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प्रेरक-प्रसंग


दूध और पानी
- मुक्ता
 


पानी ने दूध से मित्रता की और उसमें समा गया। जब दूध ने पानी का समर्पण देखा तो उसने कहा-
"मित्र तुमने अपने स्वरुप का त्याग कर मेरे स्वरुप को धारण किया है, अब मैं भी मित्रता निभाऊँगा और तुम्हें अपने मोल बिकवाऊँगा।"

दूध बिकने के बाद जब उसे उबाला गया तब पानी बोला
-अब मेरी बारी है मैं मित्रता निभाऊँगा और तुमसे पहले मै चला जाऊँगा।
दूध से पहले पानी उड़ता जाता है।

जब दूध ने मित्र को अलग होते देखा तो उफनकर गिरा और आग को बुझाने लगा।
जब पानी की बूँदें उस पर छींट कर उसे अपने मित्र से मिलाया गया तब वह फिर शांत हो गया।

पर
इस अगाध प्रेम में..
थोड़ी सी खटास-
(नीबू की दो चार बूँदें)
डाल दी जाए तो
दूध और पानी अलग हो जाते हैं।
थोड़ी सी मन की खटास अटूट प्रेम को भी मिटा सकती है।

१५ सितंबर २०१५

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