इस पखवारे- |
अनुभूति-में-
कल्पना मनोरमा कल्प, राम शिरोमणि पाठक,
हरीश सम्यक, मंजूषा मन और आनंद कुमार गौरव की रचनाएँ। |
- घर परिवार में |
रसोईघर में- हमारी रसोई संपादक
शुचि लाई हैं पर्वों के अवसर पर विशेष रूप से अभिव्यक्ति के
पाठकों के लिये एक पारंपरिक मिठाई-
रसगुल्ले।
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फेंगशुई
में-
२४ नियम जो घर में सुख समृद्धि लाकर
जीवन को सुखमय बना सकते हैं-
२१- फ्लैट में फेंगशुई। |
बागबानी-
के अंतर्गत लटकने वाली फूल-टोकरियों के विषय में कुछ उपयोगी सुझाव-
२१-
फर्न
की हरी पत्तियों का सौंदर्य। |
सुंदर घर-
शयनकक्ष को सजाने के कुछ उपयोगी सुझाव जो इसके रूप रंग को
आकर्षक बनाने में काम आएँगे-
२१-
फॉन का गंभीर
विन्यास |
- रचना व मनोरंजन में |
क्या
आप
जानते
हैं- आज के दिन (१ नवंबर को) प्रभा खेतान, माधव
कौशिक, नीता अंबानी, पद्मिनी कोल्हापुरे, ऐश्वर्य राय...
विस्तार से
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संग्रह और संकलन- में प्रस्तुत है-
आचार्य संजीव वर्मा सलिल की कलम से यतीन्द्रनाथ राही के नवगीत संग्रह-
चुप्पियाँ फिर गुनगुनायीं का परिचय। |
वर्ग पहेली- २७९
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल
और
रश्मि-आशीष के सहयोग से
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हास परिहास
में पाठकों द्वारा भेजे गए चुटकुले |
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साहित्य एवं
संस्कृति में- |
समकालीन कहानियों में प्रस्तुत
है यू.के. से
तेजेन्द्र शर्मा की कहानी
फ्रेम से बाहर
“विजय,
हमारी शादी नहीं हो सकती।” नेहा ने आवाज़ में बिना कड़वाहट
लाते हुए कहा।
“मगर क्यों? हम दोनों प्यार करते हैं, पिछले तीन सालों से एक
दूसरे को जानते हैं, तुम्हारे ममी पापा मुझे पसन्द करते हैं और
मेरे परिवार वाले भी तुम्हें बहू बनाना चाहते हैं। फिर दिक्कत
क्या है?”
“बात यह है विजय कि मुझे बच्चे अच्छे नहीं लगते। मैं किसी भी
क़ीमत पर माँ नहीं बनूँगी और तुम्हारे माँ बाप को घर का वारिस
चाहिए होगा। ऐसे में हम दोनों अपने रिश्ते नॉर्मल नहीं रख
पाएँगे। तनाव पैदा होगा ही। फिर शायद हम दोनों को अलग होना
पड़े। उससे बेहतर है कि हम विवाह के बारे में सोचें ही नहीं।”
“अगर तुम मुझसे शादी नहीं करोगी तो क्या सारी उम्र कुँवारी
रहोगी?... अरे जिससे भी शादी करोगी, बच्चे तो पैदा होंगे ही।”
“दरअसल अब तो मुझे शादी भी एक गैर-ज़रूरी सी इंस्टीट्यूशन लगती
है। मैं शायद लिव-इन अरेंजमेण्ट में ज़्यादा खुश रह पाऊँगी...
आगे-
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डॉ. सरला सिंह की
लघुकथा- बस्ता
*
अशोक उदयवाल से जानें
नारियल के नाना उपयोग
*
अनिरुद्ध जोशी शतायु का
आलेख- पिरामिडों का रहस्य
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पुनर्पाठ में अतुल अरोरा के संस्मरण
''बड़ी
सड़क की तेज गली में'' का तीसरा भाग |
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राजेन्द्र वर्मा का व्यंग्य
लक्ष्मी से अनबन
*
सुशील उपाध्याय का संस्मरण
गाँव में रामलीला
*
मीरा ठाकुर के साथ देखें
दीपावाली इतिहास के झरोखे से
*
पुनर्पाठ में अभिव्यक्ति के पन्नों से
दीपावली से संबधित ढेर-सी
रोचक व उपयोगी सामग्री
*
समकालीन कहानियों में प्रस्तुत
है भारत से
प्रवीणा जोशी की कहानी
उमंग की रोशनी
‘अनु, अब उठ जाओ, आठ बज गए हैं।’
माँ की आवाज कानों में पड़ी तो अनुप्रिया तुरंत उठ बैठी। उसे
याद आया आज तो उसकी ड्यूटी रामलीला मैदान में लगी है और उसे दस
बजे हर हाल में पहुँचना होगा, क्योंकि आज धनतेरस है। खरीददारी
के लिए लोगों की भीड़ इस दिन से लेकर दीपावली तक जमकर रहेगी।
ऐसे में हम पुलिसवालों को अपनी तरफ से बिना किसी दिन छुट्टी
किए अलग अलग जगह बारह बारह घंटे ड्यूटी के लिए तैयार रहना
होगा। क्या पुरुष और क्या महिला कांस्टेबल, सभी की खाट खड़ी
रहेगी। जैसे त्योहार के दिन हमारे लिए बने ही न हों। हर समय
खड़े रहो आम जनता की चौकसी में। लोग, लोग और लोग, हर जगह लोग।
उस समय जनसंख्या वृद्धि करने वालों कोसने का मन करता है। यह
सब उधेड़बुन में लगी अनु उठकर फ्रेश हुई और अपनी ताजी-धुली
प्रेस की हुई कांस्टेबल की वर्दी को अजीब सी नजरों से घूरते
हुए पहनने लगी। सोच रही थी
कि पहनूँ तो...
आगे- |
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