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एस. आर. हरनोट के कथा संग्रह जीनकाठी का लोकार्पण

कथाकार एस. आर. हरनोट की कथा पुस्तक 'जीनकाठी' का लोकार्पण शिमला में सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. गिरिराज किशोर ने २२ सितम्बर, २००८ को श्री बी. के. अग्रवाल, सचिव (कला, भाषा एवं संस्कृति) हि. प्र. व १५० से भी अधिक साहित्यकारों, पत्रकारों व पाठकों की उपस्थिति में किया। 'जीनकाठी तथा अन्य कहानियाँ' आधार प्रकाशन प्रा. लि. ने प्रकाशित की है। इस कृति के साथ हरनोट के पाँच कहानी संग्रह, एक उपन्यास और पाँच पुस्तकें हिमाचल व अन्य विषयों प्रकाशित हो गई हैं।
चित्र में- एस.आर हरनोट के कहानी संग्रह 'जीनकाठी' का लोकार्पण करते प्रख्यात साहित्यकार डॉ. गिरिराज किशोर। उनके साथ है सचिव, कला, भाषा और संस्कृति बी.के. अग्रवाल और लेखक राजेन्द्र राजन।

कानपुर (उ.प्र.) से पधारे प्रख्यात साहित्यकार डॉ. गिरिराज किशोर ने कहा उन्हें भविष्य के एक बड़े कथाकार के कहानी संग्रह के विस्तरण का शिमला में मौका मिला। उन्होंने हरनोट की कहानियों पर बात करते हुए कहा कि आत्मकथात्मक लेखन आसान होता है लेकिन वस्तुपरक लेखन बहुत कठिन है क्योंकि उसमें हम दूसरों के अनुभवों और अनुभूतियों को आत्मसात करके रचना करते हैं। हरनोट में यह खूबी है कि वह दूसरों के अनुभवों में अपने आप को, समाज और उसकी अंतरंग परंपराओं को समाविष्ट करके एक वैज्ञानिक की तरह पात्रों को अपनी रचनाओं में प्रस्तुत करते हैं। उनका मानना था कि इतनी गहरी, इतनी आत्मसात करने वाली, इतनी तथ्यपरक और यथार्थपरक कहानियाँ बिना निजी अनुभव के नहीं लिखी जा सकती। उन्होंने संग्रह की कहानियों जीनकाठी, सवर्ण देवता दलित देवता, एम डॉट काम, कालिख, रोबो, मोबाइल, चश्मदीद, देवताओं के बहाने और माँ पढ़ती है पर विस्तार से बात करते हुए स्पष्ट किया कि इन कहानियों में हरनोट ने किसी न किसी मोटिफ का समाज और दबे-कुचले लोगों के पक्ष में इस्तेमाल किया है जो उन्हें आज के कहानीकारों से अलग बनाता है। हरनोट की संवेदनाएँ कितनी गहरी हैं इसका उदाहरण माँ पढ़ती है और कई दूसरी कहानियों में देखा जा सकता है।

जाने-माने आलोचक और शोधकर्ता और वर्तमान में उच्च अध्ययन संस्थान में अध्येता डॉ. वीरभारत तलवार का मानना था हरनोट की कहानियों में ग़ज़ब का कलात्मक परिवर्तन हुआ है। उनकी कहानियों की दैहिक भंगिमाएँ और उनका विस्तार अति सूक्ष्म और मार्मिक है जिसे डॉ. तलवार ने जीनकाठी, कालिख और माँ पढ़ती है कहानियों के कई अंशों को पढ़ कर सुनाते प्रमाणित किया। कथाकार और उच्च अध्ययन संस्थान में फैलो डॉ. जयवन्ती डिमरी ने हरनोट को बधाई देते हुए कहा कि हरनोट की कहानियों में स्त्री और दलित विमर्श के साथ बाजारवाद और भूमंडलीकरण के स्वरों के साथ हिमाचल के स्वर मौजूद है। वरिष्ठ कहानीकार सुन्दर लोहिया ने अपने वक्तव्य में कहा कि हरनोट की कहानियों जिस तरह की सोच और विविधता आज दिखाई दे रही है वह गंभीर बहस माँगती है।

हरनोट ने अपनी कहानियों में अनेक सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने चश्मदीद कहानी का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए कहा कि कचहरी में जब एक कुत्ता मनुष्य के बदले गवाही देने या सच्चाई बताने आता है तो हरनोट ने उसे बिन वजह ही कहानी में नहीं डाला है, आज के संदर्भ में उसके गहरे मायने हैं जो प्रशासनिक और न्यायिक व्यवस्था पर बड़ा प्रश्नचिह्न लगाते हैं। स तरह हरनोट की कहानियाँ समाज के लिए कड़ी चुनौती हैं जिनमें जाति और वर्ग के सामंजस्य की चिंताएँ हैं, नारी विमर्श हैं, बाज़ारवाद है और विशेषकर हिमाचल में जो देव संस्कृति के सकारात्मक और नकारात्मक तथा शोषणात्मक पक्ष है उसकी हरनोट गहराई से विवेचना करके कई बड़े सवाल खड़े करते हैं। लोहिया ने हरनोट की कहानियों में पहाड़ी भाषा के शब्दों के प्रयोग को सुखद बताते हुए कहा कि इससे हिन्दी भाषा समृद्ध होती है और आज के लेखक जिस भयावह समय में लिख रहे हैं हरनोट ने उसे एक ज़िम्मेदारी और चुनौती के रूप में स्वीकारा है क्योंकि उनकी कहानियाँ समाज में एक सामाजिक कार्यवाही है।

हिमाचल विश्वविद्यालय के सान्ध्य अध्ययन केन्द्र में बतौर एसोसिएट प्रोफ़ेसर व लेखक डॉ. मीनाक्षी एस. पाल ने हरनोट की कहानियों पर सबसे पहले अपना वक्तव्य प्रस्तुत किया। लोकापर्ण समारोह के अध्यक्ष और कला, भाषा और संस्कृति के सचिव बी.के अग्रवाल जो स्वयं भी साहित्यकार हैं ने हरनोट की कथा पुस्तक के रिलीज होने और इतने भव्य आयोजन पर बधाई दी। उन्होंने डॉ. गिरिराज किशोर के इस समारोह में आने के लिए भी उनका आभार व्यक्त किया। मंच संचालन लेखक और इरावती पत्रिका के संपादक राजेन्द्र राजन ने मुख्य अतिथि, अध्यक्ष और उपस्थिति लेखकों, पाठकों, मीडिया कर्मियों का स्वागत करते हुए हरनोट के व्यक्तित्व और कहानियों पर लंबी टिप्पणी प्रस्तुत करते हुए किया।

२७ अक्तूबर २००८

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