बहूपयोगी नीम
-डॉ राकेश
कुमार प्रजापति
नीम का
वानस्पतिक नाम अजार्डिचटा इन्डीका है। अंग्रेजी में इसे
मारगोसा तथा भारतीय भाषाओं में नीम, निम, इन्डियन लिलेक,
निम्मी, लिम्बों तथा लिमडा इत्यादि नाम से जाना जाता है। नीम
मूलतः भारतीय पेड़ है, और यह भारत के अधिकाशतः अर्द्धशुष्क
क्षेत्र में बहुत पाया जाता है। भारतीय आर्युवेद में नीम के
महत्व का विशेष उल्लेख
मिलता है। वास्तव में भारत के लोग नीम को गाँव का दवाखाना और
पवित्र वृक्ष कहते हैं।
जलवायु-
नीम के लिये
गर्म जलवायु सबसे अच्छी रहती है, वैसे तो यह ४९ डिग्री सेन्टी
ग्रेट से ० डिग्री सेन्टी गेट तापमान पर उगाया जा सकता है। आज
नीम का विस्तार दुनिया के लगभग ३० देशों में हो गया है। इसकी
उपयोगिता को देखते हुये अब एशिया, अफ्रीका, मध्य दक्षिणी-
अमेरिका तथा संयुक्त राज्य अमेरिका में भी इसको उगाया जा रहा
है। नीम वैसे तो हर प्रकार की भूमि में उगाया जा सकता है, मगर
इसके लिये गहरी काली मृदा तथा ८.५ पी.एच. मान तक की भूमि सबसे
उपयुक्त रहती है। नीम को कम पानी तथा अधिक धूप की जरूरत होती
है। ४५० से १२०० मिमी. बर्षा वाले क्षेत्रों में भी यह अच्छी
तरह से बढ़ जाता है, परन्तु २००-२५० मिमी. वर्षा या उचित जल
निकास न होने पर यह सूख जाता है। ३-५ बर्ष की अवस्था में यह फल
देने लगता है। परिपक्व पौधे से ३०-३५ किलो तक फल (निम्बोली)
प्राप्त होते है।
रसायनिक संगठन-
नीम में पाये
जाने वाले रसायनिक तत्व जैसेः- निमबिन, निमबिडीन, निनबिडोल,
गेडुनिन, सोडियम निमबिनेट, क्यूरसिटिन, सालनिन, एजार्डियडीन
आदि प्रमुख है। सबसे ज्यादा सक्रिय तत्व मुख्य रूप से बीज और
तेल में पाये जाते हैं यद्यपि पत्ती औ छाल में सक्रिय तत्व हो
है लेकिन कम मात्रा में पाये जाते है। नीम की १०० किलोग्राम
निम्बोली से नाइट्रोजन (३.५६), फासफोरस (०.८३), पोटाश (१.६७),
कैल्शियम (०.७७), तथा मैग्नेशियम (०.७५), किलोग्राम, तक
प्राप्त होता है। नीम में कई हजार जैविक रसायनों से युक्त १००
टरपोनोयड पाये जाते है। जिसमें लिमिनोयड प्रमुख है।
नीम का उपयोग-
पर्यावरण के प्रति जागरूक कृषि वैज्ञानिकों को अब इस बात का
अहसास होने लगा है कि रसायनिक कीटनाशक जरूरी नहीं हैं। विश्व
स्वास्थ संगठन का अनुमान है कि, प्रतिवर्ष कोई २०००० लोग
विषैले कीटनाशकों के कारण मारे जाते है। इस सबको ध्यान में
रखते हुए नीम से निर्मित कीटनाशकों का प्रयोग बहुत लाभप्रद हो
सकता है। भण्डारण में भी नीम पत्तियों का उपयोग कीटों को रोकने
में कारगर सिद्ध हुआ है। नीम का प्रयोग यूरिया की कोटिंग
(आवरण) के रूप में धान की फसल में सफलतापूर्वक किया जा रहा है।
यह नाइट्रोजन को आस्थिर करने वाले जीवाणुओं को निष्क्रिय बनाता
है। नीम का प्रभाव कीटों के हारमोन तन्त्र को प्रभावित करता
है। जबकि कृत्रिम रसायन कीटों के पाचन तंत्र और तंत्रिका तंत्र
को प्रभावित करता है। इसलिये नीम के प्रयोग से कीटों की अगली
पीढ़ी में प्रतिरोधक क्षमता नहीं पैदा हो पाती है। नीम अण्डों,
लार्वा तथा प्यूपा के रहने वाले स्थानों का विनाश करता है,
लार्वा और निम्फ में निर्मोचन को रोकता है, मादा कीटों की
प्रजनन क्षमता को रोकता है, नर कीटों के बधिया करण में सहायक
