाद समाप्त हो गया। हम उठकर चल दिए। रास्ते में हमने अपने साथ के युवा दोस्त, जो दोस्त के घर मेरे साथ गया था और जिसने अपने स्वभाव के विपरीत अब तक चुप रहकर अपनी समझदारी का परिचय से दिया था, से पूछा- क्यों यार इस चिंता थेरेपी के बारे में तुम्हारा क्या कहना विचार है? भाई अगर आप बुरा न मानें तो मुझे तो
आपका यह दोस्त सिरफ़िरा लगता है।-युवा साथी ने राय दी! अरे उसको ये तक नहीं पता कि आजादी के
समय यहाँ कोई गांधी नहीं थे। प्रियंका, राहुल, वरुण गांधी उस समय पैदा नहीं हुए थे।
सोनिया गांधी, मेनका गांधी दोनों की उस समय शादियाँ हुईं नहीं थी लिहाजा उनके आजादी
दिलाने का कोई सवाल ही नहीं उठता। फिर कहाँ से गांधीजी आजादी के समय आ गए। जबकि
आपका दोस्त बताता है कि गांधीजी ने देश को आजाद कराने में योगदान दिया। आपके जिस
दोस्त की इतिहास की समझ इस हद दर्जे की माशाअल्लाह है उसकी किसी भी बात पर गौर करने
के पहले से मैं हजार बार विचार करूंगा। मुझे तो चिंता होने लगी है कि कैसी-कैसी समझ
वाले लोग आपके दोस्त हैं। ९ मार्च २००९ |