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कहानियां
। कविताएं । साहित्य
संगम ।
दो पल ।
कला दीर्घा
। साहित्यिक निबंध
।
उपहार
। परिक्रमा |
पिछले सप्ताह
कहानियों
में
यह भी कोई बात हुई इस वयस्कसी उम्र में अटपटाकर कहने की? मैंने भूलकर आँखें उठायी कि तुम्हारी आँखों में कितनी और कैसी हँसी हैं। लेकिन देखा तो तुम्हारी दृष्टि में सिर्फ ढेर सारे रेशमी पंख थे। मैं एक भी पंख न बटोर पायी। आँखें संकोच से झुक गयी थीं। तुम फिर से उस पीले फूल वाली सदी के छोर पर पहँुच गये थे। "उस शादी में, तुम्हें याद है एक शाम करीब आधे घंटे के लिए बिजली ही चली गयी थी पूरे मुहल्ले की"
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निबंध
में °
परिक्रमा
में °
धारावाहिक
में
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इस सप्ताह कहानियों
में "टैक्सी।" किसी टैक्सी के पोर्टिको में रूकने की, टैक्सी का दरवाज़ा खुलने की, बन्द होने की, फिर से स्टार्ट होने की, चल देने की आवाज़ भी मैंने सुनी। लेकिन मैं अपनी जगह से हिला नहीं, उठा नहीं।
° पर्यटन
में संस्मरण
में
कला
दीर्घा में
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° पिछले अंकों से ° सामयिकी
में ° प्रेरक
प्रसंग में °
रसोईघर में ° हास्यव्यंग्य
में
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आज सिरहाने |
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प्रकाशन : प्रवीन सक्सेन परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन सहयोग : दीपिका जोशी
तकनीकी
सहयोग :प्रबुद्ध कालिया
साहित्य संयोजन :बृजेश कुमार
शुक्ला