होता है, कीटों के रूपान्तरण को रोकता है और कीटों के ऊपर कठोर
परत को बनने से रोकता है।
कीट नाशक के रूप में-
जैविक कृषि के क्षेत्र में नीम का उपयोग बहुत महत्वपूर्ण सिद्ध
हुआ है। घरेलू, कृषि रसायन और पोषक तत्व के रूप में नीम का
प्रयोग उपयोगी इसलिये है, कि इसमें हानि रहित और जैविक रूप से
अपघटित होने वाले तत्व मौजूद हैं। वैज्ञानिक अनुसंधानों से यह
ज्ञात हुआ है, कि नीम का सत ४०० जातियों के हानिकारक कीटों के
लिए प्रभावी है। संश्लेषित रसायनों के प्रयोग से फसल को नुकसान
पहुँचाने वाले कीटों में कृत्रिम रसायनों के प्रति प्रतिरोधक
क्षमता पैदा हो जाती है इस दिशा में नीम को बहुत प्रभावी जैविक
रसायन पाया गया है। नीम का सत नीम के बीज, पत्तियों और नीम की
खली तीनों से बनाया जाता है। और घरेलू बगीचों में भी
सफलतापूर्वक इसका प्रयोग किया जा सकता है।
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नीम के बीज से सत बनाने के
लिये ३ महीने से ज्यादा पुराने बीज
को नहीं लेना चाहिऐ। बीज को तोड़कर ५० ग्राम, निम्बोली
निकाल लेना चाहिये तथा इसके बाद इसको अच्छी तरह से कूट कर
कपड़े में पोटली बाँधकर एक लीटर पानी में डूबो देना चाहिये।
रात भर के बाद इसको अच्छी तरह निचोड़ लेना चाहिये, इसके बाद
इस पानी को ५ लीटर पानी में मिलाकर उसमें सस्ता साबुन थोड़ी
मात्रा में मिलाकर रोग एवं कीटों पर छिड़काव कर सकते हैं।
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नीम की पत्ती से सत बनाने
के लिये ५ लीटर पानी में एक किलो
नीम की पत्ती डालकर पूरी रात छोड़ दें फिर सुबह पत्ती को
पीसकर पानी में मिलाकर छान लें। इसमें ८० किलो पत्तियाँ एक
हेक्टर खेत के लिये चाहिये।
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नीम खली से सत बनाने के
लिये १०० ग्राम खली एक लीटर पानी के
लिये चाहिये बाकी विधि उपरोक्त जैसी ही है। इसके अतिरिक्त
नीम के तेल से भी कीट रोधक तैयार किये जाते हैं।
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नीम के तेल से सत बनाने के
लिये नीम का ३० मिली तेल, एक लीटर
पानी में अच्छी तरह से मिला लेना चाहिये। एक एकड़ भूमि के
लिये ६० लीटर घोल की जरूरत होती है छिड़काव के घोल में थोड़ी
मात्रा में सस्ता साबुन आवश्य मिला लेना चाहिये। जिससे
छिड़काव में आसानी होती है।
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पर्यावरण के क्षेत्र में-
आज दुनिया में बढ़ रहे पर्यावरण प्रदूषण के चलते नीम का महत्व
पर्यावरण सन्तुलन में अधिक हो जाता है। कृत्रिम रसायनों के
विररुद्ध जैविक खेती में नीम का महत्वपूर्ण योगदान है। नीम का
पौधा वातावरण की आक्सीजन को भी शुद्ध करता है, इसके अन्य लाभ
जैसे- बाढ़ नियत्रंण, भू-क्षरण को रोकना, कृषि वानिकी, भूमि
उर्वरता, वायु रोधक तथा बहुत से पक्षियों के लिये घरौंदे का
काम करना आदि है।
नीम को भारतीय सहित्य में कल्पवृक्ष से भी ऊँचा स्थान मिला है।
नीम का एक पौधा अपने जीवन में २४००० से ३६००० अमेरीकी डालर के
मूल्य की वायु शुद्ध करता है। इसके अलावा लकड़ी भी उपलब्ध कराता
है। नीम की लकड़ी बहुत मजबूत होती है और इसमें दीमक भी नहीं
