बापू की पुण्य तिथि ३० जनवरी के
अवसर पर
गाँधी भवन हरदोई
- अशोक शुक्ला
महात्मा गाँधी के न रहने के बाद गाँधी जन्म शताब्दी
वर्ष १९६९ में समूचे भारत में जिला गाँधी शताब्दी
समितियों का गठन किया गया और प्रत्येक जनपद में गाँधी
से जुडी स्मृतियों को सँजोने का कार्य किया गया था
जिसका उद्देश्य गाँधीजी की विरासत को संरक्षित करना
था। इसी योजना के अंर्तगत हरदोई जनपद में भी जिला
गाँधी शताब्दी समिति का गठन हुआ और इसके द्वारा
११ नवम्बर १९७० को जनपद में गाँधी भवन बनाये का
निर्णय लिया गया था। इसके मुख्य भवन निर्माण हेतु जिस
भूमि का चयन किया गया उसकी ऐतिहासिकता भी महात्मा
गाँधी की महान स्मृति से जुड़ी हुयी थी।
उल्लेखनीय है कि सन् १९२९ ई॰ में कांग्रेस के लाहौर
अधिवेशन के लिये सुयोग्य अध्यक्ष के रूप में दस
प्रान्तों ने महात्मा गाँधी के नाम का चुनाव किया था
परन्तु गाँधी जी ने कांग्रेस अधिवेशन की अध्यक्षता
स्वीकार न करते हुये अपना त्यागपत्र दे दिया था। अब
कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव के लिये लखनऊ में कांग्रेस
महासमिति की एक बैठक सम्पन्न हुयी तो गाँधीजी ने
कांग्रेस की बागडोर नवयुवकों के हाथ में सौपने की बात
कही। इस बैठक में गाँधी जी से विचारोपरान्त तत्कालीन
युवा नेता जवाहरलाल नेहरू जी को कांग्रेस के लाहौर
अधिवेशन हेतु सभापति के रूप में चयनित कर लिया गया। इस
प्रकार कांग्रेस की बागडोर युवा हाथों में सुरक्षित
कराने के बाद वे स्वयं समूचे देश में सविनय अवज्ञा
जनजागरण यात्रा को प्राथमिकता दी। अपनी इसी सविनय
अवज्ञा जनजागरण यात्रा के दौरान वे ११ अक्टूबर १९२९ को
हरदोई जनपद मे भी पधारे और एक विशाल जनसभा को संबोधित
किया। गाँधी जी की इस जनसभा के लिये विक्टोरिया भवन के
मुख्य प्रांगण का चयन किया था क्योंकि यह भवन ब्रिटेन
की महारानी विक्टोरिया के भारत के सम्राज्ञी घोषित
होने की स्मृति में निर्मित कराया गया था और अंग्रेजी
प्रभुसत्ता के प्रतीक के रूप में जाना जाता था। इस
जनसभा के समापन पर राष्ट्रपिता के आह्वाहन पर सभा स्थल
पर ही विदेशी वस्त्रों की होली जलायी गयी तथा
स्वतंत्रता संग्राम की सहायतार्थ २७३ रूपयों का चंदा
भी एकत्रित किया गया। सभा के समापन पर खद्दर के कुछ
बढिया कपडे २९६ रुपये में नीलाम किये गये और यह धनराशि
गाँधी जी को भेट की गयी।
जिला गाँधी शताब्दी समिति को उपरोक्त ऐतिहासिकता के
साथ जुडा विक्टोरिया हाल का मुख्य प्रांगण महात्मा
गाँधी की स्मृति में बनने वाले गाँधी भवन के लिये सबसे
उपयुक्त स्थल जान पडा इसलिये इस भवन का रखरखाव करने
वाले विक्टोरिया हाल ट्रस्ट से मुख्य प्रांगण को मासिक
किराये पर प्राप्त किया गया और ट्रस्ट की असहमति के
बावजूद इसमें गाँधी भवन का निर्माण आरंभ करा दिया गया।
