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                      एक बार देवलोक की परम सुंदरी 
                      अप्सरा उर्वशी अपनी सखियों के साथ कुबेर के भवन से लौट रही 
                      थी। मार्ग में केशी दैत्य ने उन्हें देख लिया और तब उसे उसकी 
                      सखी चित्रलेखा सहित वह बीच रास्ते से ही पकड़ कर ले गया।
                      
                       यह देखकर दूसरी अप्सराएँ 
                      सहायता के लिए पुकारने लगीं, "आर्यों! जो कोई भी देवताओं का 
                      मित्र हो और आकाश में आ-जा सके, वह आकर हमारी रक्षा करें।" 
                      उसी समय प्रतिष्ठान देश के राजा पुरुरवा भगवान सूर्य की 
                      उपासना करके उधर से लौट रहे थे। उन्होंने यह करूण पुकार सुनी 
                      तो तुरंत अप्सराओं के पास जा पहुँचे। उन्हें ढाढ़स बँधाया और 
                      जिस ओर वह दुष्ट दैत्य उर्वशी को ले गया था, उसी ओर अपना रथ 
                      हाँकने की आज्ञा दी।  अप्सराएँ जानती थीं कि 
                      पुरुरवा चंद्रवंश के प्रतापी राजा है और जब-जब देवताओं की 
                      विजय के लिए युद्ध करना होता है तब-तब इंद्र इन्हीं को, बड़े 
                      आदर के साथ बुलाकर अपना सेनापति बनाते हैं। इस बात से उन्हें बड़ा 
                      संतोष हुआ और वे उत्सुकता से उनके लौटने की राह देखने लगी। 
                      उधर राजा पुरुरवा ने बहुत शीघ्र ही राक्षसों को मार भगाया और 
                      उर्वशी को लेकर वह अप्सराओं की ओर लौट चले। 
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