लगती। नीम का उपयोग सामाजिक वानिकी में भी हो रहा है।
चिकित्सा
के क्षेत्र में-
प्राचीन काल से ही नीम का उपयोग भारतीय आयुर्वेद तथा यूनानी
चिकित्सा पद्धति में अच्छी तरह से ज्ञात था। नीम के फल, बीज,
तेल, पत्ती, छाल तथा जड़ का उपयोग विभिन्न प्रकार की दवाओं के
रूप में किया जाता रहा है। हमारे देश में ’’देवी शीतला माता’’
के रूप में नीम की पूजा की जाती है, इसके प्रतिजैविक गुणों के
कारण बच्चों के जन्म के समय प्रसववाले कमरे में जलाया जाता था,
क्योंकि नीम के जलने से जो धुआँ निकलता था वह मच्छरों के लिये
घातक होता था। दाद- खाज और खुजली में भी इसकी बड़ी उपयोगिता
प्राचीन काल से ज्ञात है। चेचक जैसे- घातक रोगों में भी इसकी
पत्तियों को सीधा ही त्वचा पर इस्तेमाल किया जा सकता है, सिर
के जुऐं, लीख आदि के लिये नीम का तेल इस्तमाल किया जाता रहा
है। भारतीय आयुर्वेद में नीम की दातून का दातों के रोग एवं
मलेरिया जैसे रोग के लिये प्रयोग किया जाता
था। खून की सफाई, बुखार आदि में भी मनुष्य के लिये बहुत ही
उपयोगी सिद्ध हुआ है।
आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में नीम के विभिन्न भागों का उपयोग
किया जा रहा है। इसकी छाल का प्रयोग कफ, बुखार, भूख की कमी,
आँतों के कीड़े, घाव, उल्टी, त्वचा रोग, अधिक प्यास लगने,
मधुमेह में, पत्ती का प्रयोग कुष्ठ एवं त्वचा रोग में, फूल का
प्रयोग आँत के कीड़े, कफ, बाईल स्प्रेशन में, फल का प्रयोग
मधुमेह, आँखों की समस्या, बवासीर आँतों में कीड़े, मूत्र रोग,
घाव कुष्ठ इत्यादि में, इसके कोयले का प्रयोग दमा, कफ, तिल्ली,
आँत रोग एवं कीड़े तथा कुष्ठ में, इससे निर्मित गोंद का प्रयोग
घाव, फोड़े-फुन्सी, त्वचा रोग में, बीज का प्रयोग कृष्ठ एवं
आँतो के कीड़ों को दूर करने में तथा
तेल का प्रयोग आँतो के कीड़े, त्वचा रोग एवं कुष्ठ रोग में
सफलता पूर्वक हो रहा है।
मलेरिया से भारत में
प्रतिवर्ष २ लाख मौतें होती हैं, जबकि नीम में पाया जाने वाला
गेड़ुनिन उतना ही प्रभावशाली है जितना क्युनिन। चीन ने तो नीम
का उपयोग मलेरिया जैसी बीमारी के लिए शुरू कर दिया है। भारत
में राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान की प्रयोगशाला में चल रहे
अनुसंधानों से नीम के मधुमेह, हृदय रोग और एड्स जैसी भंयकर
बीमारियों को रोकने के सकारात्मक परिणाम प्राप्त हुये हैं।
जोड़ों के दर्द, पेट की सूजन आदि में भी नीम का अर्क एवं तेल
कारगर सिद्ध हुआ है। नीम का उपयोग परिवार नियोजन में भी हो रहा
है। पत्तियों से बनी सेनफल नामक दवा का प्रयोग गर्भ निरोधक
(पुरूष) के रूप में किया गया। जिसके सकारात्मक परिणाम प्राप्त
हुए हैं। पुरूषों के लिये उपयोग किये जाने वाली दवा में सेनसल
पहली पुरूष गर्भ निरोधक गोली होगी।
दक्षिण-पूर्व एशिया में
नीम की छाल का उपयोग त्वचा कैन्सर के लिये हो रहा है। १५ मिली
पत्तियों के रस से या १० पत्तियों रोज खाने से रोगी की
इन्सुलिन की मात्रा ३०-५० प्रतिशत तक कम हो जाती है। भारत
सरकार ने नीम कैप्सूल, टेबलेट और नीम तेल आदि मेडीकल स्टोरों
पर रखना अनिवार्य कर दिया है। नीम के पत्तियों के रस से
