दिनांक २९ सितंबर २००८
हिन्दी विभाग, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ में आयोजित संगोष्ठी का उद्घाटन
विश्वविद्यालय के कुलपति माननीय प्रो. एस. के. काक और मुख्य अतिथि केन्द्रीय हिन्दी
संस्थान के उपाध्यक्ष प्रो. राम शरण जोशी ने माँ सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण
एवं दीप प्रज्वलित कर किया।
चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के बृहस्पति भवन में
हिन्दी विभाग की ओर से आयोजित 'साहित्येतर हिन्दी लेखन` विषय पर दो दिवसीय संगोष्ठी
के उद्घाटन भाषण में प्रो. राम शरण जोशी ने प्रथम सत्र 'समाज विज्ञान और हिन्दी' का
विषय प्रवर्तन करते हुए प्रो. राम शरण जोशी ने कहा कि हिन्दी को लेकर एक आम धारणा
बन गई है कि यह केवल कविता, कहानी, उपन्यास आदि साहित्यिक विधाओं की भाषा है, इसमें
ज्ञान-विज्ञान नहीं है। जबकि ऐसा नहीं है। उन्नीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ से लेकर
ही इसमें साहित्यिक विधाओं के अतिरिक्त भी लेखन होता रहा है। सरस्वती के संपादक और
हिन्दी के उन्नायक आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने सम्पत्ति शस्त्र पर एक किताब
लिखी थी। इसके बाद हंस, प्रताप, दिनमान, दैनिक हिन्दुस्तान व धर्मयुग आदि
पत्र-पत्रिकाओं में विज्ञान के विषयों पर अनेक लेख लिखे गए। इस समय लघु पत्रिकाओं
में साहित्येतर विषयों पर काफी सामग्री प्रकाशित की जा रही है, इससे मौलिक लेखकों
को प्रोत्साहन मिल रहा है। आज मीडिया को लेकर मौलिक लेखन हाथों हाथ बिक रहा है।
अध्यक्षीय वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए कुलपति
माननीय प्रो. एस. के. काक ने कहा कि हिन्दी में विज्ञान, तकनीक, इलैक्ट्रोनिक्स आदि
विषयों में भी लिखना होगा। काशी हिन्दी वि.वि. में १९८० से विज्ञान विषय के शोध
प्रबंध हिन्दी में लिखे जा रहे हैं। यहाँ भी हमें इसी प्रकार का प्रयास करना चाहिए।
हमारी कोशिश हो कि हिन्दी का विकास सिर्फ़ भारत में ही नहीं वरन् पूरी दुनिया में
होना चाहिए।
संगोष्ठी को आगे बढ़ाते हुए प्रो० कमल नयन काबरा
ने कहा खुद को आम आदमी से जोड़े बिना कोई भी भाषा अपना विकास नहीं कर सकती। हमारे
सामने बड़ा सवाल यह है कि हम अपना काम अपनी भाषा में क्यों नहीं करते। हमें जनता के
सरोंकारों को समझना होगा। ऐसा कोई भी विषय नहीं है चाहे वह समाज विज्ञान हो या
प्राकृतिक विज्ञान उसके सार तत्व को हिन्दी के माध्यम से समझाया जा सकता है
उन्होंने कहा कि आज के दौर में हमारे देष में वैज्ञानिक परिवर्तन तो आया है लेकिन
मानसिकता में परिवर्तन नहीं हुआ। हम आज भी उपनिवेशवादी मानसिकता से ग्रस्त हैं और
अंग्रेजी में लिखने बोलने को लेकर श्रेष्ठता ग्रंथि से पीड़ित सामायिक वार्ता के
संपादक डॉ. प्रेम सिंह ने कहा कि हिन्दी में जो भी साहित्य लिखा जा रहा है वह तो