स्थानीय जनता तथा राइफल क्लब द्वारा उपलब्ध कराये गये
धन से इसे बनाया जाने लगा। यह भवन ८ मई १९८३ को बनकर
पूर्ण हुआ और एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के हाथों
लोकार्पित हुआ।
अपने लोकार्पण के उपरांत यह भवन जनपद की विभिन्न
सामाजिक सांस्कृतिक आयोजनों की स्थली के रूप में उपयोग
में आने लगा। देश के अन्य जनपदों में स्थापित गाँधी
भवन भी इसी प्रकार के आयोजनों की स्थली के रूप में
लंबे अरसे तक उपयोग में आ रहे हैं।
हरदोई जनपद में नगर मजिस्ट्रेट के रूप में तैनाती पाने
के बाद गाँधी भवन की देखरेख करने वाली समिति महात्मा
गाँधी जन कल्याण समिति का सचिव होने का पदेन दायित्व
वर्ष २०१२ में मुझे प्राप्त हुआ तो इस भवन में दैनिक
प्रार्थना के रूप में गाँधी की प्राण प्रतिष्ठा करने
का विचार मन में आया। इस विचार को मूर्त रूप देते हुये
प्रथम जनवरी को इस गाँधी भवन में एक नयी परंपरा का
आरंभ हुआ जब इसमें प्रार्थना कक्ष की स्थापना की गयी
और इसमें सर्वोदय आश्रम की सहायता से नियमित प्रार्थना
किये जाने का संकल्प लिया गया। नववर्ष के अवसर पर आरंभ
की गयी प्रार्थना के संबंध में यह विचार उठना
स्वाभाविक है कि इसे १ जनवरी को ही क्यों आरंभ किया
गया जबकि इसे महात्मा गाँधी के जन्म दिवस, निर्वाण
दिवस, इस भवन के लोकर्पण दिवस अथवा इस परिसर में गाँधी
के आगमन दिवस पर आरंभ किये जाने का तार्किक विकल्प
उपलब्ध था।
इस संबंध में पाठकों को सन् १९३३ ई॰ में गाँधी जी से
जुड़ी एक रोचक तथ्य की जानकारी देना समीचीन प्रतीत होता
है। दसअसल उन दिनों केरल राज्य के प्रमुख मंदिरों में
हरिजनों का प्रवेश पूर्णतः प्रतिबंधित था। ऐसा ही एक
प्रतिष्ठित मंदिर है गुरूवायूर मंदिर, अन्य मंदिरों की
भाँति उसमें भी हरिजनों के प्रवेश पर पाबंदी थी। मंदिर
के पुजारी किसी भी गैर ब्राहमण व्यक्ति को मंदिर में
प्रवेश नहीं कराने के पक्ष में रहते थे। हरिजनों के
साथ इस भेदभावपूर्ण रवैये के कारण स्थानीय हरिजनों में
आक्रोश था परन्तु उनका नेतृत्व सँभालने वाला कोई नहीं
था। केरल के गाँधी समर्थक श्री केलप्पन ने महात्मा की
आज्ञा से इस प्रथा के विरूद्ध आवाज उठायी और अंततः
इसके लिये सविनय अवज्ञा प्रारंभ की गयी। मंदिर के
ट्रस्टियों को इस बात की ताकीद की गयी कि नये वर्ष का
प्रथम दिवस अर्थात १ जनवरी १९३४ को अंतिम निश्चय दिवस
के रूप में मनाया जायेगा और इस तिथि पर उनके स्तर से
कोई निश्चय न होने की स्थिति मे महात्मा गाँधी तथा
श्री केलप्पन द्वारा आन्दोलनकारियों के पक्ष में आमरण
अनशन किया जा सकता है। महात्मा गाँधी का यह प्रयोग
अत्यंत संन्तोषजनक तथा शिक्षाप्रद रहा। उनके द्वारा दी
गयी अनशन की धमकी का उत्साहजनक असर हुआ और श्री