कोलेस्ट्राल की मात्रा ३० प्रतिशत तक दो घन्टों में कम हो जाती
है।
व्यापार के क्षेत्र में-
नीम की छाल से डाई, मन्जन, आदि बनाये जाते हैं। बीज का उपयोग
मिथेन गैस, बनाने में किया जाता है। पत्तियाँ का उपयोग जानवरों
के लिये खाद्य सामग्री आदि के लिए किया जाता है। कास्मेटिक
उद्योग में इसका प्रयोग चेहरे पर लगाने वाली क्रीम, लोशन, फेस
पाऊडर एवं एंटीसेप्टिक क्रीम के रूप में हो रहा है।
कागज के उद्योग में कागज को मजबूत करने के लिये, दवा उद्योग-
एन्टीसेप्टिक, गोली आदि के रूप में, कपड़ा उद्योग में डाई और
धागे बनाने के लिये सफाई उद्योग- साबुन, मंजन, पाऊडर के रूप
में, खाद्य उद्योग- जेली आदि बनाने में, कृषि उद्योग- खाद और
दवा आदि बनाने में इसके सफल प्रयोग हुए हैं।
एक
अनुमान के अनुसार लगभग २ करोड़ नीम के पेड़ भारत में हैं और १०
करोड़ रूपये से भी ज्यादा का नीम का व्यापार भारत में होता है।
भारत की बढ़ती हुई जनसंख्या अब १ अरब २० करोड़ से भी अधिक पहुँच
रही है। इसे देखते हुए नीम
के पेड़ों को बहुतायत से लगाने
की आवश्यकता है। अगर १० व्यक्तियों के द्वारा नीम का एक पेड़ भी
लगाया जाए तो कम से कम १० करोड़ पेड़ों का रोपण हो सकता है और
उसी अनुपात में नीम को अर्थलाभ का साधन बनाया जा सकता है।
नीम के घरेलू उपयोग-
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नीम के
तेल को वैसलीन के साथ १:५ के अनुपात में मिलाकर बनाए गए
लेप से मच्छर के काटन, त्वचा रोग, छोटे-छोटे घाव, कटे तथा
जले में आराम मिलता है। |
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त्वचा को
स्वस्थ रखने के लिये नीम की पत्तियों की बनी चाय और पानी
उबाल कर स्नान करें। |
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खुजली
तथा आँखों के रोग (कंजंक्टिवाइटिस) में नीम की पत्तियों को
रूई के साथ उबाल कर ठंडे होने पर आँख या खुजली की जगह रूई
से साफ करना लाभदायक रहता है।
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दौड़
सपर्धाओं में भाग लेने वाले धावकों को नीम के उबले हुये
पानी से पैर धोने तथा नीम की चाय पीना लाभदायक होता है।
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नीम तथा
नारियल का तेल सिर पर लगाने से बालों की रूसी खत्म हो जाती
है। |
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गले में
खराश होने पर नीम की पत्तियाँ को उबाल कर थोड़ा शहद मिलाकर
गरारा करने से लाभ मिलता है। |
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मुहासों
की सफाई के लिये नीम की पत्तियाँ डालकर उबाला गया पानी
बहुत अच्छा रहता है। |
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३० मिली
ग्राम नीम के तेल को एक लीटर पानी में और १ मिली साबुन में
अच्छी तरह मिलाकर पौधों के रोगों पर छिड़काव के लिये प्रयोग
कर सकते है। |
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मधुमेह
और पेट की अम्लता के लिये २-३ पत्तियाँ रोज खाने पर आराम
मिलता है। |
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सूखी नीम
की पत्तियों को अनाज के डिब्बों में डाल देने पर उनमें
कीड़े नहीं लगते। |
२० मई २०१३ |