मान्यता प्राप्त करता गया परंतु साहित्येतर लेखन आलोचकों ने गंभीरता से नहीं लिया।
इससे हिन्दी का नुकसान हुआ।
कार्यक्रम में प्रो. अर्चना शर्मा ने कहा कि
राजनीति विज्ञान सहित समाज विज्ञान के विषयों में महत्वपूर्ण लेखन जो हो रहा है इस
अवसर पर वक्ताओं के अतिरिक्त डॉ. एस. के. कालरा, डॉ. गुरमीत सिंह, डॉ. अशोक कुमार,
वेदप्रकाश 'वटुक' तथा साधक कौशिक ने भी विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम के प्रथम सत्र
का संचालन हिन्दी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. नवीन चन्द्र लोहनी ने किया। इस अवसर
पर डॉ. नवीन चन्द्र लोहनी द्वारा लिखित खड़ी बोली के प्रमुख रचनाकार तथा रचनाएँ (सन्दर्भ
मेरठ मण्डल) पुस्तक का विमोचन किया गया।
संगोष्ठी का द्वितीय सत्र 'विज्ञान और हिन्दी' पर
केन्द्रित रहा। इस सत्र की अध्यक्षता भारत के वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग
के अध्यक्ष प्रो. के. विजयकुमार और संचालन प्रो. वाई. विमला ने किया।
सत्र के अध्यक्ष के. विजय कुमार ने कहा कि लोगों में एक भ्रांत धारणा विद्यमान है
कि हम सोचते किसी और भाषा में हैं और बोलते हैं दुसरी भाषा में। ऐसा नहीं है अपने
आसपास के वातावरण से जो कुछ हम सीखते हैं उसे ही बोलते हैं। हिन्दी में तकनीकी
शब्दावली बहुत कठिन नहीं है। हमें धीरे-धीरे अंग्रेजी को हटाने और हिन्दी को बढ़ाने
का प्रयास करना चाहिए। प्रो. के. विजय कुमार ने कहा कि भाषाओं के विकास में हमें यह
ध्यान ज़रूर देना है कि सभी चीज़ें भाषा की प्रकृति के अनुसार तैयार हों। जब तक हम
किसी शब्द के परिवेष को नहीं जानते तब तक उसके बारे में अभिव्यक्ति तैयार करना उचित
नहीं होता। उन्होंने कई उदाहरण देकर अपने विषय को रखा और दावा किया कि भारतीय
भाषाएँ और हिन्दी का विकास तीव्रता से हो रहा है।
इस सत्र का विषय प्रवर्तन करते हुए मुख्य अतिथि
नारायण कुमार ने कहा कि आधुनिक भारत के निर्माण में बौद्धिक, सांस्कृतिक और वैचारिक
विकास की उपेक्षा कर सिर्फ़ आर्थिक विकास पर ज़ोर दिया गया, इसका खामियाजा हमें बाद
में भुगतना पड़ा। अंग्रेज़ी आज विज्ञान की भाषा बनी हुई है। उन्होंने कहा कि जब तक
हम अपनी मातृभाषा में अध्ययन नहीं करते तो वैश्विक स्तर पर मौलिक अनुसंधान नहीं
पाएँगे। बिना भारतीय भाषा में ज्ञान-विज्ञान के विकास के हम अपने देश का विकास नहीं
कर सकते। उन्होंने बताया कि तकनीकी शब्दावली आयोग ने सरल शब्दों का निर्माण किया
ताकि हिन्दी में भी विज्ञान लेखन किया जा सके।
लेखन के लिए कई वैज्ञानिक पुरस्कारों से पुरस्कृति
सुभाष चन्दर ने कहा कि आज विज्ञान लेखन में रोज़गार की व्यापक संभावनाएँ है। हिन्दी
के छात्र-छात्राओं को विज्ञान लेखन की ओर प्रवृत्त होना चाहिए जिसमें रोज़गार की
प्रयाप्त संभावना है।
वैज्ञानिक विपिन शुक्ला ने कहा कि आने वाला समय
हिन्दी का होगा। देश में केवल ५ प्रतिशत लोगों को ही अंग्रेज़ी की समझ है। बाकी लोग
