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 १. ५. २०१६

इस पखवारे-

अनुभूति-में-
धीरज श्रीवास्तव, धर्मेन्द्र कुमार सिंह सज्जन, सुशील कुमार, कल्पना रामानी और स्वयंप्रभा झा की रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- झटपट खाना शृंखला के अंतर्गत-हमारी-रसोई संपादक शुचि लाई हैं जल्दी से तैयार होने वाली पौष्टिक व्यंजन विधि- दिलरुबा चावल

फेंगशुई में- २४ नियम जो घर में सुख समृद्धि लाकर जीवन को सुखमय बना सकते हैं- ९- एक कोना ध्यान के लिये

बागबानी- के अंतर्गत लटकने वाली फूल-टोकरियों के विषय में कुछ उपयोगी सुझाव- ९- ब्लैक आइड सूजन वाइन

सुंदर घर- शयनकक्ष को सजाने के कुछ उपयोगी सुझाव जो इसके रूप रंग को आकर्षक बनाने में काम आएँगे- ९- स्मृतियों का खजाना

- रचना व मनोरंजन में

क्या आप जानते हैं- आज के दिन (१ मई को) बल राज साहनी, रामेश्वर शुक्ल अंचल, मन्ना डे, नामवर सिंह व अनुष्का शर्मा का जन्म...विस्तार से

नवगीत संग्रह- में प्रस्तुत है- संजीव सलिल की कलम से पंकज मिश्र अटल के नवगीत संग्रह- बोलना सख्त मना है का परिचय।

वर्ग पहेली- २६७
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और
रश्मि-आशीष के सहयोग से


हास परिहास
में पाठकों द्वारा भेजे गए चुटकुले

साहित्य एवं संस्कृति में- 

समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है भारत से
दीपक शर्मा की कहानी मेंढकी

निम्मो उस दिन मालकिन की रिहाइश से लौटी तो सिर पर एक पोटली लिए थी-
“मजदूरी के बदले आज कपास माँग लायी हूँ”
इधर इस इलाके में कपास की खेती जमकर होती थी और मालिक के पास भी कपास का एक खेत था जिसकी फसल शहर के कारखानों में पहुँचाने से पहले हवेली के गोदाम ही में जमा की जाती थी।
“इसका हम क्या करेंगे?”
हाथ के गीले गोबर की बट्टी को अम्मा ने दीवार से दे मारा।
“दरी बनाएँगे”
“हमें दरी चाहिए या रोकड़?” मैं ताव खा गया। मालिक के कुत्ते की सेवा टहल के बदले में जो पैसा मुझे हाथ में मिलता था, वह घर का खरचा चलाने के लिए नाकाफ़ी रहा करता।
“मेंढकी की छोटी बुद्धि है। ज्यादा सोच-भाल नहीं सकती”, गुस्से में अम्मा निम्मो को मेंढकी...आगे-
*

भावना सक्सैना की लघुकथा
छुट्टियाँ खत्म हो गईं
*


नवीन पंत का आलेख
पांडुरंग वामन काने

*

डॉ. गुरुदाल प्रदीप की विज्ञान वार्ता
लंबी उम्र तक जीने की कोशिश
*

पुनर्पाठ में कृष्ण बिहारी की आत्मकथा
सागर के इस पार से उस पार से का पंद्रहवाँ भाग

पिछले पखवारे-

सूर्यबाला का व्यंग्य
या इलाही ये माजरा क्या है
*

सुशील कुमार शर्मा की कलम से
प्रकृति और पर्यावरण में नर्मदा की कहानी

*

रचना प्रसंग में शशि पुरवार का आलेख
मुहावरों का मुक्तांगन - एक अरण्यकाल
*

पुनर्पाठ में कृष्ण बिहारी की आत्मकथा
सागर के इस पार से उस पार से का चौदहवाँ भाग

*

समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है ट्रिनिडाड और टोबेगो से आशा मोर की कहानी दोषी कौन

आज बहुत दिनों बाद आभा अचानक पोर्ट ऑफ स्पेन के, इंडियन ग्रोसरी स्टोर में मीना से टकरा गयी। दोनों ही एक दूसरे को देखकर चौंक गयीं। दोनों ने एक दूसरे को जोर से गले लगाया। आभा ने कहा, "तुम अचानक कहाँ गायब हो गई थीं। मैंने तुम्हें एक दो बार फोन भी किया, लेकिन तुम्हारा फोन बंद था। फिर बाद में किटी पार्टी में किसी ने बताया कि तुम हिंदुस्तान चली गयी हो। मेरे पास तुम्हारा इंडिया का नंबर भी नहीं था। मुझे समझ ही नहीं आया, क्या हुआ, सब ठीक तो है न। कब वापस आयीं? बच्चे कैसे है? प्रदीप के क्या हाल हैं? किटी पार्टी में आना क्यों बंद कर दिया?" आभा ने एक साथ कई प्रश्नों की बौछार कर दी। मीना इस अप्रत्याशित स्थिति के लिए तैयार न थी। उसने आभा से कहा, "फिर कभी बात करेंगे, अभी में जरा जल्दी मैं हूँ"। वह इस समय यहाँ आभा के किसी प्रश्न का उत्तर नहीं देना चाहती थी। आभा ने कहा, कोई बात नहीं, कल दोपहर किटी पार्टी हमारे घर पर है।...आगे-

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है
यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी
 

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