तभी शीनी भागते हुए कमरे में
घुसी, "मम्मी डैडी, लंच इज रेडी, प्लीज कम सून। निक इज
लेइंग द टेबिल।''
वे लोग शीनी से कुछ कहते, वह इससे पहले ही वहाँ से चली
गयी। डाइनिंग रूम से बच्चों के चीखने चिल्लाने और शोर
मचाने की आवाजें आ रही थीं। शीनी को इस बात की जैसे न
चिन्ता थी न परवाह कि निक के आने से उसके माता पिता कितने
क्षुब्ध हैं।
"क्या कहते हो?'' शील ने डरते डरते पूछा।
"क्या बताऊँ?'' हरदयाल बोला, "कितनी निष्पाप और मासूम लग
रही थी शीनी।''
"वह तो है ही।''
"फिर मुँह फुला कर क्यों बैठी हो?''
"भविष्य से डरती हूँ।''
"कल किसने देखा है।'' हरदयाल फिलासफराना अंदाज में बोला,
"कई बार सोचता हूँ कुएँ के मेंढक की तरह पड़े रहे तो पागल
हो जाएँगे। यहाँ के तौर तरीके रास नहीं आते। हम लोग न वहाँ
के रहे न यहाँ के।''
"मैं तो अपने को वहीं का पाती हूँ। आदमी अपनी जड़ों से कैसे
अलग हो सकता है।''
"मुझे तो लगता है आदमी जहाँ रहता है, वहीं उसकी जड़ें
विस्तार पाने लगती हैं। पंजाब जाता हूँ तो वहाँ अपने को
अजनबी पाता हूँ। जो पंजाब मैं छोड़ कर आया था, वहाँ जाकर
उसे ही ढूँढता रहता हूँ। वहाँ अब न वह पंजाब है और न वे
लोग, सब मरमुर गये। लोग अपनी जड़ों की बात करते हैं, मुझे
अपनी जड़ों के बारे में सोच कर दहशत होती है। वहाँ की
स्मृतियाँ यहाँ से देखने पर सुहानी लगती हैं, वहाँ जाकर
डरावनी।''
"आज आप कैसी बहकी बहकी बातें कर रहे हैं। आपकी तबीयत तो
ठीक है?''
"तबीयत मेरी को कुछ नहीं हुआ। सच तो यह है, मैं न तो वहाँ
लौटना चाहता हूँ और न यहाँ के माहौल में खप पा रहा हूँ।''
"सब कर्मों का खेल है।'' शील ने पिटीपिटायी बात की।
तभी नेहा ने आवाज दी कि खाना ठंडा हो रहा है। उत्तर नहीं
मिला तो वह धड़धड़ाती हुई कमरे में चली आयी,
"डैड बी क्विक, निक पूडियाँ छान रहा है।''
हरदयाल ने अत्यंत क्रोधपूर्वक नेहा की तरफ देखा और बोला,
"मैं उस हरामजादे गोरे के हाथ का बना खाना नहीं खाऊँगा।
मेरी नजर में तमाम गोरे कोढ़ी हैं। मैं इनसे नफरत करता
हूँ।''
"ओ गॉड।'' नेहा ने अपना सिर पीट लिया, "आपको इस मुल्क में
रहने का कोई हक नहीं है। आप इसी क्षण वहीं लौट जाइए जहाँ
से आये थे।''
वह बेजार होकर सुस्त कदमों से लौट गयी। नेहा लौट गयी तो
हरदयाल को अपने व्यवहार पर खेद होने लगा। उसे अफसोस हुआ कि
उसने अशोभनीय भाषा का प्रयोग किया था।
तभी निक चला आया, "डैड, दिस इज वैरी अनफेयर। मैंने दिन भर
