वरिष्ठ कथाकारों की प्रसिद्ध कहानियों
के स्तंभ गौरवगाथा में प्रेमचंद की कहानी
शतरंज
के खिलाड़ी
वाजिदअली शाह का समय था। लखनऊ विलासिता के रंग में डूबा हुआ
था। छोटे-बड़े, गरीब-अमीर सभी विलासिता में डूबे हुए थे। कोई
नृत्य और गान की मजलिस सजाता था, तो कोई अफीम की पीनक ही में
मजे लेता था। जीवन के प्रत्येक विभाग में आमोद-प्रमोद का
प्राधान्य था। शासन-विभाग में, साहित्य-क्षेत्र में, सामाजिक
अवस्था में, कला-कौशल में, उद्योग-धंधों में, आहार-व्यवहार में
सर्वत्र विलासिता व्याप्त हो रही थी। राजकर्मचारी विषय-वासना
में, कविगण प्रेम और विरह के वर्णन में, कारीगर कलाबत्तू और
चिकन बनाने में, व्यवसायी सुरमे, इत्र, मिस्सी और उबटन का
रोजगार करने में लिप्त थे। सभी की आँखों में विलासिता का मद
छाया हुआ था। संसार में क्या हो रहा है, इसकी किसी को खबर न
थी। बटेर लड़ रहे हैं। तीतरों की लड़ाई के लिए पाली बदी जा रही
है। कहीं चौसर बिछी हुई है; पौ-बारह का शोर मचा हुआ है। कही
शतरंज का घोर संग्राम छिड़ा हुआ है। राजा से लेकर रंक तक इसी
धुन में मस्त थे। शतरंज, ताश, गंजीफ़ा खेलने से बुद्धि तीव्र
होती है, विचार-शक्ति का विकास होता है, पेचीदा मसलों को
सुलझाने की आदत पड़ती है। ये दलीलें जोरों के साथ पेश की जाती
थीं
...आगे-
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प्रेमचंद की लघुकथा
बाबा जी
का भोग
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डॉ. गौतम सचदेव की कलम से
मजदूर फिल्म की नायिका
बिब्बो
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कृष्ण कुमार राय का आलेख
प्रेमचंद की लुप्त कहानियाँ
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पुनर्पाठ में- डॉ. जगदीश व्योम से जानें
प्रेमचंद मुंशी कैसे बने |