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जामुनी
सुगंध की द्युति
- परिचय दास
दीपावली एक मंगल है। दीपावली एक उत्प्रेक्षा है। उस
बहाने हम जीवन के रंग-बिरंगे पहलुओं पर सोच पाते हैं।
ऐसे पर्व जीवन को उत्सव बना देते हैं। आजकल ‘उत्सव’
शब्द काफी चला हुआ लगता है परंतु मनुष्य की
उत्सवधर्मिता का अंत नहीं। बाहरी और भीतरी दोनों तरह
के प्रसंग जीवन को गतिशील उत्सव में बदल देते हैं।
बाहर के मेले के साथ भीतर का मेला। लिखी जा रही बाहरी
कविता और अलिखित भीतरी कविता दोनों इस दीपावली को
उत्प्रेक्षा देते हैं। एक रूपक निरंतर चलता रहता है।
अंधेरे और उजाले के द्वंद्व के रूप में। दोनों के
उपयोग हैं। यदि उजाला न हो जीवन का संसार न चले और
उजाला चकाचौंध में बदल जाय तो जीना मुश्किल। अंधेरा ही
अंधेरा हो क्लोरोफिल न बने, जीवन असंभव हो जाय और रात
को शांत अंधेरा न हो तो सुकून न मिले।
अंधेरे-उजाले की धूप छाँव से क्षण-क्षण की नूतनता बनती
है। परिवर्तनशीलता निर्मित होती है। अंधेरे को खलनायक
न बनाएँ। उसकी उपयोगिता है। निखिल विश्व में जो कुछ भी
है उसकी अर्थवत्ता है। बगैर अंधेरे की अर्थवत्ता जाने
उजाले को मूल्यवान नहीं बनाया जा सकता।
लघुताएँ महत्वपूर्ण होती जा रही हैं। उनको भावपूर्ण
तरीके से ग्रहण करना होगा। लघु मानव ही इस समय का
महामानव है। लघुदीप हमारे रास्तों को जगमग कर देता है।
यह समय आम आदमी का है। मैंगो मैन का है। उसको अलक्षित
करके शीर्ष का व्यक्ति भी धराशायी हो सकता है। कृषि का
सम्मान आम आदमी का सम्मान है। कृषि पूरे विश्व में
संघर्षशील पेशा है और अनेक बार दयनीयताओं से आक्रांत।
इसीलिए भारत में कृषक के जीवन में अपेक्षाकृत अंधेरे
ज्यादा हैं तथा अमेरिका वगैरह पश्चिमी देशों में
सब्सिडी के आधार पर चलने के लिए बाध्य। लेकिन दीपावली
और छठ कृषि संस्कृति के ही उत्सव है। जिनकी वजह से यह
रंग हमारे जीवन में आता है। उनके जीवन का रंग भी हमें
ध्यान में रखना चाहिए। यदि खलिहान में जगरमगर नहीं है
तो दीए में तेल कहाँ से आएगा? झालर में बिजली के लट्टू
कहाँ से लगेंगे ? वास्तव में खलिहान की देवी ही
लक्ष्मी है, जो दीपावली का हेतु है।
दीपावली इस धरती को और लभ्य बनाती है। वर्षों से हमने
उजियारे की चाह में, उसके पथ पर चलते हुए हार्दिक
स्नेह से इसे जोड़ा है। बदरंग और उदास आकारों को इसने
काव्यात्मक बनाया है। इसने हमारे आंतरिक ‘स्वयं’ को
गरिमा दी है। अज्ञेय के शब्दों में - ‘यह दीप अकेला
गर्व भरा मदमाता, इसको भी पंक्ति को दे दो।’ गौतम
बुद्ध ने ‘अप्प दीपो भव’ कहा। रोशनी हमें जामुनी सुगंध
से भर देती है दीपावली में। यह एक तरह से पृथ्वी का
बखान है, इस अपरिहार्य पृथ्वी के फलों का विविध स्वाद।
दीपावली हमारी आकांक्षाओं को गति देती है। अगाध प्रेम
और आत्मीयता को मुकुलित करती हुई। महावीर व राम का
स्वागत खट्टे मीठे अनुभवों की प्रस्तावना है। अपने
पुरखों का अन्तर्गान है। नवरात्र की शक्ति, विजयादशमी
का अन्याय विरोध दीपावली में उजास की पुनीतता में
परिवर्तित हो जाता है या नव आकार ले लेता है। इस
दुनिया से लगाव भी जरूरी है विरत जाने के विचार से परे
इस दुनिया को बेहतर बनाना भी तभी होगा जब हम इसे प्यार
करेंगे। सच्चा प्यार पृथ्वी का उत्सव है और वही आंतरिक
उजाला है।
दीपावली की रात में गाँव में जो ‘दलिद्दर’ खेदा
(भगाया) जाता है उसका केवल रीतिगत महत्व नहीं, वह एक
तरह से वैज्ञानिक व सांस्कृतिक बहुलता की सोच पर
आधारित है। जब आपके खलिहान में अनाज होगा, घर में
सुखशांति होगी तो ‘दलिद्दर’(दरिद्रता) अपने आप चली
जाएगी। मूल चीज है अर्थव्यवस्था को लोकोन्मुख बनाना,
जनपक्षीय बनाना। कृषि व उद्योगों को रियायत के बल पर
अग्रगामी, अर्थनीति का वाहक नहीं बनाया जा सकता। उसे
स्वावलंबी बनाना होगा। उसे स्वराज देना होगा। दीपावली
उसी स्वराज का आवाहन है।
स्मरण करें: दीपावली व छठ दोनों ऊष्मा के पर्व हैं,
ऊर्जा के बिंब वाले। दोनों ज्योति के आमंत्रण हैं।
दोनों स्वच्छता और सामुदायिकता के आधार हैं। दोनों
सामान्य जनजीवन के संगीत के हेतु। छठ में उगते और
डूबते सूर्य दोनों को अहर्य देते हैं यानी हर
परिस्थिति में आपका साथ। यह नहीं कि चमक में तो साथ
रहे, जब घूमिल हुए तो साथ छोड़ दिया। गरिमामय व्यक्ति
का उदय व अस्त दोनों गरिमापूर्ण होते हैं या होने
चाहिए। रंग बिरंगी आकाक्षाएँ सुनहरी धूप में दीपों की
तरह जगमगाती हैं। दीप में क्या जलता है? -हमारी
अंतःप्रज्ञा। सूर्य में क्या जलता है? -हमारी
ऊर्जस्विता। यदि प्रज्ञा व ऊर्जा हो तो अंधेरे में भी
रास्ता है, दुर्दिन भी मंगलमय है। संपत्ति धन को नहीं
सुमति को कहते हैं - ‘जहाँ सुमति तँह संपति नाना।’
असली स्फटिक माठी सुमति है जो अँधेरे में जगमगाती हैः
व्यक्ति में, परिवार में, देश में, दुनिया में।
हिंस्र,आततायी व अन्यायशील समय में अहिंसा, प्रेम व
न्याय को पाना एक बड़ा उपक्रम है, एक महत् संकल्प है।
यह संकल्प स्वप्नभरी आँखों में केवल अँधेरे में टटोलना
नहीं, क्रियाशीलता, परिवर्तन, कल्पनाशीलता की
प्रासंगिकता को स्वप्न से जोड़ना है। उजाले की
सृजनात्मकता हमारी आंतरिक संरचना हो, दीपावली इसी
मंत्र का जादुई उच्चारण है।
१ नवंबर २०१५ |