की मशक्कत के बाद आपके देश का खाना बनाया है। मुझसे कोई
गलती हो गयी हो तो क्षमा कर दीजिए। आइए चख कर बताइए, खाना
कैसा बना है। उठिए उठिए गुस्सा थूक दीजिए।''
निक ने शील को बाहों पर उठा लिया, "आपको तो मैं अभी
डाइनिंग चेयर पर रख आता हूँ। डैड आप भी न बच पायेंगे,
चुपचाप, अपने आप चले आइए, वर्ना आपका भी यही हश्र होगा।''
"छोड़ो छोड़ो, मैं आती हूँ।'' शील ने हरदयाल की तरफ
बेचारगी से देखते हुए कहा, "आपका अपना बेटा भी इतना आग्रह
न करता।''
हरदयाल ने जैसे सचमुच गुस्सा थूक दिया और शील के पीछे चल
दिया।
खाना वाकई टेबिल पर लग चुका था। निक ने गले में एप्रिन
पहना हुआ था और सिर पर बड़ी सी टोपी पहन रखी थी।
"आज का मैनू है— पूड़ी और छोले। छोले पंजाब का राष्ट्रीय
व्यंजन है। साथ में है लस्सी। पंजाब में लस्सी बियर से भी
ज्यादा लोकप्रिय है। लस्सी के ऊपर मलाई की मोटी परत डाली
गयी है। प्याज चाकू से नहीं काटा गया, बल्कि मुट्ठी मार कर
तोड़ा गया है। काटने से प्याज के जूस निकल जाते हैं,
इसलिए पंजाबी लोग मुट्ठी से फोड़ा गया प्याज खाना पसंद
करते हैं।''
हरदयाल ने देखा भोजन बहुत सुरुचिपूर्ण ढंग से परोसा गया
था। खाना ठीक से परोसा गया हो तो भूख चमक जाती है, यह
हरदयाल का अनुभव था। उसने अपनी थाली में खाना परोसा। चने
के ऊपर हरी मिर्च सजायी गयी थी, उसने चने इस तरह परोसे कि
हरी मिर्च भी उसकी प्लेट में आ गयी।
हरदयाल ने एक कौर तोड़ा और छोले के साथ मुँह में रख लिया।
विशिष्ट पंजाबी स्वाद था। कौर के साथ ही उसने हरी मिर्च
उठा कर दाँत से कुतर ली। पूड़ी भी बहुत खस्ता बनी थी,
कचौड़ी की तरह। हरदयाल ने जल्दी से एक और कौर निगला और
बोला, "यार तुम निक हो या निक्का सिंह।''
शीनी ने उसे निक्का सिंह का अभिप्राय समझाया।
हरदयाल के मुँह से बेसाख्ता तारीफ निकल गयी थी, अब उसे खेद
हो रहा था।
"यस डैड, फ्राम टुडे आनवर्ड माई नेम इज निक्का सिंह द
ग्रेट।''
शील ने जब हरदयाल को तारीफ करते सुना तो आश्वस्त हो गयी।
बोली, "शीनी के पापा ने तारीफ कर दी तो समझ लो तुमने पहाड़
फतेह कर लिया। किसी चीज की तारीफ करना उनके स्वभाव में ही
नहीं है।''
"निक्का सिंह अब तुम्हीं बताओ कि कौन सही है। डैड का तो
उसूल है कि कद्रदाँ की कमी नहीं अकबर करे तो कोई कमाल
पैदा।'' नेहा बोली। वह अकबर इलाहाबादी के इस शेर को बचपने
से सुन रही थी।
"भई बहुत अच्छे बने हैं छोले। और बताओ, इमली तुम्हें कहाँ
से मिल गयी?''
