अठारह
जनवरी को आम लोगों ने पूरे विश्व में अमरीका द्वारा ईराक के
विरूद्ध युद्ध छेड़ने के एलान का विरोध किया और विश्वव्यापी प्रदर्शन
किया। ये प्रदर्शन भारत, जापान, पूरे यूरोप के अतिरिक्त अमरीका
में बड़े पैमाने पर हुए। 15 फरवरी 2003 को बहुत बड़ा प्रदर्शन
ओसलो में में भी हुआ।
ईराक के मुद्दे पर
यूरोपीय यूनियन में दरार पड़ गयी है। ईराक समस्या और यू
एस ए व बिटेन के कड़े रूख से विश्व में शान्ति के नये
सदिंग्ध और विरोधाभासी मूल्यों का जन्म हो रहा है युद्ध से
शान्ति। हम अपनी पीढ़ी को कैसे समझायेंगे कि सत्य के पथ पर
चलकर न्याय मिलेगा। हम अपनी नयी पीढ़ी को क्या बतायेंगे कि
जब हर जगह प्रदर्शन हो रहे थे हम घर पर थे। टीवी देख रहे थे।
हाथ पर हाथ रख कर कभी कुछ होना नहीं। पूरे यूरोप में 80 प्रतिशत
लोग ईराक में युद्ध के विरूद्ध हैं। फिर भी आठ यूरोपीय देशों
ने राष्ट्रपति बुश के साथ सहमति दिखाई है
जो उनका बस चले तो आज ही युद्ध छेड़ दें। जर्मनी और फ्रांस
का रूख सराहनीय है कि उन्होंने युद्ध के लिए यू एस ए के पक्ष में
यूरोपीय संसद में हस्ताक्षर नहीं किये। भारत के लोकप्रिय
प्रधानमन्त्री का युद्ध रोकने के प्रयास हेतु बुश को बारबार
संयम बरतने की बात करना बहुत सराहनीय है। अरबलीग के सभी
देशों ने बातचीत और संयुक्त राष्ट्र संघ के मंच पर सहमति से
ईराक के विरूद्ध कार्यवाही
करने की बात कही।
संयुक्त
राष्ट्र संघ के माध्यम से विश्व में शान्ति स्थापना के लिए
अनेक देशों, व्यक्तियों ने कार्य किये हैं। शान्तिप्रिय विश्व के
लिए किये गये 50 वर्षों के कार्य क्या व्यर्थ चले जायेगे।
विश्व में संयुक्त राष्ट्र संघ को न्याय और शान्ति स्थापित करने
की उच्चतम संस्था होने की जो प्रतिष्ठा थी वह चकनाचूर हो
जायेगी ? ऐसे अनेक प्रश्न लोगों की जबान पर हैं। अभी भी समय है देश विदेश की
शक्तियों पर असर डालने का। यह केवल अपना व्यापक विरोध दर्ज कर
अपनीअपनी सरकारों पर दबाव डालकर किया जा सकता है।
ऐसे
ही युद्ध के विरूद्ध सन् 196070 में प्रदर्शन हुए थे जब पश्चिम
और अमरीका ने विएतनाम के विरूद्ध युद्ध में
23 मिलियन लोगों को इण्डोचीन में मार दिया
था। इस बार पूरा विश्व युद्ध के खिलाफ प्रदर्शन कर रहा है जो अभी
नहीं शुरू हुआ। इसका उद्देश्य है कि युद्ध आरम्भ होने से पहले ही
रोक दिया जाये। यू .एस .ए. का प्रयास है कि
इसके पहले ईराक के विरूद्ध युद्ध रोक दिया जाये उसे
'यू.एस.ए ' कभी भी कहीं भी युद्ध करने का अधिकार मिल जाये।
यही युद्ध करने का पूर्व अधिकार चीन, रूस और यूरोपियन
यूनियन भी चाहे तब क्या होगा?
11 सितम्बर के बाद
यू.एस . ए. की त्रासदी यही रही है कि वह पूरे विश्व पर सैनिक और आर्थिक
अधिपत्यजलवा और नियन्त्रण बनाये रखे। यदि कोई यह विचार
करता है कि इससे पश्चिम और
यू.एस .ए. से आतंकवाद समाप्त हो जायेगा तो यह विचारक
की भूल है। आतंकवाद को कम करने के लिए सामूहिक और
सर्वसम्मति से कार्य करना होगा।
जहां तक यह खतरनाक शस्त्रों को समाप्त करने की बात है उसमें पश्चिम
और यू .एस .ए., चीन आदि देश आ जायेंगे। क्या इन देशों में भरे खतरनाक शस्त्रों
को समाप्त करने की बात कोई सोच सकता है?
जब यू .एस .ए के रक्षामन्त्री रूम्सफेल्द और हून ईराक के विरूद्ध युद्ध में पहले ही
दौर में एटमबम प्रयोग करने की बात सार्वजनिक तौर पर कहना
अपनी हद से ज्यादा निकल जाना है।
बुश
का ईराक पर आक्रमण के अपने निम्नलिखित अभिप्राय
हैं
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सद्दाम हुसैन के पास एम वी हधियार है जिससे क्षेत्र और विश्व
को भय और खतरा है। क्षेत्रीय लोगों ने कहा उन्हें खतरा नहीं है।
पिछले वर्ष वाइट हाउस की प्रेस सेक्रेटरी एरी फ्लाइचेर ने कहा था
कि यदि एम वी शस्त्र आदि संयुक्त राष्ट्र संघ के निरीक्षकों को
नहीं मिलते तो ईराक के विरूद्ध युद्ध टल सकता है।
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सद्दाम हुसैन अपनी जनता का नरसंहार कर रहे हैं, इसलिए जनता
पर बम्बारी की जाये ताकि सद्दाम हुसैन अपने पद का त्याग
करदें और एक पश्चिम विचारधारा का व्यक्ति गद्दी पर बैठे और
प्रजातन्त्र कायम हो। एक गुप्त मुहर लगी संयुक्त राष्ट्र संघ की
रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि 24 मिलियन आबादी वाले ईराक
पर बम्बारी होती है तो 10 मिलियन नागरिकों पर महाविपत्ति आ
जायेगी जिसमें एक लाख बम्बारी से मरेंगे और चार लाख युद्ध
के कारण बीमारी और भूख से मरेंगे। नार्वे के प्रधानमन्त्री
शेल माग्ने बोन्देवीक ने समाचार पत्रों से कहा था कि ईराक
में हर महीने 5000 बच्चों की मौत के जिम्मेदार सद्दाम स्वयम
हैं जबकि न जाने कितनी बार संयुक्त राष्ट्र संघ के
कार्यकर्ता यह आवाज उठा चुके हैं कि प्रतिबन्ध 'सैंक्शन के कारण
बच्चों की मौत हो रही है, जिससे 1991 से अब तक 1.4 मिलियन बच्चों की मौत हो चुकी है।
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ईराक एक अशुभ धुरी है, एक आतंकवादी और डाकुओं का देश है
जिससे निपटना विश्वशान्ति के लिए जरूरी है।
यह
कहना तर्कसंगत नहीं है कि 11 सितम्बर में
सद्दाम का हाथ है क्योंकि कोई ऐसा सुराग और प्रमाण
नहीं मिला। बमों और गोलियों पर संयुक्त राष्ट्र संघ की मोहर लग जाने से
ये नम्र नहीं हो जायेंगे।
ओसलो, नार्वे 20 फरवरी
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