इस सप्ताह- |
अनुभूति
में-
नीम विशेषांक के अंतर्गत विविध विधाओं में विभिन्न रचनाकारों
की चालीस से अधिक रचनाएँ। |
- घर परिवार में |
रसोईघर में- हमारी रसोई संपादक शुचि प्रस्तुत कर
रही हैं गर्मी के मौसम में लौकी के व्यंजनों की विशेष शृंखला।
इस अंक में प्रस्तुत है-
लौकी के
कोफ्ते। |
रूप-पुराना-रंग
नया-
शौक से खरीदी गई सुंदर चीजें पुरानी हो जाने पर फिर से सहेजें
रूप बदलकर-
बगीचे के औजारों का सुंदर घर। |
सुनो कहानी- छोटे
बच्चों के लिये विशेष रूप से लिखी गई छोटी कहानियों के साप्ताहिक स्तंभ में
इस बार प्रस्तुत है कहानी-
सपना। |
- रचना और मनोरंजन में |
नवगीत की पाठशाला में-
कार्यशाला- २७ मैं पेड़ नीम का छायावाला विषय पर
नवगीतों का प्रकाशन शुरू हो गया है। टिप्पणियों के लिये कृपया
यहाँ जाएँ। |
साहित्य समाचार में- देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक
समाचारों, सूचनाओं, घोषणाओं, गोष्ठियों आदि के विषय में जानने के लिये
यहाँ देखें। |
लोकप्रिय
कहानियों
के
अंतर्गत-
१६ नवंबर २००५ को प्रकाशित
अमृता प्रीतम
की पंजाबी कहानी का हिंदी रूपांतर
मणिया।
|
वर्ग पहेली-१३४
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल
और रश्मि आशीष के सहयोग से
|
सप्ताह
का कार्टून-
कीर्तीश
की कूची से |
अपनी प्रतिक्रिया
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|
साहित्य
एवं
संस्कृति
में-
नीम विशेषांक के अंतर्गत |
समकालीन
कहानियों में भारत से श्रीकान्त मिश्र कान्त
की कहानी अस्तित्व
इस बार बारिश खूब जम के हुई थी।
सारे गाँव में खूब हलचल रही, पूरे मौसम भर..। बरसात का मौसम कब
खत्म हुआ पता ही नहीं चला। लोगों के घरों में पुरानी रजाइयाँ
आँगन में पड़ी खाट पर धूप के लिये फैलने लगीं। नये पुराने
स्वेटरों की बुनावट और मरम्मत के लिये जानकार बहू बेटियों की
तलाश उन दिनों जोरों पर होती। ऐसे में हम सब अपनी बाल मण्डली
के साथ खाट पर फैली रजाइयों में नमी की चिर परिचित गन्ध सूँघते
हुए लुका छिपी खेला करते। आसमान में उड़ते हुए बादलों और नयी
पुरानी रुई समेटती हुई अपनी दादी के सामने धूप में चटाई पर
फैली रुई के सफेद गालों में न जाने क्या क्या साम्य ढूँढा
करते। मेरे आँगन को बाहर के अहाते से अलग करने वाली कच्ची
दीवार इस बार बरसात के मौसम में ढह गई थी। मौसम की भेंट चढ़
चुकी दीवार पर फिसलते हुये हम खूब खेला करते। अधगिरी दीवार की
तुलना मैं पहाड़ की चोटियों से करते हुये अक्सर खुद को
पर्वतारोही समझता। कई बार मैं भगवान से प्रार्थना करता कि हे
भगवान..! इस दीवार को ऐसे ही रहने दिया जाय। लुका छिपी करते
हुए हम सब बच्चों को न जाने कितनी डाँट पड़ती...आगे-
*
सीमा
अग्रवाल की
लघुकथा-
अलग
कमरा
*
नरेन्द्र पुंडरीक का संस्मरण
नीम नदी और मैं
*
डॉ. राकेश कुमार प्रजापति से
प्रकृति और पर्यावरण में-
बहूपयोगी नीम
*
पुनर्पाठ
में राजेंद्र प्रसाद सिंह से जानें
भोजपुरी में नीम, आम और जामुन
1 |
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पिछले
सप्ताह- |
१
आनंद पाठक का व्यंग्य
सखेद सधन्यवाद
*
शंपा शाह का दृष्टिकोण
घूरे के दिन
*
शैलेन्द्र चौहान की कलम से
शमशेर की कविताई
*
पुनर्पाठ में गुरमीत बेदी का आलेख
चंबा की घाटी
*
समकालीन कहानियों
में भारत से राजनारायण बोहरे
की कहानी
आदत
स्टेट हाइवे नं. एक सौ पन्द्रह
के किलोमीटर क्रमांक १ से ३० तक की चकाचक सड़क देखकर नेशनल
हाइवे वाले भी लज्जा खाते हैं। यह सड़क मेरे कस्बे को महानगर से
जोड़ती हुई आगे निकल जाती है।
लीला का ढाबा इसी रोड पर छठवें किलोमीटर पर है और वनस्पति घी
की फैक्ट्री भी इसी मार्ग में ग्यारहवें किलोमीटर पर बनी है।
पुरानी गुफाएँ और पहली शताब्दी में बने प्राचीन जैन मन्दिर भी
इसी रोड पर हैं। आज मैं बहुत फुर्सत में हूँ, जनाब। चलिये कोई
किस्सा हो जाये। लीला के ढाबे का ठीक रहेगा ...न-न, आज वह नहीं
और वनस्पति घी की कहानी भी नहीं। वह फिर किसी दिन सही। जैन
मन्दिर से जुड़ी कहानी जरूर सुन सकते हैं। लेकिन मेरी दिली
इच्छा है, कि आज इनमें से कोई कहानी न सुनें। मैं आप को कुछ और
सुनाना चाहता हूँ। आज आप को यादव साहब की कहानी सुनाने को जी
चाह रहा है। सुनेंग आप? शायद यादव सरनेम से आप समझे नहीं हैं,
अरे वही मेरे पड़ोसी यादव साहब जिनके दरवाजे पर टाइम कीपर से
लेकर असिस्टेण्ट इंजीनियर तक गाड़ी लिये खड़े...आगे- |
अभिव्यक्ति से जुड़ें आकर्षक विजेट के साथ |
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