हिन्दी या अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में सोचते व बोलते हैं। उन्होंने कहा कि हिन्छी
में विज्ञान के क्षेत्र में काफी काम हुआ है और हमें उसका उपयोग करना चाहिए।
उन्होंने खुशी जताई कि हिन्दी में पर्याप्त वैज्ञानिक लेखन हो रहा है लेकिन इससे
संतुष्ट होने की बात नहीं है।
विज्ञान एवं तकनीकी विभाग के तकनीकी बोर्ड के
वैज्ञानिक डॉ. शिशिर गोयल ने बताया कि आज हिन्दी में काफी विज्ञान लेखन किया जा रहा
है। आज के बाज़ारीकरण के दौर में जो चीज़ बिकती है उसका प्रचार होने लगता है। देश
की ८० प्रतिशत जनता हिन्दी भाषा को समझती है। अत: इसी भाषा में विज्ञान लेखन करना
चाहिए। उन्होंने ज़ोर दिया कि हिन्दी को रोज़गार और बाज़ार की भाषा बनाना चाहिए।
दिनांक ३० सितम्बर २००८
भविष्य की हिन्दी ब्लॉग और इन्टरनेट के माध्यम से
अपनी पहचान बना रही है। यह विचार प्रो. हरिमोहन ने चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के
हिन्दी विभाग द्वारा आयोजित दो दिवसीय संगोष्ठी 'साहित्येतर हिन्दी लेखन' दूसरे दिन
'सूचना प्रौद्योगिकी एवं मीडिया में हिन्दी' नामक तृतीय सत्र में कहे।
कार्यक्रम में हिन्दी विभाग द्वारा प्रकाशित विभागीय पत्रिका 'मंथन' के इन्टरनेट
संस्करण (ब्लॉग) का विमोचन किया गया। 'सूचना प्रौद्योगिकी एवं मीडिया में हिन्दी'
विषय पर बोलते हुए दूरदर्शन से आए डॉ. अमरनाथ 'अमर' ने कहा कि दूरदर्शन अपनी
स्थापना से अब तक व्यापक रूप धारण कर लिया है। उन्होंने कहा कि दूरदर्शन सदैव
साहित्यिक गतिविधियों में अग्रणी रहा है और भविष्य में भी यह साहित्य और संस्कृति
से जुड़े कार्यक्रम दर्शकों तक पहुँचाता रहेगा।
उपेन्द्र सिंह ने अपनी वक्तव्य में कहा कि हम यह
मानकर नहीं चल सकते की हिन्दी की चुनौतियाँ खत्म हो गई है। बल्कि इसके
प्रचार-प्रसार से हिन्दी की चुनौतियाँ और बढ़ गई हैं। हिन्दी की विदेशी दूतावासों
में अपनी अलग पहचान है। वहाँ कई दूतावासों से हिन्दी-पत्रिका भी प्रकाशित होती हैं।
जिन्हें मीडिया द्वारा भी पूरा सहयोग मिलता है।
डॉ. स्वतन्त्र कुमार जैन ने कहा कि हिन्दी संचार
की भाषा है और मीडिया में हिन्दी भाषी अखबारों की बहुत महत्ता होती है। आप व्यवसाय
कुछ भी हो लेकिन आधार हिन्दी ही होना चाहिए। हमें हिन्दी दिवस को ज्ञान दिवस के रूप
में मनाना चाहिए। श्री अनिल जोशी ने प्रो. लोहनी को आयोजन की बधाई देतु हुए बताया
कि अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता प्रत्येक मनुष्य को होती है लेकिन कई बार उसे
अभिव्यक्ति के लिए साधन नहीं मिल पाते। परन्तु वर्तमान में इन्टरनेट और ब्लॉग ने इस
कमी को भलीभांति पूरा किया है। उन्होंने कहा कि ब्लॉग की भाषा ऐसी होनी चाहिए कि
उसे हर कोई समझ सके।
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता प्रो. हरिमोहन ने कहा कि
ब्लॉग और इन्टरनेट के माध्यम से कोई भी योगदान तीव्र गति से पाठक तक पहुँच जाता है।
