इस सप्ताह- |
अनुभूति
में-
जगदीश पंकज, प्रभा दीक्षित, लावण्या शाह, सरस्वती माथुर और
अखिलेश सिन्हा की रचनाएँ। |
- घर परिवार में |
रसोईघर में- हमारी रसोई-संपादक शुचि द्वारा प्रस्तुत ब्रेड
के व्यंजनों की विशेष शृंखला में इस बार प्रस्तुत है-
पालक मकई सैंडविच। |
रूप-पुराना-रंग
नया-
शौक से खरीदी गई सुंदर चीजें पुरानी हो जाने पर फिर से सहेजें
रूप बदलकर-
जब मेज
बनी बिस्तर। |
सुनो कहानी- छोटे
बच्चों के लिये विशेष रूप से लिखी गई छोटी कहानियों के साप्ताहिक स्तंभ में
इस बार प्रस्तुत है कहानी-
कहानी की किताब।
|
- रचना और मनोरंजन में |
नवगीत की पाठशाला में-
प्रकाशित चुनी हुई रचनाओं का संकलन जल्दी ही प्रकाशित होने
की प्रक्रिया में है। नई कार्यशाला की घोषणा में अभी कुछ समय
और... |
साहित्य समाचार में- देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक
समाचारों, सूचनाओं, घोषणाओं, गोष्ठियों आदि के विषय में जानने के लिये
यहाँ देखें। |
लोकप्रिय
कहानियों
के
अंतर्गत- इस
सप्ताह प्रस्तुत है २४ नवंबर २००६ को प्रकाशित महेशचंद्र द्विवेदी की कहानी-
मनिला की योगिनी।
|
वर्ग पहेली-१५१
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल
और रश्मि आशीष के सहयोग से
|
सप्ताह
का कार्टून-
कीर्तीश
की कूची से |
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साहित्य
एवं
संस्कृति
में-
|
समकालीन
कहानियों में भारत से
सूरज प्रकाश की कहानी
सड़ी मछली
नींद नहीं आ रही। ११:४५ हो रहे हैं। स्लीपिंग पिल्स लिये हुए
भी दो घंटे हो गए। ये रोज़ का अफसाना हो गया है। गोली खा कर
भी नींद का न आना। शायद इसी को रिटायरमेंट ब्लू कहते हैं।
डॉक्टर बता रहा था – अब आपको उतनी शारीरिक और मानसिक थकान नहीं
होती जितनी पहले नौकरी के दौरान होती थी, कामकाज से जुड़ी उतनी
चिंताएँ भी नहीं रही हैं। एकाध बरस लग जाता है चालीस बरस से
बने रूटीन के बजाए अचानक दूसरा रूटीन अपनाने में।
अब यही रूटीन का बदलना या किसी भी रूटीन का न होना मुझे खासा
परेशान कर रहा है पिछले कई महीनों से। आदमी आखिर कितनी फिल्में
देखे, कितनी किताबें पढ़े और कितना संगीत सुने। २४ घंटे बहुत
होते हैं किसी भी खाली आदमी के लिए। वह भी बरसों बरस चलने वाला
सिलसिला। एक ही तरीका था रिटायरमेंट के बाद भी खुद को बिजी
रखने का कि नये सिरे से कोई और जॉब तलाश कर लिया जाए। लेकिन
वह मैं करने से रहा। जिंदगी भर बहुत खट लिये। अब और गुलामी
नहीं करनी किसी की। वैसे भी घोड़े से उतर कर गधे पर बैठना अपने
बस का नहीं। बहुत कर ली अफसरी। अब ऐसे में एक ही तरीका बचता है
कि फिर से फेसबुक खोल लिया जाए।
आगे-
*
साधना बलवटे की लघुकथा
यमराज
कसाब संवाद
*
डॉ. उषा राय का आलेख
स्वाभिमानी
क्रान्तिकारी: प्रीतिलता वाद्देदार
*
डॉ.मोहन कुमार के साथ पर्यटन
जैन तीर्थ
मुक्तागिरि
*
पुनर्पाठ में- कलादीर्घा के अंतर्गत
राजा रवि वर्मा का
कला संसार |
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पिछले
सप्ताह- हिंदी के अवसर पर |
१
सुशील उपाध्याय का व्यंग्य
हिंदी के विकास में लिफाफे का योगदान
*
ऋषभदेव शर्मा का आलेख
हिंदी भाषा विकास के विविध आयाम
*
डॉ. गेनादी श्लोम्पेर से जानें
इजराइल में हिन्दी क्यों
*
पुनर्पाठ में- आज सिरहाने-
आचार्य भगवत दुबे
का कविता संग्रह-
हिंदी तुझे प्रणाम
* समकालीन
कहानियों में भारत से जवाहर चौधरी
की व्यंग्य कथा-
राजा विक्रम
और हिन्दी का पिशाच
राजा
विक्रमादित्य सुबह की सैर के लिए वन से होकर गुजर रहे थे कि
अचानक पेड़ से एक पिशाच ठीक उनके सामने टपक पड़ा और उछलकर उनके
कंधे पर लटक गया। राजा पहले चौंके लेकिन दूसरे ही क्षण झिड़कते
हुए उन्होंने पिशाच को नीचे पटक दिया। चीखते हुए बोले- ये क्या
बदतमीजी है, पेड़ पर लटककर सोते नहीं बनता तो नीचे जमीन पर
क्यों नहीं सोते हो? इस तरह किसी राहगीर पर गिरते तुम्हें शरम
नहीं आती है? पिशाच कहीं के! मार्निंग वाक पर हूँ, तलवार नहीं
है वरना तुम्हारी गर्दन उड़ा देता। ईडियट!
नाराज न हों राजन, हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है...। पिशाच ने
मुस्कराते हुए राजा को याद दिलाया।
तो? राजा ने बेरुखी से पूछा।
मैं हिंदी का पिशाच हूँ... ग्लैड टू मीट यू सर। पिशाच ने शेक
हैंड के लिए हाथ बढ़ाया।
तुम!! तुम हिंदी के पिशाच कैसे हो? राजा ने हाथ मिलाए बगैर
पूछा!
हिंदी के पेड़ पर लटका हूँ इसलिए हिंदी का पिशाच हूँ...
आगे-
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