जामुन एक ऐसा फल है, जो देश के कोने-कोने में
सुलभता से मिल जाता है। जामुन मीठा और स्वादिष्ट
होने के साथ-साथ सेहत के लिए भी बेहद फायदेमंद फल
है। विशाल पेड़ पर लगने वाला यह फल ही नहीं, बल्कि
पेड़ की छाल, बीज, पत्ते तक को अनेक औषधियों के रूप
में लिया जाता है। जामुन की लकड़ी फर्नीचर और
रेलवे स्लीपर बनाने के काम आती है।
रूप रंग-
जामुन सदाबहार पेड़ है जो ३० मीटर तक ऊँचा हो जाता
है। इसकी छाया घनी होती है। तने की छाल खुरदुरी और
सख्त होती है। मार्च से अप्रैल के बीच इनमें फूल
आने लगते हैं। मई जून तक इनमें फल आ जाते हैं।
प्रारंभ में इसका फल हरा फिर हल्का बैंगनी और
बिलकुल पक जाने पर गहरा बैंगनी हो जाता है। इसकी
नई पत्तियाँ कोमल और गुलाबी रंगत वाली होती हैं
लेकिन बड़ी होने पर चमकदार गहरे हरे रंग की हो
जाती हैं जिस पर पीले रंग की शिराएँ होती हैं।
इसकी शाखाएँ बेहद कमजोर होती हैं, जिन पर बड़े-बड़े
गुच्छों में अंगूर की तरह जामुन लगते हैं।
विभिन्न भाषाओं में-
जामुन को संस्कृत में जम्बूफल, बांग्ला में जाम,
गुजराती में जंबु, मराठी में जाम्बूल, तमिल में
नाग पज़म, मलयालम में नावल पज़म, कन्नड में नेराले
हन्नु, तेलुगु में नेरेदु पांदु, उड़िया में
जामुकोली कहते हैं। इसे राजमन, जमाली आदि अन्य
अनेक नामों से जाना जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम
साइज़ीजियम क्यूमिनाइ है। कोंकणी, हिंदी, उर्दू और
पंजाबी में इसे जामुन ही कहते हैं।
इतिहास में-
जामुन दक्षिण एशिया और भारतीय उपमहाद्वीप में
अधिकता से पाया जाने वाला वृक्ष है। १९११ में
यूनाइटेड स्टेट डिपार्टमेंट औफ एग्रीकल्चर ने इसका
परिचय अमेरिका के फ्लोरिडा शहर से करवाया। बाद में
यह सूरीनाम, गुयाना और ट्रिनीडाड व टोबैगो में भी
उगाया जाने लगा। ब्राजील में यह भारत से उस समय
लाया गया जब यहाँ पुर्तगालियों का उपनिवेश था। बाद
में स्थानीय चिड़ियों द्वारा इसे दूर दूर तक फैला
दिया गया। हवाई में यह पेड़ तेजी से फैलने वाले
पेड़ों में शामिल किया गया है और सनिबेल, फ्लोरिडा
में इसको उगाना गैर कानूनी है।
रासायनिक तत्व
इसमें ग्लूकोज और फ्रक्टोज दो मुख्य तत्व होते
हैं, खनिजों की मात्रा अधिक होती है। अन्य फलों की
तुलना में यह कम कैलोरी प्रदान करता है। एक मध्यम
आकार का जामुन ३-४ कैलोरी देता है। यह लोहे का
बड़ा स्रोत है। प्रति १०० ग्राम में एक से दो
मिग्रा आयरन होता है। इसमें विटामिन बी, कैरोटिन,
मैग्नीशियम और फाइबर होते हैं। जामुन का रासायनिक
विश्लेषण इस प्रकार है- पानी ७८.२ प्रतिशत,
कार्बोज १९.७ प्रतिशत, प्रोटीन ०.७ प्रतिशत, लवण
०.४ प्रतिशत, वसा ०.१ प्रतिशत, कैल्शियम ०.३
प्रतिशत, फास्फोरस ०.६ प्रतिशत, रेशा ०.९ प्रतिशत।
जामुन की गुठली चिकित्सा की दृष्टि से अत्यन्त
उपयोगी मानी जाती है। गुठली में एक ग्लुकोसाइट
जम्बोजीन, गैलिक एसिड, स्टार्च, प्रोटीन तथा
कैल्शियम बहुतायत से होती है। खट्टे-मीठे
स्वादवाला यह रुचिकर फल तासीर में ठण्डा होता है।
आयुर्वेद में-
आयुर्वेद के प्रमुख आचार्य चरक द्वारा रचित ग्रंथ
'चरक संहिता' में औषधीय योग 'पुष्यानुग-चूर्ण' में
जामुन की गुठली मिलाए जाने का विधान है। इस ग्रंथ
में जामुन के पूरे पौधे के उपयोग बताया गया है।
जामुन की छाल, पत्ते, फल, गुठलियां और जड़ आदि सभी
आयुर्वेदिक औषधियां बनाने में काम आते हैं। जामुन
को मधुमेह के बेहतर उपचार के तौर पर जाना गया है।
