इस माह- |
हिंदी दिवस के अवसर पर अनेक विधाओं में विभिन्न
रचनाकारों की हिंदी को समर्पित रचनाएँ। |
-- घर परिवार में |
रसोईघर में- इस
माह नवरात्र के अवसर पर हमारी रसोई संपादक शुचि
प्रस्तुत कर रही हैं- फलाहारी व्यंजन
मखाने की खीर। |
स्वास्थ्य
में- मस्तिष्क को सदा स्वस्थ, सक्रिय और स्फूर्तिदायक बनाए रखने के
२४ उपाय-
१२-
विदेशी भाषा सीखें। |
बागबानी-
के अंतर्गत घर की सुख स्वास्थ्य और समृद्धि के लिये शुभ पौधों की शृंखला में इस
पखवारे प्रस्तुत है-
१२-
नाग पौधा |
भारत के
सर्वश्रेष्ठ गाँव-
जो हम सबके लिये प्रेरणादायक हैं-
१३- भारत का
पहला नकद मुक्त गाँव अकोदरा। |
- रचना व मनोरंजन में |
क्या
आप
जानते
हैं- इस माह (सितंबर) की विभिन्न तिथियों में) कितने
गौरवशाली भारतीय नागरिकों ने जन्म लिया? ...विस्तार
से
|
संग्रह और संकलन- में प्रस्तुत
है- जगदीश पंकज की कलम से अवध बिहारी श्रीवास्तव के नवगीत संग्रह-
''बस्ती
के भीतर'' का परिचय। |
वर्ग पहेली- २९३
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल
और
रश्मि-आशीष के सहयोग से
|
हास परिहास
में पाठकों द्वारा भेजे गए चुटकुले |
|
साहित्य एवं
संस्कृति में- |
समकालीन कहानियों में प्रस्तुत
है भारत से
सुशांत सुप्रिय-की-कहानी-
पिता के नाम
चालीसवें जन्मदिन पर आपका बधाई-कार्ड मिला। आपके अक्षर
सत्तर साल की उम्र में भी वैसे ही गोल-गोल मोतियों जैसे
हैं जैसे पहले होते थे। आपकी हर चिट्ठी को मैंने सहेज कर
रखा है, अपने ख़ज़ाने में। ये चिट्ठियाँ मेरी धरोहर हैं,
विरासत हैं। भाग-दौड़ भरे जीवन के संघर्षों में कभी अकेला
या कमज़ोर पड़ने लगता हूँ तो आपकी चिट्ठियाँ खोल कर पढ़
लेता हूँ। बड़ा सम्बल मिलता है। पिताजी, उम्र के इस पड़ाव
पर आकर पीछे मुड़ कर देखना अच्छा लगता है। आज मैं आपको कुछ
बताना चाहता हूँ। कुछ अनकही बातें हैं जिन्हें कहना चाहता
हूँ। कुछ अनछुए कोने हैं जिन्हें छूना चाहता हूँ। पिताजी,
मुझे हमेशा इस बात का गर्व रहा कि मुझे आप जैसा पिता मिला।
जब मैं छोटा था तो आपने मुझे गहरी जड़ें दीं। जब मैं बड़ा
हुआ तो आपने मुझे पंख दिए। आपने मुझे प्रेरित किया कि मैं
अपनी आँखों से सपने देखूँ, दूसरों की आँखों से नहीं। जब
मैं ख़ुद को ढूँढ़ने की यात्रा पर निकला तो आपने मुझे
उम्मीद दी। जब मैं अपनी नियति को पाने निकला तो आपने मुझे
उत्साह दिया। आपने मुझे अपने हृदय की आवाज़ सुनना सिखाया।...आगे-
*
राजेन्द्र रंजन चतुर्वेदी का
प्रेरक प्रसंग- गाँव
क्यों उजड़ा
*
अर्पण कुमार का आलेख-
वैश्विक हिंदी साहित्य
*
राहुल खटे का दृष्टिकोण
भारत की शिक्षा
और राजभाषा नीति
*
पुनर्पाठ में सुषम बेदी का आलेख
प्रवासियों में हिन्दी-
दशा और दिशा |
|
भूपेंद्र सिंह कटारिया का
व्यंग्य- हमारे नेता
जी
*
शशि पाधा का संस्मरण
वीरता की परंपरा-
नायक हवा सिंह
*
अजय ब्रह्मात्मज का आलेख
हिंदी फ़िल्मों में राष्ट्रीय भावना
*
पुनर्पाठ में पूर्णिमा वर्मन का आलेख
डाकटिकटों पर
क्रांतिकारी वीरांगनाएँ
*
समकालीन कहानियों में प्रस्तुत
है भारत से
कमलेश बख्शी-की-कहानी-
सूबेदार
बग्गा सिंह
अपनी व्हील चेअर पर
आहिस्ता-आहिस्ता हाथ चलाता वह आर्मी अस्पताल के वार्ड, कमरों
में ज़ख्मी-बीमार जवानों के पलंग के साथ-साथ हालचाल पूछता
आगे बढ़ता रहता। यह उसका अस्पताल में प्रवेश के बाद पहला काम
होता। कोई पत्र न लिख सकने की स्थिति में होता तो कह देता
"चाचा, मैं ठीक हूँ, लिख देना"। चाचा गोद में रखी डायरी
उठाता, पेन उठाता पता लिख लेता।
वह यहाँ चाचा व्हील चेयर वाला चाचा ही जाना जाता है उसका कोई
नाम, रैंक, गाँव, कोई रिश्तेदार है, कोई नहीं जानता।
जब से कारगिल में घुसपैठियों
से फौज की मुठभेड़ हो रही है वह बहुत चिंतित हो गया। उसके
कानों से छोटा-सा ट्रांजिस्टर लगा ही रहता। टी.वी. पर भी
देखता रहता, बर्फ़ीले शिखर, खाइयाँ, बन्दूकें उठाए वीर
जवान देख उसकी आँखों में वैसे ही दृश्य तैर जाते कानों में
धमाके समा जाते। उन शिखरों
खाइयों से उसका भी गहरा नाता है। वहाँ दुश्मन घुस आए। उसकी
बाहें इस उम्र में भी झनझना उठती हैं...आगे- |
|