इस सप्ताह- |
अनुभूति
में-1
श्रीकांत मिश्र कांत, उर्मिला माधव, निशा कोठारी, डॉ. प्रदीप शुक्ल और
दिनेशचंद्र माहेश्वरी
की रचनाएँ। |
- घर परिवार में |
रसोईघर में- लगभग ३०० कैलोरी के व्यंजनों की शृंखला- स्वस्थ कलेवा
में, हमारी रसोई-संपादक
शुचि द्वारा प्रस्तुत है-
सूजी के ढोकले।
|
बागबानी में-
आसान सुझाव जो बागबानी को उपयोगी और रोचक बनाने
में उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं-
३०-
बाड़ का सौंदर्य। |
कला
और कलाकार-
निशांत द्वारा भारतीय चित्रकारों से परिचय
के क्रम में अकबर पद्मसी
की कला और जीवन से परिचय। |
सुंदर घर-
घर को सजाने के कुछ उपयोगी सुझाव जो घर के रूप रंग को आकर्षक बनाने में काम आएँगे-
३०-
पर्दों के मनभावन रंग। |
- रचना व मनोरंजन में |
क्या
आप
जानते
हैं- इस सोमवार-
(१४ सितंबर को) जी पी सिप्पी, मोहन थपलियाल, राम जेठमलानी, और आयुष्मान
खुराना...
विस्तार से
|
नवगीत संग्रह- में प्रस्तुत है-
संजीव सलिल की कलम से जय चक्रवर्ती के नवगीत
संग्रह-
थोड़ा लिखा समझना ज्यादा का परिचय। |
वर्ग पहेली- २५२
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल
और
रश्मि-आशीष
के सहयोग से |
हास परिहास
में पाठकों
द्वारा
भेजे गए चुटकुले |
|
साहित्य एवं
संस्कृति में- |
समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है
यू.एस.ए. से
सुदर्शन सुनेजा की कहानी
अवैध नगरी
अचानक
उस की दृष्टि स्थिर हो गई। जिस ट्यूब को वह देख रहा था, उस में
उस की चेतना मूर्त होकर पत्थर हो गई थी। कहीं कुछ दरक गया था।
संशयों और अविश्वास के बीच उस की अंगुलियाँ ठिठक गई थीं और
मानसिकता कुंद हो गई थी।
ऐसे कैसे हो सकता है!
क्या सच में ऐसा हो सकता है?
ये तो जान चुका है कि वह आज से तीस बरस पहले का जन्मा टेस्ट
ट्यूब बेबी है। कितना बड़ा अजूबा था यह तब! आज तो यह आम बात हो
गई है। पर मेरे पापा का स्पर्म इस ट्यूब में आज भी ज्यों का
त्यों है, कैसे! उस ने लेबल को प्रखर रौशनी में रखा और देखा उस
पर लिखा था "परिवर्तित"। यह एक नया इतिहास अपने पन्ने खोल रहा
था। क्षण भर के लिये वह संज्ञा शून्य हो गया। माथे पर पसीने की
बूँदें चू आईं और चेहरे का रंग भी शायद बदल गया था। पर यह सब
कैसे हो सकता है? परिवर्तित शब्द से उस के अंदर जैसे साँप
रेंगने लगे। वह काम को भूल कर एक बारगी लेबॉरटरी से बाहर निकल
गया।
आगे-
*
मुक्ता का प्रेरक प्रसंग
दूध और पानी
*
पद्मसंभव से जानें
महापर्व करमा के
विषय में
*
संजीव शर्मा की कलम से
उपन्यासकार प्रतापनारायण श्रीवास्तव
*
पुनर्पाठ में कृष्ण बिहारी की
आत्मकथा
सागर के इस
पार से उस पार से का छठा भाग |
|
कल्पना रामानी की लघुकथा
गुलामी की गाँठ
*
हनुमान सरावगी का
दृष्टिकोण-
लॉर्ड मैकाले का सपना
*
वेद प्रकाश वैदिक का
आलेख-
उच्च न्यायालय में हिंदी
*
सुबोधकुमार नंदन के साथ पर्यटन
अजगैबीनाथ मंदिर और बैद्यनाथ यात्रा
*
समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है
भारत से
विजय कुमार सापत्ति की कहानी
साहित्य का अखाड़ा
बहुत समय पहले की बात है। मुझे
एक पागल कुत्ते ने काटा और मैंने हिंदी साहित्यकार बनने का
फैसला कर लिया। ये दूसरी बार था कि मुझे किसी पागल कुत्ते ने
काटा था और मैं अपनी ज़िन्दगी से जुड़ा हुआ कोई महत्वपूर्ण फैसला
कर रहा था। पहली बार जब एक महादुष्ट पागल कुत्ते ने काटा था तो
मैंने शादी करने का फैसला किया था, उस फैसले पर आज भी अफ़सोस
है, खैर वो कहानी फिर कभी!
तो हुआ यों कि उस कुत्ते ने मुझे काटा और जब मुझे हॉस्पिटल में
इंजेक्शन लगाए जा रहे थे तो मैंने सोचा कि इस घटना पर कुछ
लिखना चाहिए। दर्द दूर हुआ तो मैं अपने दफ्तर के लिये निकल
पड़ा। रास्ते में मेरे दोस्त बाबू से मुलाकात हुई, मैंने उसे
कुत्ते के काटने की कहानी बतायी, वो जोर जोर से हँसने लगा,
“साले! तुझे काटने के कारण वो कुत्ता जरुर पागल हो गया होगा"।
मैंने कहा, “यार बाबू, दिल बहुत दुखी है, सोचता हूँ अपने दुःख
पर एक कविता लिखूँ।”
उसने कहा, “अबे तो लिख न...
आगे-
|
|