इस सप्ताह- |
अनुभूति
में-1
राम अवतार सिंह तोमर 'रास', डॉ. भावना, अश्विन गांधी, अल्पना सिंह तथा
अन्य रचनाकारों की काव्य कृतियाँ। |
- घर परिवार में |
रसोईघर में- मौसम है शीतल पेय का और हमारी रसोई-संपादक
शुचि लेकर आई हैं शर्बतों की शृंखला में-
सदाबहार शिकंजी।
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बागबानी में-
आसान सुझाव जो बागबानी को उपयोगी और रोचक बनाने
में उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं-
२५-
गमलों का सौंदर्य। |
कला
और कलाकार-
निशांत द्वारा
भारतीय चित्रकारों से परिचय के क्रम में
जामिनी राय
की कला और जीवन से परिचय। |
सुंदर घर-
घर को सजाने के कुछ उपयोगी सुझाव जो घर के रूप रंग को आकर्षक बनाने में काम आएँगे-
२५- बैठक और
अध्ययन-कक्ष का संयोजन |
- रचना व मनोरंजन में |
क्या
आप
जानते
हैं-
आज
के दिन-
(२० जुलाई को) कृष्ण बलदेव वैद, रोमेश शर्मा, विश्वमोहन भट्ट,
रिंकी खन्ना, राहुल बोस, उद्धव ठाकरे...
विस्तार से
|
नवगीत संग्रह- में प्रस्तुत है-
जगदीश पंकज द्वारा योगेन्द्र दत्त शर्मा के नवगीत
संग्रह-
पीली धुंध नीली बस्तियों पर का परिचय। |
वर्ग पहेली- २४७
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल
और
रश्मि-आशीष
के सहयोग से |
हास परिहास
में पाठकों
द्वारा
भेजे गए चुटकुले |
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साहित्य एवं
संस्कृति
में- |
समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है
भारत से
जयशंकर की कहानी अर्थ
''आज आप क्लब नहीं जा रहे।’’
''नहीं।’’
''तबियत ठीक नहीं लग रही है?’’
''कुछ थकान-सी है।’’
''आपके लिए कॉफी बनाती हूँ।’’
''अभी नहीं गुनगुन कहाँ है?’’
''पड़ोस में खेल रही है।’’
''बाहर अँधेरा हो रहा है।’’
शाम का आखिरी उजाला भी अपने आखिरी पड़ाव पर खड़ा था। जुलाई की
शुरूआत हो चुकी थी पर बारिश का नामोनिशां नहीं था। कहीं दूर
से, शायद प्राचीन शिव मंदिर से घटियों की हल्की-सी आवाजें आ
रही थीं।
''मैं छत पर आराम करता हूँ’’, आनन्द ने कहा।
''ठीक है, मैं वहाँ झाडू लगा देती हूँ।’’
कोयल ने जीने के पास ही झाडू उठाई। अपने दुपट्टे को कमर पर
बाँध लिया और सीढ़ियों से ऊपर चली गई। वह बैठक के दीवान पर लेट
गया। ‘क्लब मैं लोगों का आना शुरू हो गया होगा। उसके दोस्त कुछ
देर तक उसका इन्तजार करेंगे फिर कोई उसके दफ्तर में फोन
करेगा....दफ्तर में फोन की घंटियाँ जाती रहेंगी और वह यहाँ
रहेगा....अपने घर में.....अपनी पत्नी और बिटिया के साथ....वे
यहाँ फोन नहीं करेंगे....आगे-
*
सरस दरबारी की लघुकथा
सबसे
प्रिय वस्तु
*
स्वाद और स्वास्थ्य में
टिंडे के स्वास्थ्यवर्धक गुण
*
निशांत का कला संस्मरण
पत्थर की
चाक और मिट्टी के घोड़े
*
पुनर्पाठ में कृष्ण बिहारी की
आत्मकथा
सागर के इस
पार से उस पार से का पाँचवाँ भाग |
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सुशील यादव का व्यंग्य
चिंतन का दौर
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ओम प्रकाश सारस्वत का
ललित निबंध-
बरगद बाबा
*
पूर्णिमा पांडेय का
आलेख-
ध्यान का
अभ्यास
*
पुनर्पाठ में कृष्ण बिहारी की
आत्मकथा
सागर के इस
पार से उस पार से का चौथा भाग
*
साहित्य संगम में प्रस्तुत है
यूसुफ मेकवान की गुजराती कहानी का हिंदी रूपांतर-
परागी
अभी
लंच करके लेटा ही था, तभी फोन बज उठा। रिसीवर उठाकर कान पर
लगाते हुए मैंने पूछा, "हेलो, कौन?"
"नमस्ते पापा!" परागी की आवाज सुनते ही मैंने हँसकर कहा, "ओह
परागी! कैसी हो तुम?"
"बस पापा! अवनीश और मैं अपने अपार्टमेंट की बालकनी में
बैठे-बैठे ब्रेकफास्ट कर रहे हैं"। परागी ने कहा, "यहाँ
ऑस्ट्रेलिया में सुबह है और आपके इंडिया में दोपहर।"
"ठीक कहा बेटा! खूब खुश लग रही है तू!"
"जी पापा! वातावरण ही खुशनुमा है, जैसे साबरमती अहमदाबाद के
बीच से बहती है, बैसे ही यारा नदी यहाँ मेलबर्न के बीच से बहती
है। बहुत ही सुंदर लगती है।"
फिर उसकी गंभीर सी आवाज आई, "आज आकाश में बादल...पापा, इन्हें
देखकर मुझे अपना बचपन याद आ गया।"
"कैसे बेटा?"
"मैं और भाई मुनीर, जब हम छोटे थे, तब इसी तरह आकाश में बादलों
में बनते-बदलते...
आगे-
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