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 १५. ११. २०१५

इस सप्ताह-

1
अनुभूति में
-1
शंभु शरण मंडल, जयप्रकाश, मधु संधु, मनु मनस्वी तथा  रवीन्द्र भ्रमर की रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- लगभग ३०० कैलोरी के व्यंजनों की शृंखला स्वस्थ कलेवा में, हमारी रसोई-संपादक शुचि द्वारा प्रस्तुत है- सोयाबीन नमकीन

बागबानी में- आसान सुझाव जो बागबानी को उपयोगी और रोचक बनाने में उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं-
३४- सजावटी पौधों के गमले।

कला और कलाकार- निशांत द्वारा भारतीय चित्रकारों से परिचय के क्रम में जहाँगीर सबावाला की कला और जीवन से परिचय।

सुंदर घर- घर को सजाने के कुछ उपयोगी सुझाव जो घर के रूप रंग को आकर्षक बनाने में काम आएँगे- ३४- सफेद और पीले रंगों का चयन

- रचना व मनोरंजन में

क्या आप जानते हैं- आज के दिन (१५ नवंबर को) क्रांतिकारी विरसा मुंडा, अभिनेत्री विद्या सिन्हा, टेनिस खिलाड़ी सानिया मिर्जा... विस्तार से

नवगीत संग्रह- में प्रस्तुत है- संजय शुक्ला की कलम से वेदप्रकाश शर्मा वेद के नवगीत संग्रह- ''नाप रहा हूँ तापमान को'' का परिचय।

वर्ग पहेली- २५६
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और
रश्मि-आशीष के सहयोग से


हास परिहास
में पाठकों द्वारा भेजे गए चुटकुले

साहित्य एवं संस्कृति में- 

समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है भारत से
कल्पना दुबे की कहानी घर

भुवाली सैनीटोरियम से आते हुए यकायक शांति के पैर ठिठक गये। दरवाजे पर नीले रंग की प्लेट पर पीतल के शब्द चमचमा रहे थे- ‘शांति देवी’। यह क्या? यह किसने किया? शायद राहुल का कार्य होगा। वह बहुत दिनों से कह रहा था कि दरवाजे पर नेम प्लेट तो होनी ही चाहिए, वह टालती जा रही थी। क्या करेगी नेम प्लेट लगा कर? किसके लिए लगाए? अब कोई अरमान नहीं इस ‘नेम प्लेट’ को लगाने का। हाँ... कभी था...। शांति वहीं बरामदे में पड़ी कुर्सी पर धम्म से बैठ गयी, आज वर्षों बाद इस नेम प्लेट ने उसे फिर अतीत में घसीट लिया, जहाँ वह नहीं जाना चाहती थी। मनुष्य के दिमाग की फितरत भी तो बहुत अजीब है जहाँ जाने को जी नहीं चाहता, मस्तिष्क है कि बार-बार घसीटकर उधर ही ले जाता है। शांति भी सो गयी, उस अतीत में जिसने उसकी जिंदगी की दिशा ही बदल दी थी। शांति की बचपन से ही ख्वाहिश थी कि वह अपना एक सुंदर-सा, प्यारा-सा घर जरूर बनाएगी। जब छोटी थी, पिता के दो कमरों के घर में दस सदस्यों का गुजारा कैसे होता होगा, सहज अंदाज लगाया जा सकता है।... आगे-
*

आलोक सक्सेना का व्यंग्य
फारेन एक्सचेंज प्रोग्राम
*

सुबोध नंदन के साथ देखें
अद्वितीय स्मारक महाबोधि मंदिर

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अशोक उदयवाल का आलेख
जामुन में है जान
*

पुनर्पाठ में कृष्ण बिहारी की आत्मकथा
सागर के इस पार से उस पार से का आठवाँ भाग

पिछले सप्ताह- दीपावली के अवसर पर

संकलित पुराण कथा
रावण हारा कितनी बार
*

हजारी प्रसाद द्विवेदी का ललित निबंध
आलोक पर्व की ज्योतिर्मयी देवी - लक्ष्मी

*

ललित शर्मा का आलेख
समुच्चय देव लक्ष्मी गणेश
*

परिचय दास की कलम से
जामुनी सुगंध की द्युति
*

समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है भारत से
भारतेन्दु मिश्र की कहानी उस्ताद जी

फौज से रिटायर होकर आये थे उस्ताद जी। सेना मे पच्चीस वर्षों तक हज्जाम का काम करने के बाद उस्ताद जी ने अवकाश गृहण किया। इस सेवाकाल मे हिन्दुस्तान के न मालूम कितने शहर देखे ,न मालूम कितने अफसरो की कटिंग की,न जाने कितने लेफ्टीनेंटों और बैगेडियरों की हजामत बनायी। अपनी इस सेवा के दौरान उन्होंने न जाने कितनी बोलियाँ सीखीं और न जाने कितनी संस्कृतियों के अनुभव प्राप्त किये। अपना काम ईमानदारी से करते थे उस्ताद जी। फौज में उन्हें उनके काम के लिए सम्मान मिलता रहा। कोई प्रमोशन तो था नहीं इस लिए रिटायर होना ही उन्हें ठीक लगा। रिटायर हुए तो पुराने लखनऊ में स्थित अपने घर आ गये। फण्ड वगैरह का जो पैसा मिला उससे पुराना मकान ठीक करवाया। एक बेटा और पत्नी। बेटा फेल हुआ आठवीं में तो उसने दुबारा किताबों की शक्ल न देखने की कसम खायी। उस्ताद जी ने बड़ी कोशिश की मगर वो टस से मस न हुआ। उन्हें चिंता हुई कि मंगल पढ़ेगा नहीं तो उसकी जिन्दगी कैसे कटेगी।... आगे-

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यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी
 

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