गुरूवायूर मंदिर के ट्रस्टियों की ओर से बैठक बुलाकर
मंदिर के उपासकों की राय भी प्राप्त की गयी। बैठक में
७७ प्रतिशत उपासकों के द्वारा दिये गये बहुमत के आधार
पर मंदिर में हरिजनों के प्रवेश को स्वीकृति दे दी गयी
और इस प्रकार १ जनवरी १९३४ से केरल के श्री गुरूवायूर
मंदिर में किये गये निश्चय दिवस की सफलता के रूप में
हरिजनों के प्रवेश को सैद्धान्तिक स्वीकृति मिल गयी।
इस निश्चय दिवस से प्रेरणा लेकर ही हरदोई के गाँधी भवन
सभागार में निर्मित प्रार्थना कक्ष मे भी नियमित
प्रार्थना का शुभारंभ भी निश्चय दिवस के अवसर पर ही
किया जाना तार्किक जान पड़ा। साथ ही इस निश्चय दिवस के
मूल में हरिजन बंधुओं को श्री गुरूवायूर मंदिर में
प्रवेश का अधिकार दिलाने की पवित्र भावना निहित होने
का कारण विद्यमान था इसलिये महात्मा गाँधी जी द्वारा
मनाये गये पहले निश्चय दिवस के ८० वर्ष व्यतीत होने के
उपरांत पुनः १ जनवरी २०१२ को हरदोई के गाँधी भवन में
जिस नियमित प्रार्थना सभा का आरंभ किया गया उसका
दायित्व भी हरिजन बंधुओं के पाल्यों को निशुल्क शिक्षा
दिलाने वाली संस्था सर्वोदय आश्रम को ही दिया गया।
इसके मूल में यह भावना निहित थी कि श्री गुरूवायूर
मंदिर में हरिजन भाइयों के निश्चय दिवस के दिन साधिकार
प्रवेश के रूप में मिली सफलता के अनुरूप इस प्रार्थना
सभा को भी हरदोई के गाँधी भवन में एक निश्चय दिवस के
रूप हमेशा याद किया जाय।
एक ऐसे गौरवशाली निश्चय दिवस के रूप में आरंभ हुयी
प्रार्थना सभा गत १२ अक्टूबर को एक और ऐतिहासिकता की
साक्षी बनी जब हरिजन सेवक संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष
श्री शंकर कुमार सान्याल और महामंत्री श्री लक्ष्मीदास
जी इस प्रार्थना सभा मे उपस्थित हुये और गाँधी और
अंतिम व्यक्ति विषय पर आयोजित गोष्ठी की अध्यक्षता
स्वीकार की। इस अवसर पर बोलते हुये श्री शंकर सान्याल
जी ने कहा कि आजादी के बाद हमारा सबसे बडा नुकसान
महात्मा गाँधी का हमसे बिछड जाना ही है। वह गाँधी जिसे
अपने एक लाठी के सहारे समूची अंग्रेजी फौज से लड़ाई
लड़कर हिन्दुस्तान को
आजाद करा लिया उसका शरीर अपनों के
हाथों अवश्य समाप्त कर दिया गया परन्तु उसके विचार को
कोई नहीं मिटा पाया। हर नये दिन गाँधी का विचार अपने
नये नये रूपों में हमारे सामने प्रगट होता रहता है।
श्री सान्याल ने इस अवसर पर गाँधी प्रार्थना सभा की
आगंतुक पंजी में अपने उद्गारों को अंकित भी किया।
इन पंक्तियों का लेखक भी भाग्यशाली रहा कि उसे न सिर्फ
गाँधी भवन के इस श्री शंकर कुमार सान्याल जी और
महामंत्री श्री लक्ष्मीदास जी के सानिध्य में बैठकर
उनको सुनने का अवसर मिल सका अपितु इन महान हस्तियों ने
उसका आतिथ्य भी स्वीकार किया।
२६ जनवरी २०१५ |