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१७. ६. २०१३

इस सप्ताह-

1
अनुभूति में-
गंगा नदी पर आधारित, छंदबद्ध एवं छंदमुक्त विविध विधाओं में ढेर-सी रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- हमारी रसोई संपादक शुचि द्वारा प्रस्तुत गर्मी के मौसम में लौकी के व्यंजनों की विशेष शृंखला के क्रम में प्रस्तुत है- लौकी के चीले

रूप-पुराना-रंग नया- शौक से खरीदी गई सुंदर चीजें पुरानी हो जाने पर फिर से सहेजें रूप बदलकर- पुराने डिब्बों का नया गुड्डा।

सुनो कहानी- छोटे बच्चों के लिये विशेष रूप से लिखी गई छोटी कहानियों के साप्ताहिक स्तंभ में इस बार प्रस्तुत है कहानी- लहरों पर सर्फिंग

- रचना और मनोरंजन में

नवगीत की पाठशाला में- कार्यशाला- २८ में विषय है चंपा का फूल। रचना भेजने की अंतिम तिथि है- २५ जून। विस्तृत जानकारी के लिये यहाँ देखें।

साहित्य समाचार में- देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक समाचारों, सूचनाओं, घोषणाओं, गोष्ठियों आदि के विषय में जानने के लिये यहाँ देखें।

लोकप्रिय कहानियों के अंतर्गत- चुनी हुई श्रेष्ठ पुरानी कहानियों में से प्रस्तुत है १ मार्च २००१ को प्रकाशित ममता कालिया की कहानी मेला

वर्ग पहेली-१३८
गोपालकृष्ण-भट्ट
-आकुल और रश्मि आशीष के सहयोग से

सप्ताह का कार्टून-
कीर्तीश की कूची से

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साहित्य एवं संस्कृति में-  गंगा दशहरा के अवसर पर

समकालीन कहानियों में भारत से
विवेक मिश्र की कहानी ऐ गंगा बहती हो क्यों

गंगा पीछे रह गई थी, वाराणसी का स्टेशन भी। एक यात्रा तो पूरी हुई, लेकिन दूसरी...? अजीब-सा शोर है, अजीब-सी सनसनी। गंगा का नतोदर प्रवाह जैसे एक प्रत्यंचा है और ट्रेन एक छूटा हुआ तीर। तब के विसर्जित दृश्य एक-एक कर उतराने लगे, प्रतिभा के भीतर एक नही-सी बह चली थी। वही पुल, वही घाट, वही सीढ़ियाँ, वही मणिकर्णिकाएँ, वही जलती चिताएँ। एक चिता उसके भीतर भी जल रही थी...
प्रतिभा को आज भी वह दिन याद हे जब रणवीर ने उसे बताया, ’’आज मैंने उपने घरवालों को सूचित कर दिया कि मैं तुमसे शादी कर रहा हूँ।’’ प्रतिभा की सारी इंद्रियाँ जैसे कान और आँख में संकेंद्रित हो गई थीं, ’’क्या कहा उन्होंने ?’’
’’वही, जिसकी उम्मीद थी,’’ रणवीर ने सपाट-सा उत्तर दिया। ’’फिर भी...? यह जानना मेरे लिए बहुत जरूरी है। सचसच बताओ, कुछ भी छुपाना नहीं, तुम्हें...मेरी कसम,’’ प्रतिभा ने रणवीर का हाथ पकड़ते हुए कहा था। ...आगे-

*

मुक्ता की पुराण कथा
गंगा का विवाह
*

डॉ. सुरेश अवस्थी की कलम से
जी हाँ मैं गंगा बोल रही हूँ
*

शंभुनाथ शुक्ल का यात्रा प्रसंग
गंगोत्री की ओर

*

पुनर्पाठ में डॉ. रामप्रकाश सक्सेना
का संस्मरण- पुण्य का काम

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पिछले सप्ताह-


अनुज खरे का व्यंग्य
सरकारी अय्यारों की गाथा
*

अमन दलाल का संस्मरण
उनसे मुलाकात वो आखिरी भी न हुई
*

ओमप्रकाश तिवारी का रचना प्रसंग
मुंबई के नवगीतकार
*

पुनर्पाठ में डॉ.सूरज जोशी के साथ पर्यटन
न्यूजीलैंड का नैसर्गिक सौन्दर्
*

समकालीन कहानियों में भारत से
विकेश निझावन की कहानी कुर्सी

पहले तो यह स्पष्ट कर दूँ कि यह कोई पॉलिटिकल कहानी नहीं है। दरअसल इस कहानी का शीर्षक ही ऐसा है। और फिर कुर्सी और राजनीति आज के वक्त में पर्यायवाची बन चुके हैं। लेकिन यह कुर्सी उन राजनेताओं की नहीं है जिसे हर कोई हथियाने को तैयार रहता है। यह कुर्सी तो अम्मा की है। इस कुर्सी को हथियाना नहीं पड़ा और इसको हथियाने जैसी कोई बात भी नहीं थी। यह कोई ओहदा तो है नहीं कि इसको मिलते ही व्यक्ति बहुत ऊँचा हो जाए। मामूली बेंत की कुर्सी है यह। बस इतना है कि बहुत आरामदायक है। किसी वक्त लालाजी ने घर पर ही बनवाई थी। एक वक्त था जब गली–मुहल्लों में लोहे, लकड़ी और इस तरह के काम करनेवाले घूमा करते थे। एक रोज़ लालाजी ने ही आवाज देकर रोक लिया था। अम्मा ने तो रोका था– पहले क्या घर में कम कबाड़ जमा कर रखा है।’ लेकिन लालाजी ने अनसुनी करते हुए मिस्त्री को सामने ही बिठा यह कुर्सी बनवाई थी। लालाजी ने बढ़ई को हिदायत दी थी, ‘भई काम बारीकी से और प्यार से करना...आगे-

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी -|- मीनाक्षी धन्वंतरि

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