इस
सप्ताह
कालिदास जयंती के अवसर
पर, कालिदास के नाटक विक्रमोर्वशीयम् का विष्णु प्रभाकर द्वारा हिंदी
कथा रूपांतर
विक्रमोर्वशी
एक बार देवलोक की परम सुंदरी
अप्सरा उर्वशी अपनी सखियों के साथ कुबेर के भवन से लौट रही
थी। मार्ग में केशी दैत्य ने उन्हें देख लिया और तब उसे उसकी
सखी चित्रलेखा सहित वह बीच रास्ते से ही पकड़ कर ले गया। यह देखकर दूसरी अप्सराएँ
सहायता के लिए पुकारने लगीं, "आर्यों! जो कोई भी देवताओं का
मित्र हो और आकाश में आ-जा सके, वह आकर हमारी रक्षा करें।"
उसी समय प्रतिष्ठान देश के राजा पुरुरवा भगवान सूर्य की
उपासना करके उधर से लौट रहे थे। उन्होंने यह करुण पुकार सुनी
तो तुरंत अप्सराओं के पास जा पहुँचे। उन्हें ढाढ़स बँधाया और
जिस ओर वह दुष्ट दैत्य उर्वशी को ले गया था, उसी ओर अपना रथ
हाँकने की आज्ञा दी। अप्सराएँ जानती थीं कि
पुरुरवा चंद्रवंश के प्रतापी राजा है और जब-जब देवताओं की
विजय के लिए युद्ध करना होता है तब-तब इंद्र इन्हीं को, बड़े
आदर के साथ बुलाकर अपना सेनापति बनाते हैं। इस बात से उन्हें बड़ा
संतोष हुआ और वे उत्सुकता से उनके लौटने की राह देखने लगी।
उधर राजा पुरुरवा ने बहुत शीघ्र ही राक्षसों को मार भगाया और
उर्वशी को लेकर वह अप्सराओं की ओर लौट चले।
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रवींद्रनाथ त्यागी का व्यंग्य
कवि कालिदास का जन्म स्थान
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आज सिरहाने
मोहन राकेश का
नाटक आषाढ़ का एक दिन
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संस्कृति में सुनीता शानू का आलेख
कालिदास की अमूल्य कृतियाँ
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अमितेश कुमार का साहित्यिक निबंध
कालिदास का कवि
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पिछले सप्ताह
अविनाश वाचस्पति का व्यंग्य
तेरस की
तहस-नहस और दिवाली का दिवाला
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लोक-जीवन में हर्षनंदिनी भाटिया का आलेख
ब्रज के लोकगीतों में
गोवर्द्धन-पूजा
कलादीर्घा में
दीपावली
विभिन्न
कलाकारों की तूलिका से
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साहित्य समाचारों में
मेरठ,
दिल्ली,
बाँदा,
हैदराबाद,
चंडीगढ़,
नॉर्वे
और
शिमला से नए समाचार
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के. वि. नरेन्द्र की तेलुगु कहानी का
कोल्लूरि सोम शंकर द्वारा हिंदी रूपांतर
झाड़ू
आधी रात, थका हुआ नगर, आधे सपने
देखता सो रहा है - जैसे युद्ध विराम हो। शीत चुपचाप आक्रमण कर
रही है। सड़क के लैंपपोस्ट के प्रकाश में जो बर्फ़ बरस रही है,
दिखाई भी नहीं देती। पूरी सड़क खाली है। प्रश्न चिह्न की तरह
झुकी कमर से जवाबों को छूकर उठाते झाडू... बिना माँ बाप की
नन्हीं मुर्गियाँ दानों की तलाश में जब कच्ची ज़मीन पर झुकती
हैं तब उनके फड़फड़ाते डैनों से आवाज़ के साथ जिस तरह धूल उठती
है उसी तरह नगर के कूड़े को झाड़ते झुके हुए ये लगभग तीस लोग
हैं। सुजाता को इस काम
की आदत नहीं है। ज़ोर से साँस लेती है, एक बार झुकती है और फिर
सीधी खड़ी होकर अंगड़ाई लेती है। उस की उम्र लगभग बीस साल
होगी। दसवीं पास
सुजाता को काम दिलाने के लिए जब उसका मर्द यहाँ लाया तब उसे
क्या पता था कि काम क्या है। पहले दिन जब उसने कहा कि उसे
सड़क पर झाडू लगाने का काम नहीं करना है तो उसका मर्द नरसिंह
बहुत नाराज़ होकर ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगा था, झाडू लगाना भी
नहीं आता तो कैसी औरत हो? |
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अनुभूति
में-
नागार्जुन, रामधारी सिंह दिनकर, वीरेंद्र जैन, साग़र पालमपुरी,
वर्तिका नंदा और शार्दूला की नई रचनाएँ |
कलम गही नहिं हाथ-
कवि कालिदास का जन्मदिन विक्रम
संवत के अनुसार देव प्रबोधिनी एकादशी को मनाया जाता है। इस वर्ष यह तिथि
९ नवंबर को पड़ रही है। विश्व भर के संस्कृत प्रेमी हर वर्ष इसे कालिदास
जयंती के रूप में मनाते हैं। उज्जैन कालिदास की कार्य-स्थली थी। यहाँ कालिदास जयंती कालिदास महोत्सव के रुप में धूमधाम से मनाई जाती
है। इस वर्ष इस महोत्सव के भी सौ वर्ष पूरे होने पर विशाल आयोजन के
समाचार हैं। कालिदास केवल कवि ही नहीं भारतीय संस्कृति के सुदृढ़ आधार
स्तंभ भी हैं। उनके बिना भारतीय साहित्य की कल्पना नहीं की जा सकती।
उन्होंने संस्कृत साहित्य को तो लालित्य और लोकप्रियता का अद्भुत उपहार
दिया ही समस्त भारतीय साहित्यिक परंपरा को भी इस प्रकार प्रभावित किया कि
आज तक उसकी प्रासंगिकता और आकर्षण समाज से लुप्त नहीं हुआ है। हिन्दी की
आधुनिक साहित्य परंपरा पर भी कालिदास का वरद हस्त देखा जा सकता है। उनके
इस व्यापक प्रभाव का पूर्वानुमान करते हुए ही उन्हें कविकुल गुरू की
उपाधि दी गई थी। उन्होंने रंगमंच पर संगीत, कला और लालित्य को जोड़ने का
अद्भुत काम किया। कालिदास जयंती के अवसर पर साहित्य, संस्कृति और संगीत की
इस अनन्य प्रतिमा को सादर नमन करते हुए अभिव्यक्ति का यह अंक उनके ही
श्री चरणों में सादर समर्पित है।
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पूर्णिमा वर्मन (टीम अभिव्यक्ति)
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क्या आप जानते हैं?
कि कालिदास के गीति काव्य ऋतुसंहार के छै सर्गों में उत्तर भारत की
छै ऋतुओं
का विस्तृत वर्णन किया गया है। |
सप्ताह का विचार- सब प्राचीन अच्छा और सब नया बुरा नहीं
होता। बुद्धिमान पुरुष स्वयं परीक्षा द्वारा गुण-दोषों का विवेचन
करते हैं। - कालिदास |
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