पाचनशक्ति मजबूत करने में जामुन लाभकारी होता है।
यकृत (लीवर) से जुड़ी बीमारियों के बचाव में जामुन
की उपयोगिता है।
अध्ययन दर्शाते हैं कि जामुन में कैंसर प्रतिरोधी
गुण होते हैं। कीमोथेरेपी और रेडिएशन में जामुन
लाभकारी होता है। जामुन का प्रयोग हृदय रोग,
मधुमेह, उम्र बढ़ना और गठिया में फायदेमंद होता
है। जामुन के फल में खून को साफ करने वाले कई गुण
होते हैं। जामुन का रस पाचनशक्ति को बेहतर करने
में सहायक होता है। जामुन के पेड़ की छाल और
पत्तियां रक्तचाप को नियंत्रित करने में कारगर
होती हैं।
जामुन का सिरका-
जामुन का सिरका बहुत उपयोगी है। सिरके के नियमित
प्रयोग से भूख बढ़ती है और पुराने उदर विकार भी ठीक
हो जाते हैं, शारीरिक कमजोरी दूर होती है, त्वचा
चमकदार हो जाती है और चेहरा सुंदर हो जाता है।
जामुन का सिरका घर पर आसानी से तैयार किया जा सकता
है। इसके लिए पके तथा बिना दाग के बड़े-बड़े जामुन
चुल लें। इन फलों को धोकर एक मिट्टी के बर्तन में
नमक मिलाकर रख दें। बर्तन का मुँह स्वच्छ कपड़े से
बाँधकर इसे धूप में रख दें। सप्ताह भर धूप में
रखने के पश्चात इन जामुनों का रस साफ कपड़े से
छानकर शीशे की बोतलों में भरकर ढक्कन लगाकर रख
दें। जामुन का सिरका तैयार है। इसे जरूरत के
अनुसार उपयोग में लाए। इस सिरके का उपयोग सलाद में
आसानी से कर सकते हैं। इसके अलावा मूली, गाजर,
शलजम, प्याज, मिर्च आदि सब्जियों का अचार भी जामुन
के सिरके में डाल सकते हैं।
गर्मियों में जामुन के रस से बना शर्बत सेवन करना
लाभदायक होता है। इसके सेवन से ताजगी महसूस होती
है और थकान दूर होती है।
घरेलू उपचार-
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जामुन का उपयोग
दस्त लगने पर भी किया जा सकता है। बार-बार
होने वाले दस्तों में जामुन के कोमल पत्तों का
रस दस ग्राम लेकर थोड़े से शहद में मिलाकर दिन
में तीन बार देने से लाभ होता है।
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जामुन
खाने से चेहरे पर निकलने वाली फुंसियाँ और
मुहाँसे आदि को दूर किया जा सकता है।
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जामुन की
अम्लीयता और क्षारीयता रक्त दोषों को पूरे तौर
पर दूर करने में सक्षम है।
• उल्टी होने पर जामुन की छाल की राख शहद के
साथ लेना फायदेमंद होता है।
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जामुन का नियमित
सेवन करते रहने से दाँतों व मसूढ़ों की
बीमारियों में फायदा होता है।
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जामुन की गुठली
को सुखाकर उसका चूर्ण बना लें तथा दूध के साथ
इस चूर्ण को मिलाकर फोड़े-फुंसियों पर लगाएँ।
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जामुन के सेवन
से पीलिया रोग में फायदा होता है। गर्मियों के
दिनों में बार-बार प्यास लगती हो तो इसका सेवन
करने से प्यास की शिकायत दूर होगी।
सावधानी-
हमेशा जामुन का पका हुआ फल ही खाएँ। अध पके फल के
सेवन से पाचन संस्थान में घाव हो सकते हैं। भोजन
करने के बाद जामुन का सेवन अधिक गुणकारी रहता है।
अधिक जामुन खाने से शरीर में जकड़ाहट तथा बुखार हो
सकता है, इसलिए इसे आवश्यकता से अधिक नहीं खाना
चाहिए।
अधिक मात्रा में जामुन खाने से शरीर में जकड़न एवं
बुखार होने की सम्भावना भी रहती है। इसे कभी खाली
पेट नहीं खाना चाहिए और न ही इसके खाने के बाद दूध
पीना चाहिए।
१६
नवंबर २०१५