स्वाद और
स्वास्थ्य |
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टिंडा
क्या आप जानते हैं?
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टिंडा दक्षिण एशिया में सबसे अधिक पसंद की जाने वाली
सब्जी है।
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टिंडा हृदयरोग और गुर्दे व मूत्राशय की पथरी में बहुत
लाभकारी होता है। |
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टिंडा वानस्पतिक शाक वर्ग का एक ऐसा फल है, जिसे
प्रायः सभी लोग सब्जी बनाने में खूब प्रयोग करते
हैं। उत्तर प्रदेश, पंजाब आदि राज्यों में इसकी खूब
खेती की जाती है। यह गर्मियों से बरसात तक काफी
मात्रा में बाजार में मिल जाते हैं। वनस्पति
विज्ञान में इसे ककड़ीवंशी (कुकुरबिटेसी जाति का)
माना गया है। टिंडा भारत और पाकिस्तान में सबसे
अधिक पसंद की जाने वाली सब्जियों में से है।
विटामिन ए से भरपूर यह उन सब्जियों में से है जो
पेट में अम्लता (एसिडिटी) को नियंत्रित करती हैं।
इसमें लगभग ९४ प्रतिशत पानी होता है। टिंडे की
खेती बेलवाली सब्जियों जैसे लौकी, तोरई, तरबूज,
खरबूजा, पेठा, खीरा, टिण्डा, करेला आदि के साथ
मैदानी भागों में गर्मी के मौसम में मार्च से लेकर
जून तक की जाती है।
रूप रंग-
यह एक लता के फल के रूप में प्राप्त होता है। इसकी
लता को ऊपर चढ़ाया जा सकता है या फिर इसे छत या
जाली पर फैलाया जा सकता है। इसके फल छोटे-बड़े
सामान्यतः २ से ३ इंच व्यास वाले, गोल हल्के व
गहरे हरे रंग में मिलते हैं। फलों के अन्दर असंख्य
बीज होते हैं। कच्ची अवस्था में ये नर्म सफेद और
छोटे होते हैं, लेकिन पकने के बाद काले और बड़े हो
जाते हैं। कच्चे टिंडे के बीज बहुत छोटे और मीठे
होते हैं। इसके फलों का प्रयोग कच्ची अवस्था में
जब वे गहरे हरे रंग के होते हैं, उस समय ही सब्जी
बनाने में किया जाता है।
अनेक नाम-
इसे हिन्दी में- टिंडा, संस्कृत में डिण्डिश, रोमश
फल तथा मुनि निमित आदि नामों से जाना जाता है।
इसका लेटिन नाम - सिट्रुलस् वल्गेरिस है। मराठी
में इसे ढेमसे, राजस्थानी में टींडसी, सिंधी में
मेहा और अँग्रेजी में इंडियन ऐपल गोर्ड या इंडियन
राउंड गोर्ड भी कहते हैं। इसे बेबी पंपकिन या छोटा
कद्दू भी कहा जाता है।
रासायनिक संगठन-
लगभग १०० ग्राम टिंडे में में जल - ९३.५ ग्राम,
प्रोटीन- १.४ ग्राम, वसा-०.२ ग्राम,
कार्बोहाइड्रेट- ३.४ ग्राम, कैल्शियम- २५
मि.ग्रा., फॉस्फोरस- २४ मि.ग्रा., लौह तत्व- ०.९
मि.ग्रा., कैरोटीन- १३ मा. ग्रा., थायेमीन- ०.०४
मि.ग्रा., रिबोफ्लेगिन- ०.०८ मि.ग्रा., नियासिन-
०.३ मि.ग्रा., विटामिन सी- १८ मि. ग्रा, ऊर्जा- २१
कि. कैलोरी आदि तत्व भी पाए जाते हैं। इसमें
सेचुरेटेड फैट, ट्रांस फैट, पौलीअनसेचुरेटेड फैट
और मोनो अनसेचुरेटेड फैट बिलकुल नहीं पाए जाते।
आयुर्वेद के अनुसार-
टिंडे की प्रकृति तर और शीतल होती है। टिंडा
रुचिकारक, मल भेदक, अत्यन्त शीतल वातजनक, रुक्ष,
मूत्र लाने वाला एवं पित्त, कफ तथा पथरी को दूर
करने वाला होता है। इसके फूल अपने औषधीय गुणों के
कारण अनेक रोगों का शमन भी करते हैं। इसके पूरी
तरह से पके हुए बीजों को सुखाकर भून लिया जाता है।
उसके बाद नाना रोगों में उपयोग किया जाता है। सभी
रोगों में टिण्डे की सब्जी लाभदायक होती है।
भोजन में-
आकार प्रकार में यह हरे सेब और कुम्हड़े की बीच की
कोई सब्जी मालूम होती है। इसका आकार लगभग तीन इंच
व्यास का चपटापन लिये हुए गोल होता है। इसका गूदा
सफेद रंग का होता है और स्वाद लौकी जैसा होता है।
इसके बीज खाने के लिये उपयुक्त माने जाते हैं
लेकिन अनेक स्वादिष्ट व्यंजनों में इन्हें निकाल
दिया जाता है। टिंडे का उपयोग उस समय किया जाता है
जब वह कच्चा हो और उसकी ऊपरी परत सख्त न हो गई हो,
इसे बैंगन, आलू और दूसरी सब्जियों के साथ
मिलाकर भी पकाया जाता है।
घरेलू नुस्खे-
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हल्के ज्वर में
टिण्डे की सब्जी का सेवन करने से ज्वर ठीक हो
जाता है।
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टिण्डा उच्च
रक्तचाप को कम करता है व मूत्रवर्धक होता है।
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टिण्डा सिर और
शरीर को तुरंत शक्ति प्रदान करता है एवं शरीर
को स्वस्थ व शक्तिशाली बनाता है।
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टिण्डे के ५०
मिलीलीटर रस में ०.७० ग्राम जवाखार मिलाकर
गुनगुना करके कुछ दिनों तक सेवन करने से पथरी
गलकर निकल जाती है।
२७
जुलाई २०१५ |
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