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हास्य व्यंग्य

गाँधी जी का टूटा चश्मा
सुशील यादव


जब चपरासी रामलाल जाले हटाता, धूल झाड़ता कबाड़घर के पिछले हिस्से में गाँधी जी की मूर्ति को खोजता हुआ पहुँचा तो उड़ती धूल के मारे गाँधी जी की मूर्ति को जोरों की छींक आ गई। अब छड़ी सँभाले कि चश्मा या इस बुढ़ापे में खुद को... चश्मा आँख से छटक कर टूट गया। गुस्से के मारे लगा कि रामलाल को तमाचा जड़ दें मगर फिर उनको अपनी अहिंसा के पुजारी वाली डिग्री याद आ गई तो मुस्कराने लगे। सोचने लगे कि एक चश्मा और होता तो वो भी इसके आगे कर देता कि चल, इसे भी फोड़ ले। मेरा क्या जाता है? जितने ज्यादा चश्में होंगे, उतने ज्यादा लंदन से नीलाम होंगे। मुस्कराते हुए बोले- कहो रामलाल, कैसे आना हुआ? पूरे साल भर बाद दिख रहे हो?

गाँधी जी की मूर्ति को सामने बोलता देख रामलाल बोला-चलो बापू साहेब, बुलावा है। नई पार्टी बन रही है। नये मूल्यों के साथ- नये जमाने की- नये लोग हैं, नया इस्टाईल है, गाते बजाते हैं, हल्ला मचाते हैं, एक अलग तरह की पार्टी बना रहे हैं जिसमें पार्टी के भीतर ही पार्टी का लोकपाल होगा। आज आपका जन्म दिन है, आपके सामने आपका नाम लेकर बनायेंगे। नहा लो, नये कपड़े पहने लो और चलो, फटाफट। बहुत भीड़ लगने वाली है। आपको नई पार्टी की योजनाओं, प्रत्याशियों और भविष्य को शुभकामनाएँ देनी हैं। याद आया आपको- ये वे ही लोग हैं जिनका कल तक आपके नाम से आंदोलन चलता था और आपका एकदम खास भक्त इनका नेता था। अब थोड़ा आपके भक्त से खटपट हो चली है। कुछ चंदे वगैरह का हिसाब किताब और कुछ महत्वाकांक्षा की उड़ान। खैर, आप तो जानते ही हो कि ऐसा ही होता आया है हमेशा। आपके लिए भला नया क्या है? आप तो हमेशा से ऐसी घटनाओं के साक्षी रहे हो, साबरमती के संत!

गाँधी जी बोले, देख भई रामलाल। एक तो तू ज्यादा चुटकी न लिया कर ये संत वंत बोल कर। बस, आज का ही दिन तो होता है जब मैं थोड़ा बिजी हो जाता हूँ। हर सरकारी दफ्तर से लेकर हर भ्रष्ट से शिष्ट मंडल तक लोग मेरी पूछ परख करके अपने ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ होने का प्रमाण देते हैं। ऐसे में ये एक और... कह दो भई इनसे कि कल रख लेंगे कार्यक्रम। नई पार्टी ही तो है, आज नहीं जन्मी तो क्या, कल जन्म ले लेगी। रंग तो २०१४ में ही दिखाना है। एक दिन में क्या घाटा हो जायेगा? मेरा भी एक के बदले दो दिन मन बहला रहेगा।

रामलाल उखड़ पड़ा। कहने लगा एक तो साल भर आपको कोई पूछता नहीं। चुपचाप यहाँ पड़े रहते हो। आज पूछ रहे हैं तो आप भाव खा रहे हो कि आज नहीं कल। तो सुन लीजिये- यह कोई आपसे निवेदन या प्रार्थना नहीं है। बस, बुलाया है और आपको चलना है। आदेश ही मानों इसे।

सारे भारत की जनता से उन लोगों ने पार्टी बनाने के लिए पूछ लिया है और सबने उनसे पर्सनली कह दिया है कि आप पार्टी बनाइये- आपकी जरुरत है। इसके बावजूद आप हैं कि नक्शे ही नहीं मिल रहे- हद है बापू!
गाँधी जी ने परेशान होते हुए पूछा कि सारी जनता से कैसे पूछ लिया भई उन्होंने वो भी बिना वोट डलवाये?

रामलाल ने मुस्कराते हुए कहा कि बापू, आप तो बिल्कुल बुढ़ पुरनिया हो गये। इतना भी नहीं जानते कि उन्होंने फेसबुक से बताया था और खूब लोगों ने लाइक चटकाया। आजकल तो ऐसे ही पूछा जाता है। अब तो एस एम एस का फंडा भी बासी हो गया।

गाँधी जी सकपका गये। कहने लगे- मैं क्या जानूँ? मेरा तो फेसबुक एकाउन्ट है नहीं, चल भई, तू कहता है तो चलता हूँ। मगर मेरा चश्मा तो बनवा दे। वरना उनका घोषणा पत्र पढ़े बिना उन्हें कैसे आशीर्वाद दूँगा?

रामलाल हँसने लगा- अरे बापू, इतनी जल्दी भला कोई घोषणा पत्र बनता है। अभी चार दिन पहले तो बात हुई पार्टी बनाने की जब आपके खास वाले से मतभेद हुआ। सब कार्यक्रम पहले से तय है। आप वहाँ मंच पर विराजमान रहेंगे। आपका माल्यार्पण होगा। तत्पश्चात वो आपको घोषणा पत्र (कोरे कागज का पुलिंदा) पकड़ायेंगे। आप अपना बिना शीशे का चश्मा पहने उसे देखने का नाटक करियेगा और फिर कह दीजियेगा कि 'मुझे बहुत उम्मीद है इनसे। मैं इन्हें आशीष देता हूँ। ये एक नव भारत का निर्माण करेंगे।' अब अच्छा या बुरा, ये तो आपने कहा नहीं होगा तो नव ही। आप सेफ रहोगे और पूजे जाते रहोगे तो नो टेंशन- बस, चले चलो- मैं हूँ न!
दूर बैठी जनता को क्या समझ आयेगा कि घोषणा पत्र भी कोरा है और आपके चश्में में भी शीशा नहीं है।

गाँधी जी बोले कि रामलाल ऐसा तो मैं सभी पार्टियों के साथ करता आया हूँ मगर तू तो कह रहा था कि यह नई पार्टी है, नये मूल्यों के साथ, नये जमाने की... एक अलग तरह की जिसमें पार्टी के भीतर ही पार्टी का लोकपाल होगा।
अरे बापू, सभी तो एक न एक दिन नये थे। सभी कुछ नया ही करने आये थे, वो तो धीरे धीरे पुराने हो जाते हैं। ये भी हो जायेंगे।
बस, इनमें एक नई चीज आपने सही पकड़ी- पार्टी के भीतर ही पार्टी का लोकपाल होगा। आपन दरोगा, आपन थाना, अब डर काहे का!

गाँधी जी रामलाल को देख मुस्कराये। रामलाल उन्हें देख कर एक आँख दबाता है और चल पड़ते हैं गाँधी जी नई धोती पहने... बिना शीशे का चश्मा, एक हाथ में लाठी और दूसरे हाथ से रामलाल का कँधा थामे, पार्टी घोषणा स्थल की ओर। कोशिश रही कि कोई टूटा चश्मा न देख ले।

२६ जनवरी २०१५

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