इस सप्ताह- |
अनुभूति
में-
डॉ. मधु प्रधान, मुन्नी
शर्मा, निर्मल गुप्ता, लाखनसिंह भदौरिया और शैलाभ शुभिशाम की रचनाएँ। |
- घर परिवार में |
रसोईघर में- हमारी रसोई-संपादक शुचि द्वारा प्रस्तुत है- सर्दियों के
मौसम की तैयारी में गरम शोरबों की शानदार यात्रा का आनंद-
टमाटर का सूप। |
रूप-पुराना-रंग
नया-
शौक से खरीदी गई सुंदर चीजें पुरानी हो जाने पर फिर से सहेजें
रूप बदलकर-
टिश्यू पेपर के रोल के नये प्रयोग। |
सुनो कहानी-
छोटे
बच्चों के लिये विशेष रूप से लिखी गई छोटी कहानियों के साप्ताहिक स्तंभ में
इस बार प्रस्तुत है कहानी-
हवाई जहाज। |
- रचना और मनोरंजन में |
नवगीत की पाठशाला में-
नई कार्यशाला- ३१ का विषय है- नव जीवन,
नव ताल छंद और नव उत्साह से भरे नये साल के स्वागत का।
विस्तार से... |
साहित्य समाचार में- देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक
समाचारों, सूचनाओं, घोषणाओं, गोष्ठियों आदि के विषय में जानने के लिये
यहाँ देखें। |
लोकप्रिय
कहानियों
के
अंतर्गत-
इस सप्ताह प्रस्तुत है १६ फरवरी
२००६ को प्रकाशित गुरुदीप खुराना की कहानी- 'गरमाहट'
|
वर्ग पहेली-१६३
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल
और रश्मि आशीष के सहयोग से
|
सप्ताह
का कार्टून-
कीर्तीश
की कूची से |
अपनी प्रतिक्रिया
लिखें
/
पढ़ें |
|
साहित्य एवं संस्कृति में-
|
समकालीन
कहानियों में यू.के. से
चंद्रकिरण सौनरेक्सा की कहानी
हिरनी
काली
इटैलियन का बारीक लाल गोटेवाला चूड़ीदार पायजामा और हरे
फूलोंवाला गुलाबी लंबा कुर्ता वह पहने हुई थी। गोटलगी कुसुंभी
(लाल) रंग की ओढ़नी के दोनों छोर बड़ी लापरवाही से कंधे के
पीछे पड़े थे, जिससे कुर्ते के ढीलेपन में उसकी चौड़ी छाती और
उभरे हुए उरोजों की पुष्ट गोलाई झलक रही थी। अपनी लंबी मजबूत
मांसल कलाई से मूसली उठाए वह दबादब हल्दी कूट रही थी। कलाई में
फँसी मोटी हरी चूड़ियाँ और चाँदी के कड़े और पछेलियाँ बार-बार
झनक रही थीं। उन्हीं की ताल पर वह गा रही थी -'हुलर-हुलर दूध
गेरे मेरी गाय... आज मेरा मुन्नीलाल जीवेगा कि नाय।'
बड़ा लोच था उसके स्वर में। इस गवाँरू गीत की वह पंक्ति उस
तीखी दुपहरी में भी कानों में मिश्री की बूँदों के समान पड़
रही थी। कुछ देर मैं छज्जे की आड़ में खड़ी सुनती रही। न उसने
कूटना बंद किया और न वह गीत की पंक्ति 'हुलर-हुलर...।'
धूप में पैर बहुत जलने लगे, तो मैं लौटने को ही थी कि पीछे से
भाभी ने आ कर जोर से कहा, 'खुदैजा, अरी देख, यह रही हमारी
बीबीजी।'
आगे-
*
विनय मोघे का व्यंग्य
पाठ्यक्रम बाबागिरी का
*
नचिकेता का रचना प्रसंग
समकालीन
गीतों में संवेदना के विकास का स्वरूप
*
सुधा अरोड़ा की श्रद्धांजलि
चंद्रकिरण सौनरेक्सा
की जयंती पर
*
पुनर्पाठ में-अर्बुदा ओहरी के
साथ चलें फुटबाल की दुनिया में |
अभिव्यक्ति समूह
की निःशुल्क सदस्यता लें। |
|
पिछले
सप्ताह- |
१
सत्यप्रकाश हिंदवाण की
लघुकथा-
दलाली
*
पूर्णिमा वर्मन का आलेख
प्रवासी कहानी कुछ
प्रश्नों के उत्तर
*
लीना मेंहदले का आलेख
न्यूजीलैंड हाउस की एक शाम
*
पुनर्पाठ में-घनश्यामदास आहूजा का
संस्मरण- धुएँ से आजादी
* समकालीन
कहानियों में यू.के. से
दीपक शर्मा की कहानी
बाप वाली
“बाहर
दो पुलिस कांस्टेबल आए हैं, “घण्टी बजने पर बेबी ही दरवाजे पर
गयी थी,
“एक के पास पिस्तौल है और दूसरे के पास पुलिस रूल। रूल वाला
आदमी अपना नाम मीठेलाल बताता है। कहता है, वह अपनी लड़की को
लेने आया है।” सुनीता महेंद्रू की माँ को मोजे पहना रहे मेरे
हाथ काँपे।
“तू चिन्ता न कर,” शाम की अखबार देख रही सुनीता महेन्द्रू ने
अखबार समेट कर मेरी ओर देखा, “मैं तुझे नहीं जाने दूँगी।”
पाजी समझता है, तेरी माँ नहीं रही तो वह तुझे यहाँ से हाँक ले
जाएगा,” सुनीता महेन्द्रू की माँ अपने चेहरे पर अपनी टेढ़ी
मुस्कान ले आयी।
“लड़की को सामने तो लाइए,” बाहर के बरामदे की चिल्लाहट अन्दर
हमारे पास साफ पहुँच ली।
“तू बिल्कुल मत जाना,” जूते पहन चुकी सुनीता महेन्द्रू की माँ
धीमे से बुदबुदायी, “याद है, तुझे उससे दूर रखने की खातिर तेरी
माँ आखिरी दम तक कचहरी के चक्कर काटती रही?”...
आगे- |
अभिव्यक्ति से जुड़ें आकर्षक विजेट के साथ |
|