ब्लॉग को कैसे रचनात्मक बनाया जा सकता है इसकी कोशिश करनी चाहिए। अन्त में उन्होंने
अपने वक्तव्य में जोड़ते हुए कहा कि आज ब्लॉग अभिव्यक्ति का सरल और स्वतन्त्र वाहक
है।
इस सत्र में डॉ. अमर नाथ 'अमर' की पुस्तक का विमोचन किया गया। यह टेलीविजन पर पहली
पुस्तक है इस अवसर पर हिन्दी विभाग की पत्रिका 'मंथन' के इन्टरनेट ब्लॉक का भी
विमोचन किया गया। तीसरे सत्र की अध्यक्षता प्रो. जे. के. पुंडीर ने की तथा संचालन
डॉ. अशोक मिश्र ने किया।
संगोष्ठी के चौथे तथा समापन सत्र 'विधि, बैंकिग,
रेलवे, शासन-प्रशासन आदि क्षेत्रों में हिन्दी के विषय में मुख्य वक्ता प्रो०
वेदप्रकाश 'वटुक'
समाज परिवार और आतंकवाद पर अपने विचार प्रकट किए।
बैंकिग के क्षेत्र में हिन्दी प्रयोग पर बोलते हुए
डॉ. राजेन्द्र सिंह ने कहा कि बैंक में आज हम हिन्दी और अंग्रेज़ी दोनों ही भाषाओं
में कार्य करते है। बैंकिग सुविधाओं ने आज गाँव के लोगों में यदि स्थान पाया है तो
हिन्दी भाषा के महत्वपूर्ण योगदान है। एस. पी. त्यागी ने कानून में हिन्दी भाषा के
प्रयोग पर बोलते हुए कहा कि हर भाषा, सभ्यता का एक अलग महत्व होता है। उन्होंने
बताया कि पहले न्यायालय में सभी कार्य अंग्रेज़ी में होता था परन्तु आज
परिस्थितियाँ धीरे-धीरे बदल रही हैं, उन्होंने आगे कहा कि वर्तमान में हिन्दी का
विकास तेज़ी से हो रहा है। मध्यप्रदेश में २० प्रतिशत निर्णय हिन्दी भाषा में देना
अनिवार्य है।
कानूनी हिन्दी विकास के लिए अपने विवेक को बहुत
महत्व है। आगे उन्होंने कहा कि कानून की जानकारी नहीं होने का अर्थ है कि आपकी
सुरक्षा नहीं है। प्रत्येक व्यक्ति को अपनी भाषा में कानून का ज्ञान होना बहुत
आवश्यक है। उन्होंने कहा कि देश का दुर्भाग्य यह है कि हमने आज़ादी तो प्राप्त कर
लिया है पर राष्ट्रीयता अभी तक प्राप्त नहीं कर पाये हैं।
विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति माननीय प्रो. एस.
वी. एस. राणा ने सत्र की अध्यक्षता करते हुए कहा कि जब हम ब्रिटेन में जाते हैं तो
वहाँ हिन्दू और हिन्दी एक हो जाते हैं। उन्होंने अपने विदेश भ्रमण के अनुभव अपने
अध्यक्षीय भाषण में बाटें। उन्होंने कहा कि लोक सेवा आयोग, विज्ञान आदि के प्रश्न
पत्रों की भाषा माध्यम अंग्रेज़ी थी किन्तु अब हिन्दी में भी प्रश्नपत्र बनाए जाते
हैं। मंच का संचालन डॉ. प्रज्ञा पाठक ने किया तथा कार्यक्रम के अन्त में प्रो. नवीन
चन्द्र लोहानी ने सभी वक्ताओं का धन्यवाद देते हुए संगोष्ठी का समापन किया।
संगोष्ठी में डॉ. अमर नाथ 'अमर' की पुस्तक का विमोचन किया गया। यह टेलीविजन पर पहली
पुस्तक है जो पहली बार प्रकाशित हुई है। साथ ही इस अवसर पर हिन्दी विभाग की पत्रिका
'मंथन' के इन्टरनेट ब्लॉग का भी विमोचन किया गया। संगोष्ठी में विश्वविद्यालय तथा
महाविद्यालयों के शिक्षक, छात्र-छात्राएँ तथा साहित्यकार उपस्थित रहे। |