मुझे कई बार लगता है कि
चंद्राकांता संतति के अय्यार और सरकारी कर्मचारियों में बड़ी मौलिक समानता होती है।
दोनों ही बेहद चंट और तेज-तर्रार होते हैं। हर काम में एकदम एक्सपर्ट। इधर आका या
अफसर या मंत्री का इशारा मिला उधर, काम में जुट गए। अपने आका के लिए जी-जान लगा
देते हैं अय्यार। कैसा भी टेढ़ा-तिरछा काम हो, कितना भी दुर्गम अभियान हो मजाल है
कि मना करें। कैसा भी रहस्य हो, खोल कर ही रहेंगे। हर काम के लिए जान हाजिर।
मुश्किल है तो बना देंगे सरल। अरे, नियमों में नहीं बैठ रहा है, तो नियमों की तो हो
गई ऐसी की तैसी । कोई बड़ा ईमानदार बनता है, काम के आड़े आ रहा है, उसकी तो कबर
इतनी गहरी बना देंगे कि कल को खुदाई हो तो पानी पहले निकल आए लाश बाद में ही
मिलेगी। माने हर दँद-फँद में भयंकर निपुण। भले ही सरकारी हों लेकिन डिलीवरी के
मामले में २० मिनट में पिज्जा घर में सप्लाई कर देंगे टाइप की तत्परता रखते हैं।
इधर आर्डर, उधर सप्लाई, नहीं तो पइसे वापस! इसीलिए ये आँखों के तारे होते हैं। राज
व्यवस्था में बड़ा सम्मान होता है इनका। हर राजकुमार इन्हें अपने आजू-बाजू ही रखना
चाहता है। वेष बदलने से लेकर व्यवहार बदलने तक बड़े जुझारू होते हैं ये। कभी अपने
आका के चरणों में गिरें तो याचना के क्षेत्र को इतना ऊँचा उठा देंगे कि मजाल है कोई
बराबरी कर पाए। किसी भी बात या विषय को ये अपने आका की इच्छानुसार दूसरे को इतनी
अच्छी तरह से समझाते हैं कि आका इन पर बलि-बलि जाता है। कई बार तो उठकर मुँह तक चूम
लेता है। ये बुरा नहीं मानते, गालों पर पान की पीक लगे थूक को भी आका का प्रसाद समझ
स्वीकार करते हैं। ऐसे ही कभी आका के दुश्मनों उर्फ आम आदमी इनके लपेटे में आ जाए
तो फिर देखिए क्या हाल करते हैं उसका, उसे खुद अपने इंसान होने पर शर्मिदा कर
देंगे।
हर सरकारी विषय के बड़े विद्वान होते हैं अय्यार। हर आदेश के प्रति भारी पैमाने पर
चेतना भी पाई जाती है इनमें। इनका ललाट सरकारी किस्म की चमक से दिपदिपाता रहता है।
और तो और इनके दुश्मनों का तो यहाँ तक मानना है कि इनके मुर्दों तक में भारी
प्रखरता पाई जाती है।
हर शास्त्र में निपुण हैं ये और हर कला में पारंगत। हर करतब इनके बाएँ हाथ का खेल
है। २४ घंटे मुस्तैद रहते हैं अय्यार। इनकी पोटली में हर तरह के अचूक अस्त्र-शस्त्र
रहते हैं। नियम नंबर १२ आड़े आ रहा है तो उस पर १२ (ब) और १३ (स) की कंडिकाएँ चढ़ा
देंगे। नियम नंबर १२ बताए कि किसी काम को करने में क्या-क्या प्रक्रियाओं का पालन
किया जाना जरूरी है तो कंडिकाएँ बताएँगी कि इनकी खाट ही कैसे खड़ी की जा सकती है।
या नियमों को ही खाट पर आका के लिए कैसे लिटाया जा सकता है। खुद नियमों के लखलखे का
आम आदमी पर इतना भयंकर इस्तेमाल करेंगे कि बरसों तक उसकी बेहोशी न टूटे। जब टूटे भी
तो विधानसभा भवन या सेक्रेट्रिएट की तरफ देखकर हाय! नियम, हाय! नियम करके पछाड़
खा-खाकर गिरे। इस लखलखे के कहर से बचने के लिए सरकारी लाख-लाख की हरी औषधि ही काम
करती है। बेचारे देवकीनंदन खत्री भी आज होते तो इस औषधि की ठीक-ठीक काट नहीं बता
पाते।
छोटे बाबू-बड़े बाबूओं का इनका अपना खूंखार दस्ता होता है। एक-एक छंटा हुआ। अपने
क्षेत्र में गहराई से धँसा हुआ। इधर, इशारा मिला उधर, बेआवाज काम चालू। किसी काम
में अड़ंगा लगाना है तो आपत्तियाँ लगा-लगाकर गर्भवती महिला जैसा फाइल का पेट फुला
देंगे। नियमों में ऐसा मामला फँसाएँगे कि ऑपरेशन हो तो प्रसूता और बच्चे दोनों की
जान को खतरा निकल आए। मुद्दा ऐसा उलझा देंगे कि कोई हाथ और गर्दन तक फँसाने की
हिम्मत न कर पाए। इशारा मिलने पर तो ये कठिन से कठिन आपरेशन भी बिना औजारों के कर
गुजरें। बेहिसाब विशेषताएँ होती हैं इनमें। रहस्यों के खौफनाक सियासी गलियारों में
बेधड़क धूमता रहता है अय्यार। एक-एक सुरंग और गुप्त रास्ते की जानकारी होती है
उसको। कब किसको, किस रास्ते से बचाना है या मरवाना है इसकी पूरी मालूमात रखता है
वो।
इन अय्यारों के भरोसे ही राजव्यवस्था निश्चिंत होती है। जो राज व्यवस्था का हिस्सा
बनकर भी अय्यारी नहीं सीख पाते हैं उनकी तो बड़ी दुर्गति होती है। बेचारे महत्वहीन
पदों पर बैठाए जाते हैं। वहाँ से भी यहाँ-वहाँ फिंकवाए जाते हैं। एक बँगले पर
पहुँचकर पूरा सामान भी खोल नहीं पाते हैं कि दूसरे महत्वहीन स्थान पर जाने का आदेश
आ जाता है। हमेशा अय्यारों के ऐश और पावरफुल स्थिति देख मन ही मन कुढ़ते रहते हैं।
कर कुछ पाते नहीं है ऊपर से अय्यार भी नहीं बन पाते, बड़ी विकट स्थिति होती है
इनकी। यों तो कहने को बहुत कुछ है। बड़ी लंबी है यह कहानी। लिखने बैठो तो
चंद्रकांता संतति से भी लंबी निकल आएगी सरकारी अय्यारों की गाथा।
क्योंकि चंद्रकांता संतति तो २४ खंडों में जाकर खत्म हो जाता है लेकिन सरकारी
अय्यारों की गाथा तो अनंत है, हरिकथा की तरह। ऊपर से लिखी भी तो सिंधुघाटी सभ्यता
की तरह की किसी लिपि में है। सैकड़ों साल से सामने है गुर्दा हो तो पढ़ लो। एक जीवन
भी कम है इसे पढ़ने के लिए। आपको तो पता ही है!
१० जून २०१३ |