निक रसोई से एक कंटेनर उठा लाया, दिखाते हुए बोला, "यहाँ
से।''
"मुझे भी याद नहीं था कि घर में इमली है।''
"मैं तो इसकी शक्ल भी नहीं जानता था। मैंने शीनी से कहा
टेमरिंड ढूँढो, जरूर मिलेगी। मैंने सुन रखा है पंजाबी
मसाले और गंगा जल हर पंजाबी के घर में मिल जाता है। आपके
घर में दोनों हैं।'' वह फिर रसोई में घुस गया और गंगा जल
की बोतल उठा लाया।
"निक्का सिंह अब तुम भी भोजन कर लो।'' शील ने कहा, "मजा आ
गया आज भोजन करके।''
निक आया और शील को बाहों में भर लिया। वह बोसा लेते हुए
बोला, "थैंक्यू मॉम। मेरी मेहनत बेकार नहीं गयी, वर्ना मैं
डर रहा था, कहीं फेल न हो जाऊँ।''
"खसमखाना, गल गल ते चुम्मी लै लेंदा।'' शील ने कहा, "शीनी
सबसे पहले तो इसकी यह गंदी आदत छुड़वाओ।''
"माँ हर किसी के पीछे सेक्स नहीं होता। कई बार मुझे लगता
है हिन्दुस्तानी तो फ्रायड के भी बाप होते हैं।''
’कैसे कैंची की तरह जुबान चलाती हो। तुम्हें न बाप की शर्म
रह गयी है न माँ की।''
शीनी जाकर माँ से लिपट गयी। वह इस समय कोई तमाशा खड़ा नहीं
करना चाहती थी।
"अगर यह पंजाब का जायका है तो पंजाब एक लाजवाब जगह है।''
हरदयाल की इच्छा हो रही थी कि कह दे, पंजाब दा जवाब नहीं,
मगर वह चुप रहा।
निक बोला, "एक दिन मैं आप लोगों के साथ पंजाब जाऊँगा। वहाँ
से भांगड़ा सीख कर लौटूँगा। बल्ले बल्ले। टरबन बाँधना
सीखूँगा। मैं जितना पंजाब के बारे में पढता हूँ या सुनता
हूँ, उतना ही पंजाब से आब्सैस्ड रहता हूँ।''
"यह कैसे हुआ?'' शीनी ने पूछा।
"मुझे पंजाबी कुडियों ने बहुत प्रभावित किया है। मेरी एक
मित्र थी, विक्टोरिया। उसका बाप पंजाबी है और माँ
कैनेडियन। पंजाब से लौट कर उसका कायाकल्प हो गया। शलवार
कमीज पहनने लगी। सिर पर चुनरी ओढे रहती थी। मैंने
विक्टोरिया से पूछा, विकटोरिया तुम्हारी तो धजा ही बदल
गयी, तुम्हें क्या हो गया?''
"मुझे पंजाब हो गया। दो महीने वहाँ रही। एक सिक्ख लड़के से
प्यार भी हो गया था। मैं शादी करना चाहती थी। माँ ने शादी
नहीं होने दी। बोली, तुम अभी नासमझ हो समझदार होते ही वह
पंजाब लौट गयी और रक्षपाल सिंह से शादी रचा ली।''
हरदयाल को लग रहा था, लड़का बहुत वाचाल और चालाक है। उसने
पूड़ी उठाने के लिए हाथ बढाया तो निक ने चिमटे से पूड़ी
उठा कर उसकी थाली में रख दी। निक ने खुद भी भरपेट भोजन
किया।
सबको खिलापिला कर निक ने विदा ली। लड़कियाँ उसे बाहर तक
छोड़ आयीं। जब तक निक की गाड़ी स्टार्ट होने की आवाज आती
हरदयाल उठ कर कमरे में चला गया, शील भी पीछे पीछे चल दी।
लड़कियाँ धड़धड़ाती हुई कमरे में घुस आयीं, "मॉम कैसा था
निक?''
"बहुत बोलता है।'' जवाब हरदयाल ने दिया।
"आप लोगों से संवाद करने के चक्कर में कुछ ज्यादा बोल रहा
था। वैसे बहुत रिजर्व रहता है।''
"डैड, खाना कैसा था?''
"एक गैर भारतीय ने बनाया था, इस लिहाज से ठीक था।'' हरदयाल
बोला।
"मॉम निक का एक कजिन है— डासन। उसके पास अपना विमान है।
निक ने कहा कि इस बार डासन आया तो वह अपने भाई के एट सीटर
विमान में हम लोगों को नियाग्रा फाल ले जाएगा।''
"इसका बाप क्या करता है?''
