इस सप्ताह- |
1
अनुभूति
में-
वर्षा की बौछारों से भीगी गीत से इतर कविताओं का एक और मनमोहक समारोह। |
- घर परिवार में |
रसोईघर में- हमारी रसोई-संपादक शुचि द्वारा प्रस्तुत है-
भुट्टों के मौसम में मक्के के स्वादिष्ट व्यंजनों के क्रम में-
मक्की की टिक्की। |
गपशप के अंतर्गत- पालतू कुत्ते या बिल्ली रखना बहुत से लोगों को
अच्छा लगता है, लेकिन उसके साथ कुछ ध्यान रखने वाली बातें भी हैं जानें-
विस्तार से... |
जीवन शैली में-
शाकाहार एक लोकप्रिय जीवन शैली है। फिर भी
आश्चर्य करने वालों की कमी नहीं।
१४
प्रश्न जो शकाहारी सदा झेलते हैं- ६
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सप्ताह का विचार में-
आत्मविश्वास सरीखा दूसरा कोई मित्र नहीं। यही हमारी उन्नति में
सबसे बड़ा सहयक होता है। - स्वामी विवेकानंद |
- रचना व मनोरंजन में |
क्या-आप-जानते-हैं-
कि आज के
दिन (२८ जुलाई को)
समीक्षक-आलोचक नामवर सिंह, चित्रकार मंजीत बावा, अभिनेत्री आयशा जुल्का, हुमा
कुरैशी, और...
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लोकप्रिय
उपन्यास
(धारावाहिक) -
के
अंतर्गत प्रस्तुत है २००५
में
प्रकाशित
सुषम बेदी के उपन्यास—
'लौटना' का
पाँचवाँ भाग। |
वर्ग पहेली-१९५
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल
और रश्मि-आशीष
के सहयोग से |
सप्ताह
का कार्टून-
कीर्तीश
की कूची से |
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साहित्य एवं
संस्कृति
में- |
समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है
यू.एस.ए. से
अनिल प्रभा कुमार की कहानी--
बरसों बाद
गैराज का दरवाजा खुलने की आवाज
आई। वे लोग आ गए। मैं उत्सुकता से बाहर लपकी नहीं बल्कि खड़े
होकर गहरी साँस ली। उसके सामने होने की तैयारी तो दो दिन से कर
रही थी, अब बस होना था। अपने को साध कर सीढ़ियाँ नीचे उतरी।
एकदम सामने फ़ॉयर में लगा आइना था, ठिठकी। जैसे किसी और को देख
रही होऊँ। वह भी इसी ओर को देखेगी।सामने का दरवाजा अन्दर की ओर खुला। मेरे पति मुस्कुरा कर पीछे
हट गए ताकि वह आगे आ सके। एक पल, शायद इतना भी नहीं, वही थी।
हम दोनों एक दूसरे से लिपट गईं। उसने मुझे अपने सीने से ज़ोर से
भींच रखा था और मैंने उसे। हमारे बदन काँप रहे थे, उद्वेग से,
प्रेम से, इतने सालों की बिछुड़न को नकारते हुए।
"तू बिल्कुल वैसी की वैसी ही है।" मैने उसके चेहरे को पहली बार
देखा।
"तू भी तो नहीं बदली।" उसकी आवाज तक में कंपकंपाहट थी।
मेरे पति शरारत से मुस्कुराए। अनुवाद कि दोनों झूठ बोल रही हो।
वह उसका सामान लेकर ऊपर के कमरे में रखने के लिए चले गए।... आगे-
*
आलोक सक्सेना का व्यंग्य
स्वामी आलोकानंद जी महाराज का बिजली उपवास
*
अवधेश मिश्र से
कलादीर्घा में जानें
न्यू मीडिया समकालीन कला का कल
*
धमयंत्र चौहान का एकांकी
ह और म की लड़ाई
*
पुनर्पाठ में- विद्याभूषण मिश्र का निबंध
सावन उड़ै कजरिया मस्तानी
1 |
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पिछले
सप्ताह-
वर्षा मंगल विशेषांक |
बसंत आर्य की लघुकथा
बारिश
*
कुमार अंबुज का एकालाप-
अपनी बारिश के बीच
*
उमाशंकर चतुर्वेदी का निबंध
पावस
के शृंगारिक छंद
*
पुनर्पाठ में- डॉ. नवाज देवबंदी का
गजल संग्रह-
पहली बारिश
*
समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है
भारत से
शुभ्रा उपाध्याय की-कहानी--
अषाढ़ के दिन
आसमान काले-काले बादलों से भर गया। ठंडी हवाओं ने तन मन को
तरावट दी। उसका बेहद उकताया हुआ मन जैसे नई ऊर्जा से उमग
गया। अभी-अभी आग की बारिश करता मौसम बिल्कुल बदल गया। जैसे
किसी ने जादू की छड़ी घुमा दी हो। कितनी देर से उसकी खीझ
अपने से होती हुई मौसम के वाहियात रवैये पर आकर अटक गई थी,
किन्तु यहाँ तो पल में सबकुछ छू मंतर हो गया। हवाएँ देह को
सहलाती धीरे-धीरे बह रही थीं, बादलों की नमीं आँखों के सहारे
मन की गहराइयों में उतर रही थी और उसका मन बूँद-बूँद भीगता
क्रमश: गीली मिट्टी में तब्दील होता जा रहा था। उसने एक लम्बी
साँस ली। आँखें बंद कर। कुछ पल अपनी अनुभूतियों में समेट कर
ऊपर देखा। बादल न जाने किस देश दौड़े जा रहे थे। फिर भी वे
इतने बेफिक्र भी न थे कि मिलने वाले जलद खण्डों से खैरियत भी न
पूछ सकें। उसने स्पष्ट देखा- दो मेघदूतों को आपस में
कहते-सुनते और रुककर बतियाते। ये मेघदूत अपने-अपने आत्मीयों
को अपना संदेशा ऐसे ही भेजा करते हैं शायद! इनके लिए तो कोई
कालिदास महाकाव्य की रचना... आगे- |
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