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 २. २. २०१५

इस सप्ताह-

अनुभूति में-1सुरेश-पांडा,-मदन मोहन-अरविंद,-सुदर्शन-वशिष्ठ,  त्रिलोक सिंह ठकुरेला और सत्यवान शर्मा की रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- सर्दियों के मौसम में, हमारी रसोई-संपादक शुचि लाई हैं- हर दावत का नूर, स्वाद से भरपूर- मटर की कचौड़ी

बागबानी में- कुछ आसान सुझाव जो बागबानी को सफल, स्वस्थ और रोटक बनाने की दिशा में उपयोगी हो सकते हैं- १- हाथों की सुरक्षा पर ध्यान दें

जीवन शैली में- १५ आसान सुझाव जो जल्दी वजन घटाने में सहायक हो सकते हैं- ४- अपना खाना स्वयं पकाएँ-  

सप्ताह का विचार- जैसे अंधे के लिए जगत अंधकारमय है और आँखों वाले के लिए प्रकाशमय वैसे ही अज्ञानी के लिए जगत दुखदायक है और ज्ञानी के लिए आनंदमय। - संपूर्णानंद 

- रचना व मनोरंजन में

क्या-आप-जानते-हैं- आज-के दिन (२ फरवरी को) स्वामी श्रद्धानंद,-राजकुमारी-अमृत-कौर, हिन्दी प्रचार आन्दोलन के संगठक मोटूरि सत्यनारायण... विस्तार से

नये नवगीत संग्रहों से परिचय के क्रम में इस बार संजीव सलिल की कलम से कल्पना रामानी के नवगीत संग्रह- हौसलों के पंख पर

वर्ग पहेली- २२२
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और
रश्मि-आशीष के सहयोग से


हास परिहास
में पाठकों द्वारा भेजे गए चुटकुले

साहित्य एवं संस्कृति में-

समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है भारत से
विजय की कहानी- अपने सपने

पूरे ग्यारह साल बाद लौट रहा है बिसेसर। आगरा फोर्ट पर तूफान मेल गाड़ी से उतरा तो असमंजस ने पाँव थाम लिए...बाहर खड़ा कोई ताँगे वाला पहचान लेगा, अरे जो तो अपने बिंद्रा कौ भौड़ा है। और फिर पहले छूटने वाले ताँगे में दबकर बैठना होगा। उतरने पर पर्स निकालेगा तो चाबुक की तरह उछल पडेंगे स्वर... बौत कमाई कर लायो है तो थैली अपनी मैया कू थमा दीजो नई तो बाप कलारी में लुटा आयगो। सवारियाँ प्लेटफार्म से निकल गई और तुफान मेल उलटी सरकने लगी तो वह गेट की तरफ बढ़ा। याद आया कि कभी आगरा फोर्ट स्टेशन भीड़ से चहकता रहता था। एक तरफ बड़ी लाइन का स्टेशन था तो दूसरी तरफ छोटी लाइन का। बड़ी लाइन से टूंडला जाने वाली हर गाड़ी गुजरती थी। मगर पुराना पुल खतरनाक घोषित हो गया। अब तो तूफान मेल भी ईदगाह के रास्ते आती है और फिर वापस आगरा सिटी स्टेशन से होती नए पुल से यमुना पार होती टूंडला से गुजरती है। वह नया पुल भी कौन नया है? आजादी आने से पहले बना था।  आगे-
*

विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र' की
लघुकथा- भिखारी

*

नचिकेता का रचना प्रसंग
समकालीन हिंदी गीत के पचास वर्ष
*

गुरमीत बेदी के साथ पर्यटन
एक गाँव कलाकारों का

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सामयिकी में नितिन मिश्रा का आलेख
ओबामा-की-भारत-यात्रा : कूटनीतिक-कुशलता-का-कदम

पिछले सप्ताह-

समीरलाल समीर का व्यंग्य
गाँधी जी का टूटा चश्मा

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शशि पाधा का संस्मरण
अपना अपना युद्ध
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अशोक शुक्ल का आलेख
गाँधी भवन हरदोई  

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पुनर्पाठ में ब्रजेश शुक्ला का आलेख
भारत के राष्ट्रपति

*

समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है भारत से
काजल पांडेय की कहानी- कदम बढ़ाए जा

जितनी बार उसकी शक्ल टेलीविजन पर एक नयी खबर के साथ दीखती, आँखों के आगे उस तीस वर्ष पुराने कोमल बेचारे से लड़के का चेहरा आ जाता। जो वार्डन के बुलाने पर बाहर आश्रम के ग्राउण्ड में अपने हम उम्र लड़कों के साथ हाथ में तिरंगा लिये 'कदम-कदम बढ़ाए जा' गाते हुए छब्बीस जनवरी की परेड की तैयारी के बीच से भागता हुआ आया था। आज के चेहरे में कहीं भी वह नम्रता, कोमलता, वह भोलापन नहीं दिख रहा और उस पर इस सनसनीखेज खबर को सुनकर उसे विश्वास नहीं हो रहा है कि यह वही वीरवर्धन है। प्रतिमा ने अपने को समझाने का असफल प्रयास भी किया। एक नाम के कई व्यक्ति होते हैं... लेकिन साथ ही अंतर्द्वंद्व शुरू हो जाता क्या पिता का नाम भी वही? गाँव, शहर भी एक ही। भला हो इस मीडिया का, जाने कहाँ कहाँ गोता लगाकर सारी जानकारी इकट्ठी कर लाते हैं। फिर दिनकर देव ने ही तो कई वर्ष पहले वीरवर्धन के राजनीति में सक्रिय होने की खबर दी थी। सुनकर प्रतिमा आश्चर्यचकित रह गयी थी। आगे-

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है
यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी -|- मीनाक्षी धन्वंतरि
 

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