"कैनेडा में कई जगह इनके फार्म हैं। फलों के निर्यात का
कारोबार है। निक रियल एस्टेट बिजनेस में जाना चाहता है।''
शीनी ने बताया।
हरदयाल को निक के बारे में बातचीत करने में असुविधा हो रही
थी। उसने शील से कहा, "एक कप चाय बना दो, मेरे सिर में
दर्द हो रहा है।''
"डैड सिर दबा दूँ?'' शीनी ने पूछा।
"नहीं।'' हरदयाल ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया और बिस्तर पर
लेट कर करवट बदल ली।
शील चाय बनाने रसोई में घुस गयी और दोनों लड़कियाँ अपने
अपने कमरों में।
घर के सामने गाडियाँ रुकने की आवाज आयी तो नेहा और शील
अपने अपने कमरों से निकल कर भागीं। कालबेल बजती, इससे
पूर्व ही नेहा ने दरवाजा खोल दिया और सामने अपने डैड को
देख कर उनसे लिपट गयी और उनके विण्डचीटर में सिर घुसा कर
सुबकने लगी। वह अपने डैड के बारे में जाने क्या क्या सोच
गयी थी। उसे वे क्षण बार बार याद आ रहे थे, जब वह अपने डैड
के साथ बी सी (ब्रिटिश कोलम्बिया) गयी हुई थी। भूस्खलन में
दो सौ अस्सी फीट स्लैब गिरने से लगभग दो मील लम्बी सड़क दब
गयी थी। नयी सड़क बन गयी तो लोग दुर्घटना स्थल को देखने
जाने लगे। वह एक पार्किंग स्थल था। बीसियों गाडियाँ और उन
गाडियों में बैठे लोग ऐसे दफ्न हुए कि उनका कुछ पता ही न
चला। जो लोग उस मनहूस दिन उस सड़क पर टहलकदमी कर रहे थे
उनके बचने का तो सवाल ही नहीं उठता था। नेहा ने डैड से
पूछा था कि क्या कोई आदमी जिन्दा मिला था तो डैड ने बताया
मुर्दा भी नहीं मिला था। और न मिलने की उम्मीद है। अब वे
लोग पहाड़ का हिस्सा हैं, प्रलय तक वे बर्फ के पत्थरों के
नीचे बैठे रहेंगे। उनकी हड्डियाँ भी बर्फ के पत्थरों में
तब्दील हो जाएँगी। यह सुन कर नेहा को बहुत डर लगा था। डैड
के बर्फ के तूफान में घिरने की कल्पना मात्र से नेहा की
आँखों के सामने बी सी की वह सड़क कौंध जाती। एक क्षण को
उसे लगा था डैड हमेशा के लिए इस बर्फ के तूफान में समा गये
हैं और प्रलय तक बर्फ के पहाड़ के नीचे फासिल बन चुके
होंगे। अब डैड को सामने पाकर उसकी खुशी का ठिकाना न था।
हरदयाल को अपने सामने सही सलामत देख कर शील की आँखें
भावतिरेक से नम हो गयीं।
हरदयाल के साथ दो पुलिस कर्मी थे। हरदयाल जितना थका हुआ लग
रहा था, वे उतने ही तरोताजा नजर आ रहे थे। पुलिस कर्मियों
ने विदा माँगी तो हरदयाल ने कहा, "एक कप चाय पीकर जाएँ।''
"चाय नहीं, थोड़ी ब्रांडी ले सकते हैं।'' एक पुलिस कर्मी
ने कहा। शील ने देखा, वह हिन्दुस्तानी था।
"आप कहाँ को बिलांग करते हैं?'' हरदयाल ने पूछा।
"मैं तो यहीं पैदा हुआ था। मेरे माता पिता जरूर होशियारपुर
से आये थे।''
"तब तो आप इन तूफानों के आदी होंगे।''
"मेरा जन्म ही तूफान के दौरान हुआ था।'' पुलिस कर्मी,
जिसने अपना नाम ओम प्रकाश ढींगरा बताया, बोला।
"आइए भीतर पधारिए।'' हरदयाल भीतर जाकर एक सोफे में धँस
गया। दोनों पुलिस कर्मी सामने के सोफे पर बैठ गये। उनके
साथ एक ट्रक भी आया था, जिसमें कुछ मजदूर और बर्फ हटाने के
उपकरण थे। ट्रक को अगली जगह रवाना कर दिया था।
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