इस सप्ताह-
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अनुभूति में-
1राम
स्वरूप सिंदूर,
कल्पना रामानी, लक्ष्मी शंकर वाजपेयी, कपिल कुमार, रामकृष्ण
द्विवेदी मधुकर की रचनाएँ एवं खबरदार कविता। |
- घर परिवार में |
रसोईघर में- सर्दी का मौसम थोड़ा ही बचा है। इस मौसम के लिये
तिल के व्यंजनों की विशेष शृंखला में शुचि प्रस्तुत
कर रही हैं- तिलकुटा। |
रूप-पुराना-रंग
नया-
शौक से खरीदी गई सुंदर चीजें पुरानी हो जाने पर,
फिर से सहेजें रूप बदलकर-
पुराने दरवाजे का
फोटोफ्रेम। |
सुनो कहानी- छोटे
बच्चों के लिये विशेष रूप से लिखी गई छोटी कहानियों के साप्ताहिक स्तंभ में
इस बार प्रस्तुत है कहानी-
टेलीविजन। |
- रचना और मनोरंजन में |
साहित्य समाचार में- देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक
समाचारों, सूचनाओं, घोषणाओं, गोष्ठियों आदि के विषय में जानने के लिये
यहाँ देखें |
नवगीत की पाठशाला में-
कार्यशाला- २५ की रचनाओँ का प्रकाशन
पूरा हो गया है। नई कार्यशाला की तिथि और विषय निश्चित होने पर
सूचित करेंगे।
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लोकप्रिय कहानियों के अंतर्गत-
प्रस्तुत है पुराने अंकों से १६
जनवरी २००२ को प्रकाशित इंदिरा गोस्वामी की उड़िया कहानी का
हिंदी रूपांतर-
वंशबेल।
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वर्ग पहेली-११९
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल
और रश्मि आशीष के सहयोग से
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सप्ताह
का कार्टून-
कीर्तीश
की कूची से |
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-साहित्य-एवं-संस्कृति-में-- |
समकालीन कहानियों में संयुक्त
अरब इमारात से पूर्णिमा वर्मन की कहानी-
एक शहर जादू
जादू
यह
कहानी आज की नहीं है। बीस साल पहले की है। एक तो “बीस साल बाद”- इन शब्दों
में ही जादू है और फिर बीस साल का लंबा समय तो किसी भी कहानी को
तिलिस्मी बना सकता है। कहानी जब बीस साल पुरानी होती है, उसमें से एक नशा
उड़ना शुरू होता है, धुआँ धुआँ सा जैसे हुक्के का झीना बादल.. और हल्की नशीली
गुड़गुड़ाहट की ध्वनि में घुलती हुई मीठी-सी रूमानी गंध जो नथुने पार कर दिमाग की
नसों तक पहुँचती है। यह नशा सच से जादू की दुनिया में ले जाता है। वैसे भी
सच और जादू में दूरी ही कितनी होती है जादू में प्रवेश करने का माहौल होना
चाहिये... जो आपको हर तरफ से घेर ले उसको एकाग्र कर दे एक जादुई दुनिया
में विचरने के लिये। समय बदलता है तो परिवेश बदलते हैं और शहर भी बदल जाते
हैं। लेकिन कभी-कभी स्मृतियों के जादू में शहर सदा वैसे ही जिंदा रहते हैं जैसे
वे बीस साल पहले थे। यह कहानी भी ऐसे ही एक शहर की है। शहर का नाम- जयपुर।
एक राजा, एक रानी... बीस साल पहले ...
आगे-
*
कृष्ण नंदन मौर्य का व्यंग्य
भैंस खड़ी पगुराय
*
कुमुद
शर्मा का आलेख
हिंदी एकांकी के
जन्मदाता डॉ. रामकुमार वर्मा
*
डॉ. अशोक उदयवाल से जानें
सर्दी की दुआ बथुआ
*
प्रभात कुमार से प्रकृति और पर्यावरण में
आपदाओं का धन जल
* |
अभिव्यक्ति समूह
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पिछले
सप्ताह- |
१
डॉ. दिनेश पाठक शशि की लघुकथा
समानांतर दर्द
*
प्रभु जोशी से सामयिकी में-
जन से भिड़ता तंत्र
*
डॉ. बलदेव सिंह बद्दन का आलेख
संत रविदास की अमृत
वाणी
*
गौतम सान्याल का रचना प्रसंग-
लघुकथा: प्रकार, प्रविधि और भाषा आकार से प्रकार
की ओर
*
समकालीन कहानियों में यू.के. से
जय वर्मा
की कहानी—
कोई सवाल क्यों
आज डोरीन ने आजादी की साँस ली।
बाईस वर्षों में पहली बार डोरीन अकेली घर से बाहर निकली थी।
लहराती हुई पतली सड़क पर लाल रंग की डबल डेकर बस तेजी से
वादियों के बीच चली जा रही थी। चार्नवुड लेस्टरशायर की
छोटी-छोटी पहाड़ियों के बीच में बसा एक रमणीक और आकर्षक गाँव
है। इंग्लैंड की मुख्य सड़क ‘मोटरवे वन’ के पास में होते हुए भी
यहाँ पर यातायात के बहुत ही कम साधन उपलब्ध हैं। रेल तो यहाँ
है ही नहीं और बस भी दिन में केवल दो बार आती है। मार्ग में
बिना कुछ कहे अपने गंभीर विचारों में लीन केवल डोरीन ही जानती
है कि उसने शादी से लेकर अब तक बाईस वर्ष कैसे बिताए। डोरीन
देखने में सुंदर थी। मां-बाप ने उसे बहुत प्यार और दुलार से
पाला था। अपनी नीली आँखें, सुनहरे तथा घुँघराले बालों के
सौंदर्य के कारण प्रत्येक वर्ष स्पोलडिंग मेले में आयोजित
सुंदरी प्रतियोगिता में ‘ब्युटी क्वीन’ का खिताब जीतती थी। जब
वह अपने पापा की ट्यूलिप के फूलों से सजी बड़ी लंबी लारी में
मुकुट पहनकर बैठती तो...
आगे- |
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