इस सप्ताह- |
अनुभूति
में-1
गीत, गजल, छंद और छंदमुक्त विधाओं में लिखी होली के रंगों से भरपूर काव्य
रचनाएँ। |
- घर परिवार में |
रसोईघर में- होली के चटपटे त्योहार के लिये हमारी रसोई-संपादक शुचि प्रस्तुत कर रही हैं,
स्वाद और स्वास्थ्य से भरपूर-
चटनी के आलू। |
बागबानी में-
कुछ आसान सुझाव जो बागबानी को सफल, स्वस्थ और रोटक बनाने
की दिशा में उपयोगी हो सकते हैं-
५- कंपोस्ट
का कमाल
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जीवन शैली में-
कुछ आसान सुझाव जो व्यस्त जीवन में, जल्दी वजन घटाने के लिये बहुत सहायक हो सकते हैं-
८- भोजन पर रक्खें
ध्यान
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सुंदर घर-
घर को सजाने के कुछ उपयोगी सुझाव जो आपको घर के रूप रंग
को आकर्षक बनाने में काम आएँगे-
४-
आधुनिकता और परंपरा का मेल। |
- रचना व मनोरंजन में |
क्या-आप-जानते-हैं-
आज के दिन (२ मार्च को) स्वामी श्रद्धानंद, इतिहासकार पुरुषोत्तम नागेश ओक,
अभिनेता टाइगर श्रौफ का जन्म हुआ था। ...
विस्तार से |
नवगीत संग्रह- में इस सप्ताह
प्रस्तुत है- संजीव सलिल की कलम से आचार्य भगवत दुबे के नवगीत संग्रह-
हिरण सुगंधों के का परिचय। |
वर्ग पहेली- २२६
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल
और
रश्मि-आशीष
के सहयोग से |
हास परिहास
में पाठकों
द्वारा
भेजे गए चुटकुले |
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साहित्य एवं
संस्कृति
में- होली के अवसर पर |
समकालीन कहानियों में प्रस्तुत
है भारत से
सुबोध मंडल की कहानी-
रक्तस्रावित हथेली
रंजन
को याद है, होश सँभालने के बाद दो-एक वसंत-पर्व दृष्टि-पथ से
गुजर चुके थे। मग्न बाल मंडली-हर्षित, उल्लासित और पूर्ण!
हालाँकि अभाव भी कम नहीं था। लेकिन, इसके बावजूद हर्ष और
उल्लास में कोई कमी नहीं थी। तब भी उसने माँ से पिचकारी की
माँग की थी, अन्य बच्चों के हाथ में पिचकारी देखकर। माँग ठुनक
के स्वर में प्रकट हुई थी। वह कोमल, शिष्ट और सभीत माँग माँ की
एक डाँट में ही न जाने खरगोश की तरह कहाँ दुबक गई थी? तब वह
इतना ही सोच पाया था कि मेरे पास प्लास्टिक की रंगीन पिचकारी
क्यों नहीं है? अच्छा, अगली होली में जरूर लूँगा। इसी संकल्प
से वह अगले वसंत उत्सव की प्रतीक्षा करने लगा।
दिन, सप्ताह, महीना और वर्ष का तो ज्ञान ही कितना था! बस, इतना
भर जानता था कि पहले दशहरा आएगा, फिर आएगी प्यारी होली! कभी किसी से पूछ बैठा कि दशहरा कब, कितने दिनों में आ रहा
है? और, दशहरे के बाद होली पर वे ही प्रश्न सोचा करता कि
अब दीवाली बीत गई। अब सरस्वती पूजा समाप्त हो गई। अब फगुआ का
गान कब होगा? आगे-
*
सुरेन्द्र अग्निहोत्री का
व्यंग्य
शॉपिंग का सुरूर
*
संतोष आनंद का ललित
निबंध
पेड़
से पीले पत्ते झर रहे हैं
*
संजीव सलिल का आलेख
हमारी लोक सम्पदा-
ईसुरी की फागें
*
पुनर्पाठ में होली में घर की
सजावट
सुझाव गृहलक्ष्मी के-
रंग बरसे |
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शशिकांत गीते की
लघुकथा-
आस्था
*
प्रोफेसर हरिमोहन के साथ
पर्यटन
माँझीवन का
सौन्दर्य लोक
*
विजय बहादुर सिंह के शब्दों में
एक और निराला
*
पुनर्पाठ में अभिज्ञात की
आत्मकथा
तेरे
बगैर का पहला भाग
*
समकालीन कहानियों में प्रस्तुत
है भारत से
गोविन्द उपाध्याय की कहानी-
एक टुकड़ा सुख
रिक्शा स्टैण्ड पर उसने रिक्शा
खड़ा करके अपना पसीना पोंछा। नगरपालिका के नल से चंद घूँट पानी
निगलने के पश्चात उसके गले की जलन तो शांत हो गई, लेकिन खाली
पेट में पानी का प्रवेश पाकर, आमाशय विद्रोह कर उठा। पेट के
मरोड़ को सहन करने के साथ ही वह अपने धचके हुए पेट को सहलाने
लगा। उसे अपने रिक्शे की तरफ आती दो युवतियाँ दिखायी दीं।
अंग्रेजी सेंट की खुशबू उसकी नाक में समा गयी। वह गहरी साँस के
साथ, ढेर सारी खुशबू फेफड़ों में समा लेना चाहता था, किंतु
फेफड़ों ने साथ ही नहीं दिया। वह पास आती युवतियों को देखता हुआ
अपने व्यवसायिक अंदाल में बोल पड़ा- ‘आइए मेम साहब, कहाँ
चलेंगी?’
‘इम्पीरियल टाकीज।’
‘आइए बैठिए।’
‘कितने पैसे लोगे?’
‘दस रुपए।’
अरे नहीं। बहुत ज्यादा है। पाँच रुपये लोगे?
वह कुछ सोचने के लिए रुका था कि सवारियों को आगे बढ़ता देख बोल
पड़ा, ‘आइए बीबी जी आगे-
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